सुरक्षाबलों की आंखों में धूल और नई रणनीति... शिक्षित और बिना आपराधिक रिकॉर्ड के युवाओं को भर्ती कर रहे आतंकी संगठन
नौगाम में धमकी भरे पोस्टर मिलने के बाद पुलिस ने जाँच शुरू की और मॉड्यूल का भंडाफोड़ किया। श्रीनगर पुलिस ने मामला दर्ज कर तीन संदिग्धों को गिरफ्तार किया। पूछताछ में मौलवी इरफान अहमद का नाम सामने आया, जिसने डॉक्टरों को कट्टरपंथी बनाया। फरीदाबाद विश्वविद्यालय से डॉ. गनई और डॉ. सईद गिरफ्तार हुए, जहां विस्फोटक सामग्री मिली।
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सुरक्षाबलों की आंखों में धूल और नई रणनीति...
राज्य ब्यूरो, जम्मू। जम्मू-कश्मीर में आतंकी संगठन अब सुरक्षाबलों की नजरों से बचने के लिए ऐसे युवाओं को भर्ती कर रहे हैं, जिनका कोई पिछला आपराधिक रिकॉर्ड या अलगाववादी जुड़ाव नहीं है।
यह नई रणनीति दो दशक पहले उनके द्वारा अपनाई गई कार्यप्रणाली से बिल्कुल अलग है, जिसमें आतंकी संगठनों से जुड़े लोगों को तरजीह दी जाती थी।
सफेदपोश आतंकी मॉड्यूल की जांच कर रहे जांचकर्ताओं को अब तक गिरफ्तार या पूछताछ किए गए आरोपियों में एक अलग पैटर्न और एक समान कारण मिला है। एक अधिकारी ने कहा कि डॉ. आदिल राथर, उनके भाई डा. मुजफ्फर राथर और डा. मुजम्मिल गनई जैसे आरोपियों का कोई पिछला आपराधिक रिकार्ड या राष्ट्रविरोधी गतिविधियों में संलिप्तता नहीं है।
अधिकारी ने कहा कि इन कट्टरपंथी युवाओं के परिवार के सदस्यों का भी किसी अलगाववादी या आतंकवादी संगठन से कोई पुराना संबंध नहीं है। अधिकारी ने कहा कि यहां तक कि डा. उमर नबी जो 10 नवंबर को दिल्ली के लाल किला मेट्रो स्टेशन के बाहर विस्फोट करने वाली कार चला रहा था, उसका भी कोई पिछला रिकार्ड नहीं था। उनका परिवार भी इस मामले में बेदाग रहा है।
सूत्रों के अनुसार ऐसा लगता है कि यह जम्मू-कश्मीर या सीमा पार पाकिस्तान में सक्रिय आतंकी आकाओं की सोची समझी चाल है ताकि उच्च शिक्षित युवाओं और बिना किसी आपराधिक रिकार्ड वाले लोगों को लुभाया जा सके। अधिकारी ने कहा किसी के लिए भी यह सोचना अकल्पनीय होगा कि डाक्टरों का एक समूह आतंकी गतिविधियों में शामिल होगा। इसलिए इसने इन आरोपियों को शुरू से ही एक कवर प्रदान कर दिया।
अक्टूबर के मध्य में नौगाम के बनपोरा में दीवारों पर पुलिस और सुरक्षाबलों को धमकी भरे पोस्टर दिखाई देने के बाद इस माड्यूल का भंडाफोड़ हुआ जिसके बाद जांच शुरू हुई।श्रीनगर पुलिस ने 19 अक्टूबर को मामला दर्ज किया और एक समर्पित टीम का गठन किया।
सीसीटीवी फुटेज के सावधानीपूर्वक फ्रेम-दर-फ्रेम विश्लेषण के बाद जांचकर्ताओं ने पहले तीन संदिग्धों आरिफ निसार डार उर्फ साहिल, यासिर उल अशरफ और मकसूद अहमद डार उर्फ शाहिद की पहचान की और उन्हें गिरफ्तार कर लिया।
इन तीनों के खिलाफ पथराव के मामले दर्ज थे और इन्हें पोस्टर चिपकाते हुए देखा गया था। इनसे पूछताछ के बाद शोपियां के एक पूर्व पैरामेडिक से इमाम उपदेशक बने मौलवी इरफान अहमद को गिरफ्तार किया गया जिसने पोस्टर मुहैया कराए थे और माना जाता है कि उसने चिकित्सा समुदाय तक अपनी आसान पहुंच का इस्तेमाल करके डाक्टरों को कट्टरपंथी बनाया। यह सुराग आखिरकार श्रीनगर पुलिस को फरीदाबाद के अल फलाह विश्वविद्यालय ले गया जहां उन्होंने डा. गनई और डा. शाहीन सईद को गिरफ्तार किया।
यहीं से अमोनियम नाइट्रेट, पोटेशियम नाइट्रेट और सल्फर सहित रसायनों का भारी जखीरा जब्त किया गया था। जांचकर्ताओं का मानना है कि पूरा माड्यूल डाक्टरों की एक मुख्य तिकड़ी द्वारा चलाया जा रहा था।
गनई, डा. उमर नबी दिल्ली में विस्फोट करने वाली विस्फोटकों से लदी कार का चालक और मुज़फ़्फ़र राथर फरार है। आठवें गिरफ़्तार व्यक्ति डा. अदील राथर जो फरार डा. मुज़फ़्फ़र राथर का भाई है। एसके पास से एके-56 राइफल ज़ब्त की गई थी।
उस की भूमिका की अभी भी जांच चल रही है। हालांकि इन संदिग्धों का प्रोफ़ाइल 20 साल पहले के भर्ती हुए लोगों के प्रोफाइल से बिल्कुल अलग है। अधिकारी ने कहा कि 2000 के दशक की शुरुआत से 2020 तक आकाओं का ध्यान उन युवाओं पर था जिनका पहले से ही आतंकवाद से जुड़ाव था।
इस 20 साल की अवधि में मारे गए कई आतंकवादियों ने किसी न किसी समय हथियार छोड़ दिए थे ताकि वे फिर से आतंकवाद में शामिल हो सकें।
अधिकारी के अनुसार विभिन्न जेलों में नज़रबंदी के दौरान बड़ी संख्या में युवाओं को कट्टरपंथी बनाया गया। अधिकारी ने आगे कहा हालांकि 2019 के बाद के दौर में इन पर बढ़ती निगरानी के कारण, आतंकवादी संचालक इन लोगों को अपने समूह में शामिल करने से कतराते दिख रहे हैं।

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