हाईकोर्ट का CISF कोन्स्टेबल को झटका, भड़काऊ भाषण पर कार्रवाई बरकरार; कहा- 'वर्दी का सम्मान, संयमित व्यवहार जरूरी'
पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने भड़काऊ भाषण देने के मामले में सीआइएसएफ कांस्टेबल के खिलाफ विभागीय कार्रवाई को सही ठहराया है। कोर्ट ने कहा कि अनुशासित बलों के सदस्य आम नागरिकों की तरह व्यवहार नहीं कर सकते। वर्दी सम्मान और अधिकार देती है, इसलिए संतुलित व्यवहार जरूरी है। कोर्ट ने कांस्टेबल गुरनाम सिंह की याचिका खारिज कर दी और कहा कि धार्मिक रूप से उत्तेजक भाषण संवैधानिक मूल्यों के खिलाफ हैं।

भड़काऊ भाषण पर सीआइएसएफ जवान की सजा बरकरार रखते हुए हाईकोर्ट ने याचिका खारिज की (फोटो: जागरण)
दयानंद शर्मा, चंडीगढ़। पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने भड़काऊ भाषण देने के मामले में केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआइएसएफ) के एक कांस्टेबल पर की गई विभागीय कार्रवाई को सही ठहराते हुए स्पष्ट किया है कि अनुशासित बलों के सदस्य आम नागरिकों की तरह आचरण की स्वतंत्रता नहीं ले सकते।
कोर्ट ने कहा कि वर्दी सम्मान और अधिकार देती है, इसलिए ड्यूटी पर हों या छुट्टी पर, हर स्थिति में संतुलित, संयमित और जिम्मेदार व्यवहार अपेक्षित है। इस टिप्पणी के साथ ही जस्टिस संदीप मौदगिल ने सीआइएसएफ के कांस्टेबल गुरनाम सिंह की याचिका खारिज कर दी।
गुरनाम सिंह ने अपने खिलाफ की गई अनुशासनात्मक कार्रवाई और वेतन में कटौती की सजा को रद कराने की मांग की थी। कोर्ट ने टिप्पणी की कि जो व्यक्ति संविधान की रक्षा की शपथ लेता है, यदि वही सार्वजनिक मंच से ऐसे भाषण दे, जो धार्मिक तनाव बढ़ाने वाले माने जाएं, तो वह उस ताने-बाने को स्वयं क्षति पहुंचाता है, जिसे बचाने के लिए वर्दी पहनता है।
याचिका के अनुसार 2009 में गुरनाम सिंह का चंडीगढ़ से दादरी यूनिट में तबादला किया गया था। 30 जून 2009 को उन्हें 10 दिन की अर्जित छुट्टी मिली, जिस दौरान वह अपने गांव पहुंचे।
आरोप है कि इस अवधि में उन्होंने श्री गुरु रविदास धर्मशाला में एक धार्मिक सभा को संबोधित करते हुए भड़काऊ भाषण दिया। पुलिस विभाग के एडीजीपी (इंटेलिजेंस) ने 23 जुलाई 2009 को सीआइएसएफ को रिपोर्ट भेजी, जिसके आधार पर विभागीय जांच शुरू हुई। जांच अधिकारी द्वारा कथित रूप से आरोप सिद्ध नहीं किए जाने के बावजूद अनुशासनिक प्राधिकारी ने बल की नियमावली के तहत उनके वेतन में कटौती की सजा दे दी।
जवान का पक्ष था कि यह शिकायत गांव के नंबरदार द्वारा बदले की भावना से की गई, क्योंकि उसके परिवार से उनका सिविल विवाद चल रहा है। साथ ही, यह भी दलील दी गई कि इस घटना पर कोई एफआइआर दर्ज नहीं हुई।
सीआइएसएफ ने कोर्ट में कहा कि बल के नियम स्पष्ट रूप से ऐसे किसी भी कार्यक्रम, भाषण या गतिविधि में भाग लेने पर रोक लगाते हैं, जिससे सार्वजनिक व्यवस्था बिगड़ने की आशंका हो। कोर्ट ने सीआइएसएफ के तर्कों को स्वीकार करते हुए कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मौलिक अधिकार है, परंतु यह पूर्ण अधिकार नहीं।
कोर्ट ने कहा कि अनुशासित बलों में उच्चतर आचरण मानक लागू होते हैं व धार्मिक रूप से उत्तेजक भाषण सेवा, शपथ और संवैधानिक मूल्यों के खिलाफ हैं। हाई कोर्ट ने कहा कि परिस्थितियों में कोई कानूनी त्रुटि नहीं दिखी और सजा में हस्तक्षेप का कोई आधार नहीं बनता। लिहाजा याचिका खारिज कर दी गई।
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