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    हरियाणा: रिटायर्ड अफसर की पेंशन रोकी तो हाईकोर्ट भड़का, सरकार को लगाई फटकार; ब्याज सहित भुगतान का आदेश

    Updated: Wed, 10 Dec 2025 09:38 AM (IST)

    पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने सेवानिवृत्त अधिकारी की पेंशन रोकने पर नाराजगी जताई। कोर्ट ने कहा कि राज्य ने बिना किसी कानूनी अधिकार के देयकों को रोका। ...और पढ़ें

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    हाई कोर्ट ने सेवानिवृत्त अधिकारी की पेंशन रोकने पर जताई कड़ी नाराजगी (फाइल फोटो)

    राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने एक सेवानिवृत्त अधिकारी की पेंशन और सेवानिवृत्ति लाभ रोकने पर कड़ी आलोचना की है।

    अदालत ने इसे “बेहद चिंताजनक असंवेदनशीलता” करार देते हुए कहा कि राज्य ने बिना किसी कानूनी अधिकार के अधिकारी के सभी देयकों को रोक रखा था। कोर्ट ने पांच साल बाद सभी बकाया लाभ ब्याज सहित जारी करने के आदेश दिए हैं।

    यह फैसला जस्टिस संदीप मोदगिल ने उस याचिका पर सुनाया जिसमें याची अतिरिक्त आबकारी एवं कराधान आयुक्त 31 दिसंबर 2020 को सेवानिवृत्त हुए थे, लेकिन उनकी ग्रेच्युटी, कम्युटेशन और पेंशन लाभ जारी नहीं किए गए, जबकि उनके खिलाफ सेवानिवृत्ति के समय कोई विभागीय कार्रवाई लंबित नहीं थी।

    अदालत के अनुसार राज्य ने सेवानिवृत के नौ महीने बाद पांच अक्टूबर 2021 को 2012 की कथित निगरानी कमियों को लेकर विभागीय आरोपपत्र जारी कर दिया, जबकि हरियाणा सिविल सर्विसेज (पेंशन) नियम 2016 के तहत ऐसे मामले में कार्रवाई पूरी तरह प्रतिबंधित थी। नियमों के मुताबिक सेवानिवृत्ति से चार वर्ष से अधिक पुराने किसी भी घटनाक्रम पर विभागीय कार्रवाई शुरू नहीं की जा सकती।

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    मामले में आरोपित घटनाएं 2012 की थीं, यानी सेवानिवृत्ति से आठ वर्ष पहले की। इस आधार पर कोर्ट ने कहा कि 2021 में शुरू की गई विभागीय जांच “कानूनी रूप से स्पष्ट रूप से बाधित” थी। बाद में विभागीय प्राधिकारी ने 29 जनवरी को आरोप पत्र वापस ले लिया और सभी रिटायरमेंट लाभ जारी करने के निर्देश दिए।

    इसके बावजूद पेंशन जारी न करने पर अदालत ने कहा कि जब आरोपपत्र ही निरस्त हो गया तो कोई भी विभागीय या न्यायिक कार्यवाही लंबित नहीं मानी जा सकती। ऐसे हालात में पेंशन रोकना न केवल अवैध था बल्कि मनमाना कदम भी था, जो पेंशन नियमों की भावना के विपरीत है।

    जस्टिस मोदगिल ने कहा कि यह मामला एक ऐसे अधिकारी से जुड़ा है जिसने तीन दशक से अधिक सेवा दी। बावजूद इसके उसे सम्मान और न्याय के बजाय अवैध आरोपपत्र और लंबी प्रशासनिक चुप्पी का सामना करना पड़ा।

    आरोपपत्र वापस होने के बाद भी उसकी पेंशन रोककर मानसिक, आर्थिक और भावनात्मक तनाव दिया गया, जो एक कल्याणकारी राज्य के आचरण के अनुरूप नहीं है।

    अंत में हाई कोर्ट ने याचिका स्वीकार करते हुए सभी सेवानिवृत्ति लाभ नौ प्रतिशत वार्षिक ब्याज के साथ जारी करने के आदेश दिए।