सूखते भूजल को दिया नया जीवन, हिसार यूनिवर्सिटी को मिला राष्ट्रीय जल पुरस्कार; किसानों में खुशी की लहर
हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय को जल संरक्षण में उत्कृष्ट योगदान के लिए राष्ट्रीय जल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। विश्वविद्यालय ने फसल विविधीकरण, सीधी बिजाई और जल बचत तकनीकों को बढ़ावा देकर यह उपलब्धि हासिल की। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने विश्वविद्यालय के प्रयासों की सराहना की और इसे जल संरक्षण के क्षेत्र में एक मिसाल बताया।

हकृवि के वीसी प्रो. बीआरकाम्बोज को राष्ट्रीय जल पुरस्कार-2024 देकर सम्मानित करतीं राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मु (फोटो: जागरण)
अमित धवन, हिसार। हिसार की मिट्टी का स्वभाव हमेशा से अनोखा रहा है, यहां खेत सिर्फ अन्न नहीं उगाते, बल्कि विचार भी जन्म लेते हैं। इसी धरती पर खड़ा चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय (हकृवि) आज विज्ञान और समाज के बीच वह सेतु बन गया है, जिसने जल संरक्षण की दिशा में पूरे देश को नई सोच दी है।
जल शक्ति मंत्रालय द्वारा छठे राष्ट्रीय जल पुरस्कार–2024 में विश्वविद्यालय को सर्वश्रेष्ठ संस्थान श्रेणी में प्रथम स्थान मिलना सिर्फ पुरस्कार नहीं, बल्कि उस मूल्य का सम्मान है जो हकृवि ने किसानों, विद्यार्थियों और वैज्ञानिकों के मन में रोपा है कि पानी किसी खेत का हिस्सा नहीं, बल्कि कृषि का आत्मा है।
18 नवंबर को विज्ञान भवन, नई दिल्ली में महामहिम राष्ट्रपति द्रौपदीमुर्मू स्वयं यह सम्मानहकृवि को प्रदान कर चुकी हैं, जिससे इस उपलब्धि की गरिमा और भी बढ़ गई है।
जहां खेतो की राह बदली, वही हरियाणा ने नया इतिहास लिखा
खरीफ-2024 मेहकृवि के वैज्ञानिको ने प्रदेश के किसानों को सीधी बिजाई और कम अवधि वाली धान किस्मों के लिए प्रेरित किया। यह केवल तकनीकी परामर्श नहीं था, बल्कि जल संकट से जूझ रहे प्रदेश के लिए एक वास्तविक समाधान था। सीधी बिजाई ने मिट्टी की नमी को बचाया, जल खपत कम की और फसल चक्र को संतुलित किया।
विश्वविद्यालय के प्रयासो से लगभग 1 लाख हेक्टेयर क्षेत्र को कपास से धान मे बदलने से रोका गया। इससे न केवल भूमि का संतुलन बचा, बल्कि जल संसाधनो पर पड़ने वाला अतिरिक्त दबाव भी समाप्त हुआ। यह उपलब्धि जल संरक्षण के आंकडो से आगे बढ़कर एक पूरे प्रदेश की कृषि सोच को प्रभावित करने वाली उपलब्धि है।
ज्ञान केवल प्रयोगशाला तक सीमित नहीं रहा
हकृवि ने जल संरक्षण को केवल तकनीकी चर्चा नहीं रहने दी। विश्वविद्यालय ने प्रदेशभरमे किसानों को जागरूक करने के लिए व्यापक कार्यक्रम चलाए। इनमें ये प्रमुख रहे।
. किसान प्रशिक्षण
. जल संरक्षण जागरूकता शिविर
. किसान मेले
. फसल विविधीकरण पर फिल्ड प्रदर्शन
. किसान गोष्ठियां
. विश्व पर्यावरण दिवस कार्यक्रम
. वन महोत्सव
. ‘एक पेड़ माके नाम’ जैसा भावनात्मक अभियान
इन कार्यक्रमो ने यह संदेश फैलाया कि जल बचत केवल तकनीक नहीं, बल्कि खेती की नई संस्कृति है।
जहां विज्ञान ने आकार दिया जल संरक्षण की तकनीक को
विवि के अनुसंधान निदेशक डा. राजबीरगर्ग बताते हैं कि हकृवि का लक्ष्य ऐसी किस्मों और तकनीकों का विकास करना है जो कम पानी मे अधिक उत्पादन दें। इसी उद्देश्य से दो महत्वपूर्ण किस्मों का विकास हुआ।
. धान की कम अवधि मे पकने वाली किस्म एचकेआर-49
. गेहूं की दो पानी, कम खाद मे अधिक उपज देने वाली किस्म डब्ल्यूएच 1402
. ये दोनों किस्मे जल संरक्षण के क्षेत्रमे भविष्य की उम्मीद हैं।
'हकृवि के हर किसान और हर वैज्ञानिक का भविष्य की पीढ़ियों के प्रति वचन है। यह सम्मान उन किसानों, वैज्ञानिकों और विद्यार्थियो के सामूहिक प्रयास का प्रतिफल है जो हर बूंद को बचाने को अपना धर्म मानते हैं।'- प्रो. बीआरकाम्बोज, वीसी, हकृवि, हिसार

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