जम्मू कश्मीर में सरकारी इंजीनियरिंग कालेजों में पचास प्रतिशत भी नहीं भरी सीटें, जानें क्या है इसका कारण
जम्मू-कश्मीर के सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेजों में आधी सीटें भी नहीं भरी जा सकी हैं। 600 सीटों में से 371 खाली रह गई हैं। पिछले चार सालों से इंजीनियरिंग कॉलेजों में दाखिले के लिए विद्यार्थियों का रुझान कम हुआ है क्योंकि प्रदेश के कॉलेजों में प्लेसमेंट का स्तर संतोषजनक नहीं है। छात्रवृत्ति योजनाओं के कारण भी छात्र बाहर जा रहे हैं।

राज्य ब्यूरो, जागरण, जम्मू। जम्मू कश्मीर के सरकारी इंजीनियरिंग कालेजों में पचास प्रतिशत सीटें भी नहीं भरी गई। जम्मू कश्मीर में दो सरकारी इंजीनियरिंग कालेजों की दाखिला प्रक्रिया को बोर्ड आफ प्रोफेशनल एंट्रेंस एग्जामिनेशन करता है। जम्मू व कश्मीर में इंजीनियरिंग कालेजों की कुल सीटें 600 है जिसमें 371 खाली रह गई है।
पिछले चार साल से प्रदेश के इंजीनियरिंग कालेजों में दाखिले के लिए विद्यार्थियों का रुझान लगातार कम होता जा रहा है। यही हालत प्राइवेट इंजीनियरिंग कालेजों की है। सरकारी आदेश के तहत बोर्ड ने निर्धारित तिथि के बीच सीटों को भरने के बाद खाली रह गई सीटों को कालेजों को अपने अपने स्तर पर भरने के लिए अधिकार दे दिया है। प्राइवेट कालेजों में पचास प्रतिशत सीटें खाली रह गई है।
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अब विद्यार्थी जेईई-मेन्स देकर प्रदेश के बाहर इंजीनियरिंग कालेजों का रुख करते है। इसका कारण प्रदेश के कालेजों में प्लेसमेंट का अभियान उस स्तर का नहीं है कि विद्यार्थियों को रोजगार मिल जाए।
पांच हजार के करीब विद्यार्थी प्रधानमंत्री विशेष छात्रवृत्ति योजना के तहत बाहरी राज्यों में पढ़ाई के लिए जाते है इसमें पंद्रह सौ के करीब इंजीनियरिंग में जाते है। पढ़ाई का सारा खर्च योजना के तहत निशुल्क होता है।
इंजीनियरिंग के कई विकल्प प्रदेश में भी उपलब्ध हो गए हैं इनमें श्री माता वैष्णो देवी विवि, केंद्रीय विवि जम्मू शामिल है। जम्मू विश्वविद्यालय का कठुआ में इंजीनियरिंग कालेज है। एक समय था जब बोर्ड की तरफ से इंजीनियरिंग की सीटों के लिए प्रतिस्पर्धा होती थी। दो हजार सीटों के लिए दस हजार से अधिक आवेदन आते थे।
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युवाओं का रुझान पंजाब, दिल्ली, उत्तराखंड के अलावा यूपी, कर्नाटक की तरफ भी हो गया है। पिछले दो साल से मुख्य सचिव ने कम सीटों के भरने पर चिंता जताते हुए प्रभावी कदम उठाने व उचित प्रचार प्रसार करने के लिए कहा है लेकिन इसके बावजूद भी कोई फर्क नहीं पड़ा।
यह है इसका मुख्य कारण
- प्लेसमेंट के लिए कोई ठोस योजना नहीं होना
- नए कोर्स शुरु न होना
- बुनियादी ढांचे को मजबूत करने के लिए कदम नहीं उठाना
- बाहरी राज्यों में प्रतिष्ठित कालेजों की तरफ युवाओं का रुझान बढ़ना
- प्रदेश में ही विकल्प मौजूद हो जाना
विद्यार्थियों को बाहरी राज्यों में पढ़ाई के काफी विकल्प मिलना शुरु हो गए है। सिर्फ इंजीनियरिंग ही नहीं अब तो अंडर ग्रेजुएट के अन्य कोर्स व पीजी के कोर्स के भी युवा बाहर जा रहे हैं। इसके लिए व्यापक समीक्षा की जानी चाहिए । - प्रो. नरेश पाधा, जम्मू विवि के अकादमिक मामलों के पूर्व डीन
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