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    कश्मीर में बिना जरूरत के काट दिए एक हजार पेड़, मंजूरी भी नहीं ली; अब एनजीटी ने लिया कड़ा नोटिस

    उत्तरी कश्मीर के कुपवाड़ा में हंदवाड़ा-बंगुस सड़क परियोजना के लिए बिना अनुमति के एक हजार पेड़ काटे गए। राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने इस पर जम्मू-कश्मीर प्रशासन की आलोचना की और नियमों का उल्लंघन करने वाले अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने का आदेश दिया। एनजीटी ने मुख्य सचिव से विस्तृत हलफनामा मांगा है जिसमें पर्यावरण नियमों के उल्लंघन का विवरण वन विभाग को मुआवज़ा सुनिश्चित करने की बात कही गई।

    By naveen sharma Edited By: Rahul Sharma Updated: Thu, 28 Aug 2025 05:16 PM (IST)
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    मामले की अगली सुनवाई नवंबर 2025 में होगी।

    नवीन नवाज ब्यूरो, जागरण, श्रीनगर। उत्तरी कश्मीर के जिला कुपवाड़ा में बिना आवश्यक औपचारिकताओं को पूरा किए बिना एक हजार पेड़ एक सड़क निर्माण योजना के लिए काट दिए गए। संबधित विभाग ने इन पेड़ों की क्षतिपूर्ति के लिए कोई भुगतान भी नहीं किया है। सिर्फ यही नहीं पर्यावरण संबंधी अनुमति और वन्य जीव विभाग से भी अनुमति नहीं ली गई है।

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    राष्ट्रीय राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने इसका कड़ा नोटिस लेते जम्मू कश्मीर प्रदेश प्रशासन की कड़ी आलोचना की है। एनजीटी ने जम्मू-कश्मीर सरकार को बिना नियमों का पालन किए बिना पेड़ो की कटाई की अनुमति देने वाले अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करने का आदेश देते हुए मुख्य सचिव से एक विस्तृत हल्फनामा मांगा है।

    जिसमें उक्त योजना समेत विभिन्न योजनाओं के कार्यान्वयन में पर्यावरण नियमों के उल्लंघनों का विवरण हो और यह सुनिश्चित किया जाए कि वन विभाग को मुआवज़ा दिया जाए।

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    हंदवाड़ा-बंगुस सड़क परियोजना से संबधित है यह मामल

    इस मामले ने जम्मू कश्मीर में वन विभाग की स्थिति को भी उजागर कर दिया है कि कैसे वन विभाग के अधिकारी संबधित नियमों के अनुपालन को सुनिश्चित बनाने में विफल रहते हैं। यह मामल हंदवाड़ा-बंगुस सड़क परियोजना से संबधित है।

    बंगुस घाटी कश्मीर के सबसे ज्यादा सुरम्य घाटियों में एक है। एलओसी के साथ सटी बंगुस घाटी को आफबीट पर्यटन के लिहाज से भी विकसित किया जा रहा है। हंदवाड़ा-बंगुस सड़क परियोजना को वर्ष 2019 में मंजूरी दी गई थी।

    यह सड़क 40 किलोमीटर सड़क परियोजना करोड़ों रूपये के बकाया शुल्क, अवैध खनन और संबधित क्षेत्र में नदी-नालों पर बने पुलों को संभावित नुक्सान जैसे उल्लंघनों के कारण मुश्किल में फंसी नजर आती है।

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    एनजीटी ने मुख्य सचिव को हल्फनामा प्रस्तुत करने का दिया निर्देश

    एनजीटी में न्यायमूर्ति प्रकाश श्रीवास्तव की अध्यक्षता वाली पीठ ने जिसमें विशेषज्ञ सदस्य ए सेंथिल वेल, ईश्वर सिंह और प्रशांत गर्गव शामिल थे - ने केंद्र शासित प्रदेश (यूटी) के मुख्य सचिव को एक व्यापक हलफनामा प्रस्तुत करने का निर्देश दिया।

    इसमें केंद्र शासित जम्मू कश्मीरम प्रदेश के मुख्य सचिव, यह स्पष्ट करना होगा कि उपयोगकर्ता एजेंसी द्वारा राशि जमा किए बिना ज़मीनी स्तर पर पेड़ों की कटाई की अनुमति कैसे दी गई।

    इसमें यह स्पष्ट किया जाना चाहिए कि कुपवाड़ा के वन क्षेत्र में 447 पूर्ण विकसित चीड़ के पेड़, 340 खंभे और मुख्य रूप से देवदार, कैल और देवदार प्रजातियों के 236 पौधे कैसे काटे गए, जिससे स्थानीय पर्यटन स्थल बंगस घाटी की ओर सड़क निर्माण का रास्ता साफ हो गया।

