यमुनानगर में पाबंदी के बीच नदी से निकाली एक लाख क्विंटल लकड़ियां, कीमत पांच करोड़
यमुनानगर में बाढ़ के बाद नदी से लकड़ियां निकालने वालों की मौज हो गई। पहाड़ों से बहकर आई लकड़ी ग्रामीणों के लिए कमाई का जरिया बनी। रोक के बावजूद लोग दिन-रात लकड़ियां निकाल रहे हैं। हथनी कुंड बैराज से पानी छोड़ने पर हरियाणा और उत्तर प्रदेश के ग्रामीण सक्रिय हो जाते हैं। इन लोगों ने चार दिनों में इतनी लकड़ियां निकाली कि पांच करोड़ रुपये कमाई हो सकती है।

अवनीश कुमार, यमुनानगर। वर्षा से आई बाढ़ ने लोगों का जनजीवन अस्त व्यस्त किया, लेकिन इस उफान के बीच नदी से लकड़ियां निकालने वालों की मौज हो गई। इस आपदा के बीच नदी किनारे बसे गांव के लोगों ने पहाड़ों से आई लकड़ियों को निकाला। चार दिन तक यमुना नदी उफान पर रही। इन चार दिनों में लगभग एक लाख क्विंटल लकड़ियां नदी से निकाली गई, जिनकी कीमत कम से कम पांच करोड़ रुपये है।
जो लकड़ियां निकाली गई उनमें लगभग 30 हजार क्विंटल लकड़ियां इमारती हैं। अन्य बालन निकाला गया। जिसे जलाने के काम में लाया जाता है। इमारती लकड़ी लगभग एक हजार रुपये प्रति क्विंटल की दर से बेची जाती है। बालन 300 रुपये प्रति क्विंटल की दर से बेचा जाता है। इस हिसाब से लगभग पांच करोड़ रुपये की लकड़ियां नदी से निकाली गई। हालांकि इस बीच लकड़ियां निकालते हुए बल्लेवाला निवासी 16 वर्षीय साकिर की मौत हो गई। जबकि यमुना में बहा एक युवक लापता है।
विभाग लापरवाह, पुलिस दिखाती सख्ती
नदी में बहकर आने वाली इन लकड़ियों को पकड़ने पर विभाग की रोक है लेकिन विभाग की ओर से कोई प्रयास नहीं किया जाता। न तो लोगों को रोका जाता है और न ही लकड़ियों को जब्त किया जाता है। पुलिस की ओर से भी लोगों को केवल नदी की ओर जाने से रोका जाता है। लकड़ियां पकड़ने वालों पर उनकी ओर से भी कोई कार्रवाई नहीं होती।
एक लाख जलबहाव होने पर खोल दिए जाते गेट
हथनी कुंड बैराज पर एक लाख क्यूसेक जलबहाव होते है तो गेट खोल दिए जाते हैं। नदी किनारे बसे हरियाणा व उत्तर प्रदेश के ग्रामीण सक्रिय हो जाते हैं। वह नदी के किनारे पहुंच जाते हैं और पानी के बहाव के साथ बहकर आई लकड़ियों को एकत्र करने लगते हैं। यमुना नदी के उफान को देखकर जहां अन्य लोग पीछे हट जाते हैं लेकिन यह बिल्कुल किनारे पर रहते हैं। यह लंबे बांस में लोहे के कांटे बनाकर रखते हैं।
जैसे ही लकड़ी पानी में बहकर आती है तो उस पर कांटा फेंक फंसाकर बाहर निकाल लेते हैं। कुछ लकड़ियों को यह पानी के अंदर जाकर हाथ से खींचकर बाहर निकालते हैं। नदी से लड़़कियां पकड़ने वाले इमरान व नौशाद का कहना है कि नदी में आने वाली लड़कियों से अच्छी कमाई हो जाती है। अधिकतर यह लकड़ी इमारती है। इसके अच्छे दाम मिलते हैं।
इस तरह की लकड़ियां यमुना में बहकर आई
वर्षा के पानी के साथ बहकर आने वाली लकड़ियां वन विभाग के डिपो व प्राइवेट ठेकेदारों की होती हैं। कुछ सूखे पेड़ भी बहकर आते हैं। डिपो से आने वाली लकड़ियां पीस के रूप में आती है। यह टुकड़ों में कटी होती हैं। डिपो व प्राइवेट ठेकेदारों की चौरस व गोल कटी हुई लकड़ी होती है। जबकि सूखा पेड़ पूरा ही बहकर आता है। इनमें साल, शीशम, देवदार, खैर, चीड़, सांगवान व बालन बहकर आता है।
यह गांव बसे हैं नदी के किनारे
हरियाणा की बात करें तो हथनी कुंड, बेलगढ़, कोलीवाला, मांडेवाला, खैरीबांस, ताजेवाला हेड, मंडोली, गादीपुर भूड, बीबीपुर, मालीमाजरा, कैत मंडी, कमालपुर, कनालसी यमुना नदी के किनारे पर हैं। इन गांवों के लोग यमुना नदी से लकड़ियां निकालते हैं। उत्तर प्रदेश के जानीपुर रिहाना, फैजाबाद, फतेहपुर, छज्जा, मढ़ती व बड़था गांव के ग्रामीण नदी से लकड़ियां निकालते हैं। लकड़ियों को निकालकर एकत्र करने के बाद ट्राॅली में भरकर अपने गांव में ले जाते हैं। लकड़ी ठेकेदार भी इन ग्रामीणों से संपर्क रखते हैं तो कुछ ऐसे भी लोग इनसे संपर्क करते हैं। जिन्हें अपने मकान के फर्नीचर तैयार कराना होता है।
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