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    कुपवाड़ा फिदायीन हमले में आतंकियों के मददगार एसएचओ को उम्र कैद, हमले में दो CRPF जवान भी हुए थे बलिदान

    Updated: Mon, 01 Sep 2025 03:55 PM (IST)

    वर्ष 2003 में कुपवाड़ा में हुए फिदायीन हमले में आतंकियों की मदद करने वाले पुलिस स्टेशन सोगाम के तत्कालीन एसएचओ गुलाम रसूल वानी को जम्मू कश्मीर एवं लद्दाख उच्च न्यायालय ने उम्र कैद की सजा सुनाई है। इस हमले में सीआरपीएफ के दो जवान शहीद हुए थे। जांच में पता चला कि एसएचओ गुलाम रसूल वानी और उसके मुंशी अब्दुल अहद राथर ने आतंकियों को पुलिस की वर्दी दी थी।

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    आतंकियों की मदद करने वाले एसएचओ को उम्रकैद।

    जेएनएफ, जागरण, जम्मू। वर्ष 2003 में कुपवाड़ा में हुए फिदायीन हमले में आतंकियों की मदद करने वाले पुलिस स्टेशन सोगाम के तत्कालीन एसएचओ गुलाम रसूल वानी को जम्मू कश्मीर एवं लद्दाख उच्च न्यायालय ने उम्र कैद की सजा सुनाई है। इस हमले में सीआरपीएफ के दो जवान कांस्टेबल बी प्रसाद और प्रसाद रमैया बलिदान हो गए थे जबकि छह जवान घायल हुए थे।

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    इस फिदायीन हमले को जैशे-ए-मोहम्मद के दो फिदायीन आतंकियों मोहम्मद इब्राहिम उर्फ खलील-उल्लाह निवासाी मुजफ्फरगढ़, पाकिस्तान ने अंजाम दिया था जिसे मार गिराया गया था। वहीं जांच में सामने आया कि इस हमले काे आतंकी ने अकेले नहीं अंजाम दिया था जबकि उसकी मदद एसएचओ गुलाम रसूल वानी और उसके मुंशी अब्दुल अहद राथर ने की थी।

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    एचएचओ और मुंशी आतंकियों को दी थी पुलिस की वर्दी

    जांच में पता चला कि एसएचओ और मुंशी ने आतंकी को पुलिस की वर्दी पहना सोगाम से कुपवाड़ा तक पुलिस के टाटा 407 वाहन में अपनी सुरक्षा में पहुंचाया था। इस आतंकी को दोनों ने अन्य पुलिसकर्मियों के साथ स्पेशल आपरेशन ग्रुप के सदस्य के रूप में मिलाया था। वहीं कई गवाहों ने भी एसएचओ वानी के साथ आतंकी को देखे जाने की बात बताई थी।

    2011 में कोर्ट ने एसएचओ और मुंशी को कर दिया था बरी

    यह हमला 12 मई, 2003 को हुआ था जबकि एसएचओ के खिलाफ मामला दर्ज कर जब न्यायालय में सुनवाई शुरू हुई तो वर्ष 2011 में सत्र न्यायाधीश कुपवाड़ा ने गवाहों के विराेधाभास बयानों का हवाला देते हुए एसएचओ व मुंशी को बरी कर दिया था।

    निचली अदालत ने कहा था कि अभियोजन साजिश को साबित करने में विफल रहा है। वहीं सरकार ने वर्ष 2011 में अपील दायर की, जिसमें तर्क दिया गया कि निचली अदालत ने निर्णायक सबूतों को नजरअंदाज किया था। लंबी सुनवाई के बाद उच्च न्यायालय ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।

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    खंडपीठ ने गवाही की बारीकी से की छानबीन

    जस्टिस संजीव कुमार व जस्टिस संजय परिहार की अध्यक्षता में गठित खंडपीठ ने अभियोजन पक्ष के गवाहों कांस्टेबल अयाज अहमद, कांस्टेबल रियाज अहमद और ड्राइवर अली मोहम्मद मीर की गवाही का बारीकी से विश्लेषण किया, जिनमें से सभी ने कहा कि वानी ने आतंकवादी को सोगाम से कुपवाड़ा तक की यात्रा में मदद की थी। पीठ ने यह भी पाया कि उस समय छुट्टी पर गए कांस्टेबल सुमंदर खान की वर्दी चोरी हो गई थी और बाद में वही मारे गए आतंकवादी से बरामद हुई थी।

    निचली अदालत के तर्क को खारिज कर सुनाया गया फैसला

    अदालत ने कहा कि इससे अभियोजन पक्ष के इस दावे की पुष्टि होती है कि आतंकवादी ने एसएचओ की मदद से पुलिस की वर्दी पहनी थी।निचली अदालत के तर्क को खारिज करते हुए न्यायाधीशों ने फैसला सुनाया कि वानी पर साजिश रचने व हत्या के आरोप सिद्ध होते हैं और उसे उम्र कैद की सजा सुनाई जाती है। न्यायालय को मुंशी के खिलाफ सीधे कोई सबूत नहीं मिले और उसके बरी होने के आदेश को बरकरार रखा। 

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