हिमाचल में दिखा दुर्लभ प्रजाति के ग्रिफान गिद्धों का झुंड, 2000 में गंभीर संकटग्रस्त घोषित यह पक्षी है बेहद खास
Griffon Vultures in Himachal कुल्लू जिले की सैंज घाटी में दुर्लभ ग्रिफान गिद्धों का झुंड देखा गया। विश्व संरक्षण संघ ने वर्ष 2000 में इसे गंभीर संकटग्रस्त घोषित किया था। विशेषज्ञों के अनुसार कीटनाशकों के अंधाधुंध इस्तेमाल और पशु दर्द निवारक दवाओं के कारण इनकी संख्या में कमी आई है जिससे पर्यावरण संतुलन बिगड़ने का खतरा बढ़ गया है।

संवाद सहयोगी, सैंज (कुल्लू)। Griffon Vultures in Himachal, कुल्लू जिले की सैंज घाटी के तरेहड़ा गांव में दुर्लभ प्रजाति के ग्रिफान गिद्धों का झुंड दिखा है। इस प्रजाति का पक्षी अन्य से बड़ा, शक्तिशाली व विशिष्ट चोंच और मजबूत पैर वाला होता है। इसकी ये खूबियां इसे शिकार करने में मदद करती हैं। विश्व संरक्षण संघ ने वर्ष 2000 में इस प्रजाति को गंभीर संकटग्रस्त घोषित किया था। गिद्धों की यह प्रजाति अफ्रीका और दक्षिण एशियाई देशों में पाई जाती है।
पर्यावरण संतुलन बिगड़ने का बढ़ गया है खतरा
विशेषज्ञों की मानें तो इस प्रजाति के तेजी से लुप्त होने से पर्यावरण संतुलन बिगड़ने का खतरा बढ़ गया है। हिमालयन वाइल्ड लाइफ एंड एनवायरनमेंट प्रोटेक्शन सोसायटी के निदेशक किशन लाल ठाकुर कहते हैं कि कीटनाशकों के अंधाधुंध इस्तेमाल से भी गिद्ध स्थानीय स्तर पर लुप्त हुए हैं। पशु दर्द निवारक डाईक्लोफिनेक (एक गैर-स्टेरायडल विरोधी दवा) के संपर्क में आने से गिद्धों की संख्या में तेजी से गिरावट आई है।
लोगों ने सैंज में सड़क किनारे देखा झुंड
सैंज निवासी नरेंद्र ठाकुर ने बताया कि लारजी-सैंज सड़क पर तरेहडा गांव के पास सड़क के किनारे गिद्धों का झुंड दिखा है। बुजुर्ग हेत राम, प्रीतम चंद, विद्या प्रकाश और लाल सिंह बताते हैं कि पहले लोग मृत मवेशियों को गांव से दूर ले जाकर नाले में फेंक देते थे, जिन्हें खाकर ये पक्षी अपना पेट भरते थे। इससे इन दुर्लभ पक्षियों का भरण पोषण होता था और पर्यावरण संतुलन भी बना रहता था।
हर वर्ष इनकी संख्या में 50 प्रतिशत की कमी आ रही
ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क शमशी के एसीएफ वन्य जीव शोधकर्ता हंसराज ठाकुर ने बताया कि इस प्रजाति को विलुप्त तो नहीं कहा जा सकता, लेकिन इनकी संख्या में तेजी से गिरावट दर्ज की जा रही है। विश्व संरक्षण संघ ने 2000 में इस प्रजाति को गंभीर संकटग्रस्त घोषित किया है। अनुमान है इनकी संख्या में हर साल 50 प्रतिशत से ज्यादा की गिरावट आ रही है। मवेशियों में डायक्लोफिनेक इंजेक्शन के बढ़ते इस्तेमाल के कारण यह प्रजाति कम हो रही है।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।