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    पूर्व सैनिकों की 9.55 एकड़ जमीन कागजी हेरफेर से हड़पी, कालका–पिंजौर अर्बन कॉम्प्लेक्स के भूमि अधिग्रहण में गड़बड़ी

    Updated: Sun, 23 Nov 2025 07:49 PM (IST)

    कालका-पिंजौर अर्बन कॉम्प्लेक्स भूमि अधिग्रहण मामले में पूर्व सैनिकों ने आरोप लगाया है कि कागजी हेरफेर करके उनकी 9.55 एकड़ जमीन हड़प ली गई। उन्होंने बताया कि मूल भूमि अधिग्रहण अधिकारी ने उनकी जमीन को अधिग्रहण से बाहर रखने की सिफारिश की थी, लेकिन बाद में रिपोर्ट बदल दी गई। सुप्रीम कोर्ट ने भी इस अधिग्रहण को अवैध बताया था। पूर्व सैनिकों ने अधिग्रहित जमीन वापस करने और दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है।

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    पिंजौर–कालका क्षेत्र में अधिग्रहण के दौरान जमीन को निशाना बनाया गया।

    राजेश मलकानियां, पंचकूला। कालका–पिंजौर अर्बन कॉम्प्लेक्स भूमि अधिग्रहण मामले में पूर्व सैनिकों ने बड़े घोटाले का आरोप लगाते हुए कहा है कि कागजी हेरफेर कर उनकी विकसित कॉलोनी की जमीन को जबरन अधिग्रहित किया गया।

    पूर्व वरिष्ठ सेना अधिकारी डा. सुशील कुमार के अनुसार वर्ष 2008 में पिंजौर–कालका क्षेत्र में अधिग्रहण के दौरान पूर्व सैनिकों, नौसैनिकों और वायुसैनिकों की हिल व्यू को-आपरेटिव हाउस बिल्डिंग सोसाइटी को विशेष रूप से निशाना बनाया गया।

    डाॅ. सुशील के मुताबिक मूल भूमि अधिग्रहण अधिकारी (एलएओ) ने 23 जुलाई 2008 की रिपोर्ट में 31.65 एकड़ भूमि को अधिग्रहण से बाहर रखने की सिफारिश की थी, जिसमें पूर्व सैनिकों की विकसित कॉलोनी भी शामिल थी।

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    रिपोर्ट में बदलाव से पहले ही मूल एलएओ को हटा दिया गया। इसके बाद नियुक्त नए एलएओ केके अमरोही (डीआरओ) के रिकॉर्ड में कथित रूप से वैध आपत्तियां हटाकर केवल 22.10 एकड़ छोड़ने का दस्तावेज तैयार किया गया और फाइल सीधे प्रशासन एवं सरकार तक भेजकर मंजूरी ले ली गई।

    सार्वजनिक उद्देश्य के नाम पर निजी बिल्डरों को लाभ 

    डाॅ. सुशील ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने 19 अप्रैल 2012 के अंतरिम आदेश में पूरे अधिग्रहण को “प्राइमा फेसी अवैध” बताते हुए निर्माण रोकने को कहा था और टिप्पणी की थी कि सार्वजनिक उद्देश्य के नाम पर निजी बिल्डरों को लाभ पहुंचाया गया। बाद में राज्य सरकार ने तकनीकी आधार पर मामला समाप्त करवा लिया, लेकिन कोर्ट में सरकार की ओर से दिए गए सुधारात्मक कदम उठाने के आश्वासन पर आज तक कोई कार्रवाई नहीं हुई।

    आपत्तियां रिकॉर्ड से हटाई

    पूर्व सैनिकों का कहना है कि मूल एलएओ द्वारा छोड़ी गई 31.65 एकड़ भूमि को नजरअंदाज कर केवल 22.10 एकड़ छोड़ी गई, जिससे 9.55 एकड़ अतिरिक्त जमीन अधिग्रहित कर ली गई।

    उनका आरोप है कि जेएसआईसी बैठक (19 अगस्त 2008) में कई वैध आपत्तियां, जिनमें हिल व्यू सोसाइटी की मुख्य आपत्ति भी शामिल थी, रिकॉर्ड से हटा दी गईं, जबकि प्रशासक को ऐसा करने का कोई कानूनी अधिकार नहीं था।

    “सैनिकों के घर उजाड़े गए”

    डा. सुशील कुमार ने कहा कि सैनिकों के घर तोड़े गए, उनकी विकसित प्लाटेड भूमि छीनी गई, लेकिन अब तक न्याय नहीं मिला। पूर्व सैनिक वर्षों से अदालतों के चक्कर काट रहे हैं।

    पूर्व सैनिकों की मांग

    • अधिग्रहित की गई 9.55 एकड़ भूमि पूर्व सैनिकों को वापस दी जाए।
    • हिल व्यू को-ऑपरेटिव सोसाइटी के मूल प्लाट बहाल किए जाएं।
    • सुप्रीम कोर्ट में दिए गए मौखिक आश्वासन का पालन करते हुए सुधारात्मक कार्रवाई की जाए।
    •  भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया में हुई प्रशासनिक गड़बड़ियों की निष्पक्ष जांच कर दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए।