हरियाणा में हाई कोर्ट ने रेप पीड़िता को अबॉर्शन कराने की नहीं दी अनुमति, जानिए क्या है मामला?
पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने बलात्कार पीड़िता को गर्भपात की अनुमति देने से इनकार कर दिया लेकिन उसके हितों की रक्षा के लिए कई निर्देश जारी किए। अदालत ने भ्रूण की जीवित रहने की क्षमता और मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट को ध्यान में रखते हुए यह फैसला सुनाया। अदालत ने हरियाणा सरकार को पीड़िता की देखभाल और प्रसव की व्यवस्था करने का आदेश दिया है।

राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने एक बेहद संवेदनशील मामले में निर्णय सुनाते हुए दुष्कर्म पीड़िता को गर्भपात की अनुमति देने से इनकार कर दिया, लेकिन उसके हितों की रक्षा के लिए मानवीय और व्यावहारिक दिशा-निर्देश भी जारी किए। ये आदेश तब जारी किया जब एक नाबालिग लड़की, जो अब करीब 29 सप्ताह गर्भवती है, ने अपने गर्भ को समाप्त करने की अनुमति के लिए हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
मामले के अनुसार, पीड़िता ने पुलिस में दर्ज करवाई शिकायत में आरोप लगाया कि जनवरी 2023 में जब वह अकेली थी, तो आरोपित ने उसके साथ दुष्कर्म किया और इस अमानवीय कृत्य का वीडियो भी बना लिया। इसके बाद आरोपित ने वीडियो वायरल करने की धमकी देकर लगातार उसका यौन शोषण किया। पीड़िता को पेट दर्द की शिकायत पर जब डॉक्टर से सलाह ली गई तो पता चला कि वह पांच माह की गर्भवती है।
पुलिस द्वारा एफआईआर दर्ज किए जाने के बाद, पीड़िता को मेवात बाल कल्याण समिति के समक्ष प्रस्तुत किया गया, जहां माता-पिता की सहमति लेकर एक मेडिकल बोर्ड का गठन किया गया। बोर्ड ने अपनी रिपोर्ट में यह बताया कि गर्भावस्था की अवधि 29 सप्ताह से अधिक हो चुकी है और इस अवस्था में गर्भपात मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971 के अंतर्गत अनुमन्य नहीं है, जब तक कि मां की जान को खतरा ना हो या गर्भस्थ शिशु में गंभीर विकृति ना हो।
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में इस बात पर बल दिया कि मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट के अनुसार भ्रूण जीवित रहने योग्य अवस्था में है और उसमें कोई जन्मजात विकृति भी नहीं पाई गई है। इस आधार पर जस्टिस कीर्ति सिंह की एकल पीठ ने गर्भपात की अनुमति नहीं दी। हालांकि, कोर्ट ने पीड़िता के हित में कई मानवीय निर्देश जारी किए।
कोर्ट ने हरियाणा सरकार को आदेश दिया कि पीड़िता को नारी निकेतन, सेक्टर 26, चंडीगढ़ में सुरक्षित एवं सुविधाजनक आवास प्रदान किया जाए और उसके प्रसव तक वहां उचित देखभाल की जाए।
साथ ही, यदि पीड़िता राज्य सरकार के किसी अस्पताल में डिलीवरी करवाना चाहती है, तो उसके सभी चिकित्सा खर्चे और संबंधित व्यवस्थाएं राज्य सरकार वहन करेगी। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि पीड़ित नवजात को गोद देना चाहती है, तो सरकार को गोद लेने की प्रक्रिया कानूनी ढांचे के अंतर्गत तुरंत शुरू करनी होगी।
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