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    परियोजना में पर्यावरण संबंधी चिंताओं को नजरंदाज किया गया

    याचिकाकर्ता रसिख रसूल जो कश्मीर के जाने माने पर्यावरणविद्ध हैं, ने बताया कि गत 22 अगस्त को सुनवाई हुई। उसमें हमने अपना पक्ष रखा है। इस परियोजना को लेकर पर्यावरण संबंधी चिंताओं का ध्यान नहीं रखा गया है। पर्यावरण और वन्य जीव विभाग से अनुमति भी नही ली गई है।

    सिर्फ वन विभाग से पेड़ों की कटाई की अनुमति ली गई है और वह भी पहले चरण के लिए। जो पेड़ काटे गए हैं, उनके लिए वन विभाग की मंजूरी भ नहीं ली गई है और दूसरे चरण का काम भी वन मंजूरी के किया जा रहा है।

    उन्होंने बताया कि सितंबर 2019 में लोक निर्माण विभाग को हंदवाड़ा-बंगस सड़क के पहले चरण के लिए राजवार के घने वन क्षेत्र की 14 हेक्टेयर भूमि के उपयोग की अनुमति दी थी। इस मंजूरी के तहत 447 परिपक्व पेड़ों, 340 खंभों और 236 पौधों, जिनमें मुख्य रूप से देवदार, कैल और देवदार के पौधे शामिल थे, को काटने की अनुमति दी गई थी।

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    मुख्य वन संरक्षक इरफान अहमद शाह ने भी चूक को स्वीकार किया

    बदले में, विभाग को वन के शुद्ध वर्तमान मूल्य (एनपीवी) के साथ-साथ प्रतिपूरक वनरोपण और सड़क किनारे वृक्षारोपण के रूप में 3.81 करोड़ रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया गया था। लेकिन यह राशिकभी जमा नहीं की गई।

    न्यायाधिकरण के समक्ष पेश हुए, कश्मीर के मुख्य वन संरक्षक इरफान अहमद शाह ने भी चूक को स्वीकार किया और कहा कि "3,81,13,360 रुपये की राशि अब तक जमा नहीं की गई है", जबकि पेड़ पहले ही काटे जा चुके थे।

    न्यायाधिकरण ने मुख्य सचिव को न केवल इस चूक की व्याख्या करते हुए एक हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया, बल्कि यह भी बताने का निर्देश दिया कि क्या केंद्र शासित प्रदेश की अन्य परियोजनाओं में भी इसी तरह की अनियमितताएं हुई हैं।

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    अधिकारियों की पहचान कर उन्हें जवाबदेह बनाना चाहिए

    आदेश में यह स्पष्ट किया गया कि जिन अधिकारियों ने भुगतान सुनिश्चित किए बिना कटाई की अनुमति दी, उनकी पहचान की जानी चाहिए और उन्हें जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए।

    न्यायाधिकरण ने इस योजना के लिए निर्माण सामग्री के उपयोग में चिंताजनक विसंगतियों को भी चिह्नित किया। जम्मू और कश्मीर प्रदूषण नियंत्रण समिति की एक अनुपालन रिपोर्ट से पता चला कि परियोजना में 74,000 मीट्रिक टन से अधिक सामग्री की खपत हुई।

    जबकि निपटान परमिट केवल 7,792 मीट्रिक टन के लिए ही उपलब्ध थे। अन्य 63,940 मीट्रिक टन सामग्री सड़क कटाई से निकले मलबे के कारण थी, जिससे 2,728 टन की विसंगति रह गई। इसका संज्ञान लेते हुए अधिकरण ने अपने आदेश में कहा है कि यह प्रथम दृष्टया दर्शाता है कि परियोजना के लिए उपयोग किए गए 2728.82 मीट्रिक टन खनिज का अवैध निष्कर्षण किया गया था।

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    लोक निर्माण विभाग के एक्सईएन भी नहीं दे पाए संतोषजनक उत्तर

    लोक निर्माण विभाग के एग्जीक्यूटिव इंजीनियर, जो सुनवाई के दौरान वर्चुअल रूप से उपस्थित हुए, गायब सामग्री के लिए संतोषजनक स्पष्टीकरण देने में विफल रहे। एनजीजी खनन विभाग के सचिव को निर्देश दिया है कि वे इस अवैध खनन को रोकने के लिए क्या कार्रवाई की गई है, यदि कोई हो, इसका खुलासा करें और इस विसंगति का पूरा स्पष्टीकरण दें।

