फ्लैट नंबर 13 और 32 में बनती थी देश को दहलाने साजिश, डायरी में कोड वर्ड से दर्ज करते थे हर आतंक का हर 'षड्यंत्र'
दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने आतंकी मॉड्यूल का पर्दाफाश किया है। फ्लैट नंबर 13 और 32 में आतंकी साजिशें रची जा रही थीं। आतंकियों के पास से एक डायरी बरामद हुई है, जिसमें कोड वर्ड में हर षड्यंत्र दर्ज है। ये आतंकी देश में बड़े हमले करने की फिराक में थे, लेकिन पुलिस ने समय रहते कार्रवाई कर खतरे को टाल दिया। स्पेशल सेल डायरी के कोड वर्ड समझने में जुटी है।

फरीदाबाद स्थित अल फलाह यूनिवर्सिटी के हाॅस्टल के फ्लैट नंबर 13 और 32 में राष्ट्र विरोधी कार्यों को अंजाम देने के लिए बैठकें होती थीं। फाइल फोटो
सुशील भाटिया, फरीदाबाद। सफेदपोश आतंकी के रूप में सामने आए डाॅ. मुजम्मिल, डाॅ. शाहीन, डाॅ. उमर के बीच अल फलाह यूनिवर्सिटी के हाॅस्टल के फ्लैट नंबर 13 और 32 में राष्ट्र विरोधी कार्यों को अंजाम देने के लिए बैठकें होती थीं। यहीं पर देश को दहलाने के लिए साजिशें रची जाती थीं। कहां-कहां धमाके करने और कैसे करने हैं, इसको कोड वर्ड में दर्ज किया जाता था।
प्रशासनिक ब्लॉक के कमरों में बैठक
यूनिवर्सिटी के स्टाफ के अनुसार डाॅ. शाहीन सईद और डाॅ. मुजम्मिल को प्रबंधन की ओर से यूनिवर्सिटी परिसर में प्रशासनिक ब्लाॅक में बने हाॅस्टल में कमरे आवंटित किए गए थे। डाॅ. शाहीन यूनिवर्सिटी परिसर के ब्लाॅक नंबर 15 के फ्लैट नंबर 32 में रहती थी और डाॅ. मुजम्मिल गनी ब्लाॅक नंबर 17 के फ्लैट नंबर 13 में रहता था।
शाम चार बजते ही होते थे एकत्र
इसी ब्लाॅक में नंबर चार में डॉ. उमर नबी बट रहता था। फैकल्टी स्टाफ से जुड़े सूत्रों अनुसार डाॅ. शाहीन दिन में मेडिकल के छात्रों को पढ़ाने, उनके साथ अलग से समय व्यतीत करने में रहती थी, बाकी अपने साथी डाॅक्टरों के साथ बैठकों का समय शाम चार बजे तय किया हुआ था।
छात्र समझते थे दोनों के बीच है खास रिश्ता
शाम चार बजे के बाद अगर डाॅ. शाहीन का फोन नहीं उठा या स्विच ऑफ मिलता था, तो यह निश्चित था कि उनकी अपने कमरे में कोई मीटिंग हो रही है। यही कुछ डाॅ. मुजम्मिल का हाल था। सूत्रों के अनुसार यह तो यूनिवर्सिटी में छात्रों में आम चर्चा रहती ही थी कि डाॅ. मुजम्मिल और डाॅ. शाहीन के बीच निकटता थी। अब यह कैसी निकटता थी, यह सामने आ ही गया है।
इमाम इश्तियाक भी आता था मीटिंग में
सूत्रों के अनुसार फ्लैट में इन तीनों के बीच मीटिंग के दौरान कभी-कभी जरूरत पड़ने पर मस्जिद के इमाम मोहम्मद इश्तियाक को भी वहीं बुला लिया करते थे। यह वही इमाम है, जिससे डाॅ. मुजम्मिल ने कमरा किराए पर लिया था और वहां भारी मात्रा में अमोनियम नाइट्रेट जमा किया था। बैठक में जो तय होता था, उसे एक डायरी में नोट कर लिया जाता था।
कोड वर्ड सुलझाने में जुटे विशेषज्ञ
पुलिस सूत्रों के अनुसार यह डायरी उच्च जांच एजेंसी के हाथ लग चुकी है। इसमें कोड वर्ड में सबकुछ लिया गया है, इनमें कश्मीर के और यूनिवर्सिटी के ही कई लोगों के नाम लिखे हैं, जिसे विशेषज्ञों द्वारा डी-कोड करने के बाद ही और जानकारी सामने आ सकेगी। सूत्रों के अनुसार इन्हीं में एक नाम प्रोफेसर डाॅ. निसार उल हसन का है, जो डाॅ. मुजम्मिल की गिरफ्तारी के बाद से गायब है।
सिग्नल एप्प पर होता था संवाद
सूत्रों के अनुसार जब यह सभी सफेदपोश आतंकी यानी डाॅक्टर यूनिवर्सिटी से बाहर होते थे और अलग-अलग दिशाओं में होते थे तो यह सिग्नल ऐप के जरिए आपस में संवाद करते थे। सिग्नल ऐप माध्यम से चार लोग आपस में संवाद करते हैं और सूचनाओं का आदान-प्रदान करते हैं तो यह सिर्फ उन तक ही सीमित रहता है। दूसरों को इसकी जानकारी नहीं मिल पाती।
17 लाख रुपए की गड़बड़ी पर हो गया था विवाद
पुलिस सूत्रों के अनुसार डाॅ. मुजम्मिल, डाॅ. आदिल, डाॅ. उमर और डाॅ. शाहीन ने मिलकर करीब 20 लाख रुपये जुटाए थे। जो दिल्ली बम धमाके में मारे जा चुके डाॅ. उमर को सौंपे गए थे। इनमें से तीन लाख रुपये कीमत का अमोनियम नाइट्रेट खरीदा गया था। बाकी रुपयों को लेकर डाॅ. मुजम्मिल व डाॅ. उमर के बीच विवाद हो गया था।

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