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    यमुनानगर में चार दशक से चल रहा जमीन विवाद खत्म, हाई कोर्ट ने 40 साल बाद परिवार को दिया मालिकाना हक

    Updated: Thu, 30 Oct 2025 10:40 PM (IST)

    पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने 40 साल पुराने भूमि विवाद में यमुनानगर के एक परिवार को कृषि भूमि का मालिकाना हक दिया। अदालत ने प्रतिकूल कब्जे के आधार पर फैसला सुनाया और निचली अदालत के फैसले को बहाल किया। स्वर्गीय सुरजीत सिंह के वारिसों को 159 कनाल भूमि का स्वामित्व मिला, क्योंकि वे 35 वर्षों से अधिक समय से बिना किराया दिए इस पर खेती कर रहे थे। अदालत ने इसे लगातार और बिना अनुमति का कब्जा माना।

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    40 साल पुराने जमीन विवाद में यमुनानगर के परिवार को मिला मालिकाना हक। फाइल फोटो

    राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने करीब 40 साल पुराने भूमि विवाद का पटाक्षेप करते हुए यमुनानगर जिले के एक परिवार को कृषि भूमि पर मालिकाना हक प्रदान कर दिया है है। अदालत ने यह फैसला लंबे समय से चले आ रहे प्रतिकूल कब्जे के आधार पर दिया।

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    जस्टिस दीपक गुप्ता की एकल पीठ ने निचली अदालत के 1995 के उस आदेश को बहाल कर दिया, जिसमें जगाधरी तहसील के कपूरी कलां गांव स्थित 159 कनाल कृषि भूमि का स्वामित्व स्वर्गीय सुरजीत सिंह के कानूनी वारिसों को दिया गया था। साथ ही, 1997 में अपीलीय अदालत द्वारा उस फैसले को पलटने वाले आदेश को खारिज कर दिया गया।

    सुरजीत सिंह ने 1986 में दावा किया था कि वह और उनके पूर्वज पिछले 35 साल से अधिक समय से इस भूमि पर बिना किराया दिए खेती कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि यह कब्जा लगातार, खुला और बिना अनुमति के रहा है, जिससे यह प्रतिकूल कब्जे की कानूनी शर्तों को पूरा करता है।

    1954-55 के राजस्व अभिलेखों में उनका नाम 'बिला लगान बावजा कब्जा' के रूप में दर्ज है, जिसका अर्थ है बिना किराए का कब्जा। वहीं, असली मालिक केहर सिंह को लंबे समय से अनुपस्थित बताया गया था, जिन्होंने कभी न किराया लिया और न ही 1953 या 1962 की चकबंदी कार्यवाही में हिस्सा लिया।

    अदालत ने कहा कि परिसीमा अधिनियम के अनुसार, किसी भूमि पर 12 वर्षों से अधिक समय तक लगातार, खुला और शत्रुतापूर्ण कब्जा होने पर व्यक्ति स्वामित्व का अधिकार प्राप्त कर सकता है। जस्टिस गुप्ता ने यह भी स्पष्ट किया कि इस मामले में किराया भुगतान का कोई सबूत नहीं है, जो दर्शाता है कि कब्जा किसी पट्टे या अनुमति के तहत नहीं था।

    यह विवाद 1985 में केहर सिंह की मृत्यु के बाद शुरू हुआ, जब उनके रिश्तेदारों महेंद्र सिंह और हरनेक सिंह ने एक कथित वसीयत के आधार पर जमीन का दाखिल-खारिज अपने नाम करवा लिया। आरोप था कि सेवानिवृत्त राजस्व अधिकारी हरनेक सिंह ने अपने पद का दुरुपयोग कर आधिकारिक प्रविष्टि करवाईं।जस्टिस दीपक गुप्ता ने कहा कि अपीलीय अदालत ने निचली अदालत द्वारा देखे गए महत्वपूर्ण सबूतों की अनदेखी की।उन्होंने पाया कि दशकों से राजस्व रिकार्ड लगातार सुरजीत सिंह के कब्जे को दर्शाते हैं और किसी तरह की बाधा या किराए का कोई प्रमाण नहीं मिला। सुप्रीम कोर्ट के 2019 के एक फैसले का हवाला देते हुए हाई कोर्ट ने कहा कि 12 वर्ष से अधिक समय तक निरंतर और खुला कब्जा भारतीय कानून में स्वामित्व का आधार बन सकता है। इस आधार पर हाईकोर्ट ने 1985 के दाखिल-खारिज और 1991 के सहमति आदेश को अमान्य घोषित करते हुए परिवार का स्वामित्व अधिकार बहाल कर दिया।