    सुनवाई के दौरान सुल्तानपुरा गलगज़ना और धोबी घाट स्थित नाला तलरी सहित पुलों के बेहद करीब स्थित स्थानों से नदी तल की सामग्री उठाए जाने का मुद्दे का उललेा करते हुए बताया कि इस इस तरह की गतिविधियों से पुलों की नींव की स्थिरता को खतरा है।

    पर्यावरणविद्ध और सामाजिक कार्यकर्ता राजा मुजफ्फर बट ने कहा कि यह मामला बहुत दिलचस्प है। इस मामले की सुनवाई के दौरान एनजीटी ने कहा कि राजवार के जंगल केवल लकड़ी के भंडार नहीं हैं। ये हिमालयी काले भालू, तेंदुए, सियार और हिरण सहित लुप्तप्राय वन्यजीवों का घर हैं।

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    परियोजना का जितना अध्ययन करो उतने उल्लंघन सामने आएंगे

    एनजीटी ने कहा कि सरकार द्वारा स्वयं वन भूमि हस्तांतरण के दस्तावेजों में इस क्षेत्र में दुर्लभ प्रजातियों की उपस्थिति दर्ज की गई थी। फिर भी अनिवार्य वन्यजीव मंज़ूरी प्राप्त कि जाने के लेकर संबंधित प्रशासन स्पष्ट नहीं है।

    एनजीटी ने अपने आदेश में बताया कि उसने भूमि हस्तांतरण संबंधी प्रस्ताव के पृष्ठ 320 में पाया कि संबंधित क्षेत्र में वनस्पतियों और जीवों की दुर्लभ लुप्तप्राय प्रजातियां हैं जिनमें हिमालयी काला भालू, तेंदुआ, सियार और हिमालयी हिरण शामिल हैं।"

    याचिकाकर्ता ने रसिख रसूल ने कहा इस परियोजना का जितना आप अध्ययन करेंगे, आपको उतनी विसंगितयां और नियमों का उल्लंघन नजर आएगा। आप हैरान होंगे परियोजना के लिए पेड़ों के कटान की अनुमति 2019 में मिलती है, लेकिन पेड़ वर्ष 2018 मे ही काट लिए गए।

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    वन विभाग ने पुलिस में एफआईआर भी दर्ज कराई

    इसे लेकर वन विभाग ने पुलिस में एफआईआर भी दर्ज कराई है। इसके अलावा इस पूरे क्षेत्र में कई लुप्तप्राय: वन्य प्राणी हैं जो अपने घर से बेघर हो निकटवर्ती बस्तियों का रुख कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि अगर आप नियमों की बात करेंगे तो किसी भी परियोजना के लिए वनीय क्षतिपूर्ति के आधार पर कैंपाके तहत जो पैसा दिा जाना होता है, वह एक वर्ष के भीतर दिया जाना होता है।

    अगर नहीं दिया जाए तो पेड़ों की कटइा्र की अनुमति और वन मजूरी रद हो जाती है। इसके आधार पर यह मंजूरी 2020 में समाप्त हो चुकी और जो भी काम हुआ है, वह अवैध है। मजे की बात यह है कि पहले चरण में हुई अनियमितताओं पर वन विभाग भी आंखें मूूंदे रहा है और अब दूसरे चरण का भी काम शुरु हो रहा है।

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    बंगुस घाटी के लिए पहले ही दो सड़कें हैं

    उन्होंने कहा कि बंगुस घाटी के लिए पहले ही दो सड़कें हैं और दोनों ही सीमा सड़क संगठन ने बनाई हैं। जब हमने याचिका दायर की तो प्रदेश प्रशासन के लोग कहने लगे कि यह डिफेंस रोड है जबकि पहले कह रहे थे कि पर्यटन ढांचे के विकास के लिए है।

    अगर डिफेंस रोड होती तो सीमा सड़क संगठन जिम्मा संभालता। लेकिन वह पहले ही इस पूरे क्षेत्र के लिए दो अलग अलग जगहों से सड़कें तैयार कर चुका हैं जो न सिर्फ सेना की बल्कि आस पास की आबादी की जरुरतें भी पूरी कर रही हैं।

    याचिकाकर्ता ने बताया कि एनजीटी जवाब देने के लिए जम्मू-कश्मीर के मुख्य सचिव को छह सप्ताह का समय दिया है जबकि मामले की सुनवाई नवंबर 2025 में होगी। 

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