फरीदाबाद में प्लॉट को दुकड़ों में बेचने से पहले लेनी होगी NOC, बिना सब डिवीजन प्रॉपर्टी आईडी बनाने पर रोक
फरीदाबाद में अब बिना सब डिवीजन कराए प्रॉपर्टी आईडी नहीं बनेगी। नगर निगम आयुक्त ने ऐसे प्लाटों की आईडी पर रोक लगा दी है। जिले में साढ़े सात लाख प्रॉपर्टी आईडी में से केवल 20% ही सत्यापित हो पाई हैं। सब डिवीजन न होने पर सरकार को राजस्व का नुकसान होता है। प्लानिंग ब्रांच केवल नियमित कॉलोनियों में ही सबडिवीजन की अनुमति देता है। प्रॉपर्टी आईडी न बनने से लोगों को सीवर और पानी का कनेक्शन लेने में परेशानी होगी।

फरीदाबाद नगर निगम की ओर से प्रॉपर्टी आईडी को लेकर जारी किया आदेश।
दीपक पांडेय, फरीदाबाद। बिना सब डिवीजन कराए टुकड़ों में बेची गई प्राॅपर्टी की आईडी बनाने पर नगर निगम ने रोक लगा दी है। किसी भी भवन मालिक को पहले प्लानिंग ब्रांच से सब डिवीजन कराकर एनओसी लेनी होगी। इसके बाद ही वह अपनी प्राॅपर्टी को टुकड़ों में बेच सकता है। इसके बाद ही उसकी प्राॅपर्टी आईडी तैयार होगी।
नगर निगम आयुक्त की ओर से बुधवार को बिना सब डिवीजन के प्लाॅटों की आईडी बनाने को लेकर रोक के आदेश जारी किए गए। जिले में कुल साढ़े सात लाख प्राॅपर्टी आईडी हैं। जिसमें से एक लाख आईडी की सत्यापित हो पाई है। पिछले छह साल में केवल 20 प्रतिशत आईडी ही निगम सत्यापित कर पाया है।
सब डिवीजन नहीं होने पर सरकार को लगता है राजस्व का चूना
जिस जमीन को दो या तीन टुकड़ों में बेचकर रजिस्ट्री करवाई जाती है। उसका पहले निगम के प्लानिंग ब्रांच से सब डिवीजन करवाना पड़ता है। इसलिए सरकार को भी फीस चुकानी पड़ती है। वहीं, निगम की ओर से सब डिवीजन करने के लिए लाइसेंस जारी किया जाता है।
लेकिन प्राॅपर्टी आईडी बनाने के दौरान ऐसे मामले सामने आए जिनका प्लानिंग ब्रांच से सब डिवीजन नहीं करवाया गया था। कई बिल्डर फीस चुकाने से बचने के लिए सब डिवीजन नहीं करवाते हैं। वह प्लानिंग ब्रांच से लाइसेंस भी नहीं लेते हैं।
जिसकी वजह से सरकार को राजस्व का नुकसान होता है। वहीं, प्लानिंग ब्रांच की ओर से नियमित हुई काॅलोनियों में ही सब डिवीजन करने की अनुमति दी जाती है। प्राॅपर्टी आईडी नहीं बनने से लोगों को सीवर और पानी का कनेक्शन लेने में भी परेशानी का सामना करना पड़ेगा।
साल 2019 में एजेंसी की ओर से किया गया था सर्वे
2019 में याशी एजेंसी की ओर से पूरे शहर में प्राॅपर्टी आईडी को लेकर सर्वे किया गया था। इस सर्वे में एजेंसी की ओर से अलग-अलग वर्ग के कुल प्राॅपर्टी यूनिटों की संख्या साढ़े सात लाख बताई गई थी। वहीं, करीब एक साल तक सर्वे करने के बाद पूरी रिपोर्ट निगम को सौंप दी गई थी। ताकि निगम अपने पोर्टल पर पूरा रिकाॅर्ड चढ़ा सके।
इसके बाद लोगों को निगम की ओर से प्राॅपर्टी टैक्स का बिल भेजा गया तो उसमें कई तरह की खामियां निकलकर सामने आईं। इसके बाद से लोग इन खामियों को दुरुस्त कराने के लिए चक्कर ही काट रहे हैं। कई प्राॅपर्टी यूनिट में तो निगम की ओर से मकान नंबर ही गलत कर दिए गए।
नगर निगम आयुक्त की ओर बिना सबडिवीजन की प्राॅपर्टी आईडी बनाने को लेकर रोक लगाने के आदेश दिए गए है। इसके साथ सबडिवीजन वाली प्रापर्टी की फाइल भी पहले प्लानिंग ब्रांच के पास जांच के लिए भेजी जाएगी।
- दिनेश कुमार, जेडटीओ, एनआईटी

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