अच्छा मुनाफा, बरकरार धरती की जान, वैकल्पिक फसलों ने बदल दी किसानों की तकदीर
वैकल्पिक खेती से न केवल किसानों की कमाई बढ़ रही बल्कि निरंतर घटती जा रही भूमि की उर्वरा शक्ति और पाताल में जा रहे भूमिगत जल को भी बचाने को लेकर कदम बढ़ाया गया। ऐसा कर दिखाया यमुनानगर के इन किसानों ने।

पानीपत/यमुनानगर, जेएनएन। घटती जोत के इस दौर में वैकल्पिक खेती किसानों को खूब रास आ रही है। परपंरागत फसलों से हटकर तुलसी, केला, लहसुन व मशरूम जैसी फसल उगाकर दूसरे किसानों के लिए प्ररेणा बन रहे हैं। अच्छा मुनाफा भी कमा रहे हैं और धरती की जान भी बरकरार रख रहे हैं। दूर-दूर तक इन किसानों की कामयाबी का डंका बज रहा है। ऐसे ही एक किसान हैं डेढ़ एकड़ भूमि वाले धर्मवीर, उनकी कामयाबी का डंका विदेशों में बज रहा है। 90 के दशक में स्टीविया व एलोवेरा खेती से इन्होंने शुरुआत की। मात्र दसवीं पास हैं। आज इनकी तैयार की फूड प्रोसेसिंग मशीन के विदेशी भी कायल हैं और धर्मबीर किसानाों को राह दिखा रहे हैं।
दूर राज्यों में करते हैं सप्लाई
एक अन्य किसान की चर्चा कर लें। माडल टाउन के किसान संजय शर्मा मशरूम की खेती कर रहे हैं। इन्होंने अंबाला रोड पर भाटली गांव के पास मशरूम प्लांट लगाया है। शर्मा के मुताबिक यह उत्तर भारत का सबसे बड़ा मशरूम प्लांट हैं। इसकी सप्लाई दिल्ली, हिमाचल व पंजाब सहित अन्य कई राज्यों में होती है।
माडल टाउन के किसान विजय मेहता की जमीन मंडोली गांव के पास हैं। इन्होंने पांच एकड़ में केला की फसल उगाई हुई है। वर्ष-2008 में कुछ पौधों से शुरूआत की थी, लेकिन सकारात्मक परिणाम सामने आए। अच्छा मुनाफा हुआ। रकबा बढ़ाकर पांच एकड़ कर दिया। बाजार में कच्चा केला बेचते हैं और मुनाफा कमाते हैं।
गन्ने में करते लहसुन की खेती
जिले गन्ने की फसल के बीच लहसुन की खेती बड़े स्तर पर की जा रही है। दोहली गांव के किसान वागीश कांबोज बताते हैं कि वह हर वर्ष दो एकड़ में लहसुन की खेती करते हैं। गन्ने की बीच ही उगाते हैं। एक साथ दूसरी फसल बोनस के रूप में मिल रही है। ऐसा करने से लागत मूल्य घट जाता है और किसान की आय बढ़ जाती है। दोनों फसलों को बेहतरी से उगाया जा सकता है। जिले के अन्य किसान भी इस विधि से लाभ कमा रहे हैं।
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