एमडीयू की अफगान छात्रा का हास्टल रूम 21 माह से लाक, कोविड की वजह से लौटी थी अपने देश
एमए पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन की छात्रा यास्मिन सैफी को मार्च 2020 में अफगानिस्तान लौटना पड़ा था। छात्रा ने यह नहीं सोचा था कि वापसी इतनी लंबी हो जाएगी कि पढ़ाई ही अधर में लटक जाएगा। यही नहीं वर्षों की मेहनत से जो हासिल किया है उसे खोने की स्थिति बन पड़ेगी।

केएस मोबिन, रोहतक : कोविड-19 की पहली लहर में जब शिक्षण संस्थान बंद कर दिए गए, हास्टल खाली करा लिए गए, तब भारत में पढ़ाई कर रही अफगान छात्रा ने यह नहीं सोचा था कि वापसी इतनी लंबी हो जाएगी कि पढ़ाई ही अधर में लटक जाएगा। यही नहीं, वर्षों की मेहनत से जो हासिल किया है उसे खोने की स्थिति भी बन पड़ेगी। ए-प्लस ग्रेड महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय (एमडीयू) के एमए पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन के फाइनल ईयर की अफगान छात्रा यास्मीन सैफी। एडमिशन के बाद अक्टूबर 2019 में एमडीयू के गर्ल्ज हास्टल में शिफ्ट हुई। कस्तूरबा गांधी वुमन हास्टल काम्प्लेक्स स्थित गंगा हास्टल का रूम नंबर 208 उन्हें अलाट हुआ। अगले दो वर्षों तक यही उनका घर था।
हालांकि, कोरोना महामारी की वजह से मार्च 2020 में अफगानिस्तान लौटना पड़ा था। इस बीच कोविड-19 की दो लहरें आई और अब तीसरी ने दस्तक दे दी है। वहीं, अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना की वापसी से उत्पन्न हुए राजनीतिक संकट की वजह से छात्रा का एमडीयू लौटने का इंतजार लंबा होता जा रहा है। आलम यह है कि विवि के गर्ल्ज हास्टल में छात्रा को जो रूम अलाट किया गया है वह 21 माह से बंद (लाक) पड़ा है। विवि प्रशासन भी असमंजस की स्थिति में है कि रूम को कब तक बंद पड़ा रहने दिया जाए।
गत दिनों गर्ल्ज हास्टल की एक वार्डन की ओर से छात्रा को संपर्क किया गया था। छात्रा को जल्द से जल्द को हास्टल रूम खाली करने की बात कही गई है। एमडीयू से करीब एक हजार किलोमीटर दूर अफगानिस्तान के बघलान प्रांत में अपने घर में स्वजनों के बीच रहकर भी छात्रा को हास्टल रूम की चिंता है। परेशानी की वजह यह है कि छात्रा के ज्यादातर ओरिजनल डाक्युमेंट हास्टल रूम में ही छूट गए हैं।
तालिबान की वजह से भारत आने में हो रही परेशानी
छात्रा ने फोन पर बताया कि मार्च 2020 में जब हास्टल खाली करने के निर्देश दिए गए तो वह अपने देश लौट गई थी। तब यह नहीं पता था कि इतने लंबे समय तक समस्या बनी रहेगी। कपड़े, बिस्तर के साथ ही ग्रेजुएशन की मार्कशीट, डिप्लोमा, स्कूल की मार्कशीट रूम में ही छोड़ दिए थे। वह भारत लौटने के लिए प्रयासरत हैं लेकिन, देश में मौजूदा तालिबान सरकार और महामारी की वजह से समय लग रहा है। छात्रा ने एमडीयू प्रशासन से कुछ ओर माह की रियायत मांगी है। छात्रा की स्थिति को देखते हुए विवि प्रशासन भी परेशान है। आगामी दो-तीन माह में नए सत्र के एडमिशन शुरू हो जाएंगे। ऐसे में एमडीयू के लिए भी छात्रा के रूम लाक रखना मुश्किल हो जाएगा।
छात्रा को सबमिट करनी है डेजरटेशन
एमडीयू में पढ़ाई करने करे विदेशी छात्र-छात्राओं के लिए फाइनल ईयर में एक अनिवार्य डेजरटेशन सबमिट करना होता है। यास्मीन सैफी ने अपने गृह प्रांत बघलान के म्युनिसिपल कमेटी पर डेजरटेशन का विषय चुना था। छात्रा ने बताया कि पहले वह लाकडाउन की वजह से इस विषय पर काम नहीं कर पाई थी। फिलहाल, तालिबान की पाबंदियों की वजह से इस विषय पर काम करना संभव नहीं है। तालिबान ने लड़कियों के अकेले बाहर निकलने पर पाबंदी लगा दी है। छात्रा ने विभागाध्यक्ष से संपर्क कर डेजरटेशन का विषय बदलने की गुजारिश की थी, छात्रा की परेशानी को देखते हुए विषय बदलने की मंजूरी भी दे दी गई है। छात्रा का कहना है कि डेजरटेशन लगभग पूरी हो चुकी है।
:::यह मामला संज्ञान में नहीं है। संबंधित हास्टल की वार्डन से इसपर जानकारी ली जाएगी। इस तरह की स्थिति कभी-कभार ही बनती है। यदि बंद पड़े रूम को खोलने की स्थिति कभी बनती है तो इसपर पहले एक पूरी कमेटी गठित की जाती है। कमेटी के सामने ही रूम को खोला जाता है।
- डा. प्रतिमा, डिप्टी चीफ वार्डन, गर्ल्ज हास्टल, एमडीयू, रोहतक।
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