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    'नाबालिग संग लिव-इन संबंध अनैतिक और अवैध', हाईकोर्ट ने युवक को सुरक्षा देने से किया इनकार

    Updated: Tue, 25 Nov 2025 03:00 PM (IST)

    पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने नाबालिग लड़की के साथ लिव-इन में रह रहे युवक को सुरक्षा देने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने कहा कि ऐसा संबंध अनैतिक और अवैध है, जिसे संरक्षण नहीं दिया जा सकता। अदालत ने लड़की को चाइल्ड वेलफेयर कमेटी के सामने पेश करने का आदेश दिया ताकि उसकी सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके। कोर्ट ने यह भी कहा कि नाबालिग का हित सर्वोपरि है।

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    हाईकोर्ट का फैसला: नाबालिग संग लिव-इन संबंध अवैध (फाइल फोटो)

    राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने एक आदेश में नाबालिग लड़की के साथ लिव-इन संबंध में रह रहे युवक को संरक्षण देने से साफ इंकार कर दिया है।

    हाई कोर्ट एकल पीठ ने कहा कि नाबालिग के साथ किसी भी प्रकार का लिव-इन संबंध न केवल अनैतिक है बल्कि पूरी तरह अवैध है, और ऐसे संबंध को संवैधानिक संरक्षण नहीं दिया जा सकता।

    कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि यदि ऐसे रिश्तों को संरक्षण दिया गया तो यह बाल संरक्षण से जुड़े मौजूदा कानूनों के उद्देश्य को विफल कर देगा। मामला यमुनानगर निवासी 17 साल की युवती और 27 साल के युवक की याचिका से जुड़ा है, जिसमें दोनों ने दावा किया था कि वे लिव-इन संबंध में रह रहे हैं और परिवारजन उनसे जान का खतरा पैदा कर रहे हैं।

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    याचिकाकर्ताओं ने पुलिस को दी गई शिकायत का हवाला देते हुए सुरक्षा मुहैया कराने की गुहार लगाई थी। लेकिन अदालत ने रिकार्ड देखने के बाद पाया कि लड़की नाबालिग है और इसलिए यह संबंध कानून की नज़र में वैध नहीं है।

    सुनवाई के दौरान हरियाणा सरकार के वकील ने स्पष्ट किया कि नाबालिग के साथ लिव-इन संबंध न तो सामाजिक रूप से स्वीकार्य है और न ही कानूनी रूप से मान्य। उन्होंने कहा कि यदि ऐसे रिश्तों को सुरक्षा मिलती है तो यह बाल यौन शोषण, बाल विवाह और नाबालिगों की सुरक्षा से जुड़े उद्देश्यों को नुकसान पहुचाएगा।

    कोर्ट ने भी इस तर्क से सहमति जताते हुए सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों का हवाला दिया, जिसमें कहा गया है कि वैध लिव-इन संबंध के लिए दोनों पक्षों का बालिग होना अनिवार्य है।

    अदालत ने पाक्सो एक्ट, बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006, और जुवेनाइल जस्टिस एक्ट 2015 का उल्लेख करते हुए कहा कि नाबालिग के साथ किसी भी प्रकार की सहमति आधारित यौनिक गतिविधि भी कानूनन अपराध मानी जाती है और ऐसे संबंधों को किसी भी प्रकार की सुरक्षा नहीं दी जा सकती।

    हालांकि अदालत ने यह भी माना कि याचिकाकर्ताओं ने खतरे की आशंका व्यक्त की है और इस आधार पर अदालत ने कुछ दिशा-निर्देश जारी किए। कोर्ट ने आदेश दिया कि लड़की को संबंधित एसएसपी के सामने पेश किया जाए, जो उसे चाइल्ड वेलफेयर कमेटी के समक्ष प्रस्तुत करेंगे। यह समिति यह तय करेगी कि नाबालिग की सुरक्षा, निवास और सुरक्षा के लिए क्या कदम आवश्यक हैं।

    कोर्ट ने पुलिस को यह भी निर्देश दिया कि याचिकाकर्ताओं को किसी भी प्रकार के शारीरिक खतरे से बचाने के लिए उचित कार्रवाई की जाए, लेकिन यह स्पष्ट किया कि यदि युवक ने कानून का कोई उल्लंघन किया है, तो उसके खिलाफ कार्रवाई करने में यह आदेश बाधा नहीं बनेगा।

    अंतत कोर्ट ने याचिका का निपटारा करते हुए कहा कि नाबालिग लड़की के हित सर्वोपरि हैं और उसकी सुरक्षा तथा कानूनी संरक्षण सुनिश्चित करना ही न्यायालय का प्रथम कर्तव्य है।