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    विकास बनाम पर्यावरण: 35000 पेड़ों पर संकट, रोजगार और जंगल के बीच उलझा झारखंड का यह गांव

    सीसीएल की कारो ओपन कास्ट परियोजना के लिए 35 हजार पेड़ों पर संकट है जिससे पर्यावरण को खतरा है। परियोजना से रोजगार की उम्मीद और पेड़ों की कटाई के विरोध के कारण ग्रामीण दो गुटों में बंट गए हैं। कंपनी ने पौधारोपण के लिए वन विभाग को राशि दी है लेकिन अब तक पेड़ नहीं लगाए गए हैं। ग्रामीणों के विरोध के बीच गहराया विवाद।

    By RAJNISH PRASAD Edited By: Chandan Sharma Updated: Fri, 22 Aug 2025 03:26 PM (IST)
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    35 हजार से अधिक पेड़ों पर संकट।

    रजनीश प्रसाद, जागरण, बेरमो। कोल इंडिया की मेगा प्रोजेक्ट कारो ओपन कास्ट परियोजना (ओसीपी) को लेकर क्षेत्र में तनाव और विवाद बढ़ता जा रहा है। सीसीएल बीएंडके एरिया के इस प्रोजेक्ट के अंतर्गत 226 हेक्टेयर वनभूमि पर बड़े पैमाने पर कोयला खनन की तैयारी हो रही है।

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    यहां लगभग 62 मिलियन टन कोयले का भंडार होने का अनुमान है। प्रबंधन ने पहले चरण में लगभग 3500 पेड़ काटने का लक्ष्य रखा है, जिनमें से कई पेड़ पहले ही गिरा दिए गए हैं। ग्रामीण लगातार पेड़ कटाई का विरोध कर रहे हैं।

    बड़ा प्रश्न यह है कि एक पेड़ के बदले छह पेड़ लगाने की सहमति के बावजूद आज तक एक भी पौधा नहीं लगाया गया है। कंपनी का कहना है कि पौधारोपण के लिए राशि वन विभाग को सौंप दी गई है, लेकिन विभाग की ओर से अब तक कोई पहल नहीं दिखी है।

    इस स्थिति में परियोजना क्षेत्र का पर्यावरणीय संकट गहराने का खतरा बढ़ गया है। वन विभाग के अनुसार सीसीएल ने क्षतिपूर्ति राशि दे दी है। जमीन चिन्हित नहीं है। तीन साल में पौधारोपण किया जाना है।

    2006 से अटका मामला, 2025 में मिली मंजूरी

    कारो ओसीपी परियोजना के लिए पर्यावरणीय स्वीकृति की प्रक्रिया वर्ष 2006 में शुरू हुई थी। लंबी पत्राचार प्रक्रिया के बाद वर्ष 2018 में स्टेज-वन की मंजूरी मिली। लगभग 19 वर्ष बाद 2025 में स्टेज-टू की स्वीकृति दी गई, जिसके बाद कोयला उत्पादन का रास्ता साफ हो गया।

    प्रबंधन का दावा है कि इस खदान से अगले 16 वर्षों तक हर साल 10 से 12 लाख टन कोयला निकाला जा सकेगा। पिछले वर्ष 12 दिसंबर को तत्कालीन डीएफओ रजनीश कुमार ने क्षेत्र का निरीक्षण किया था। इसके बाद पेड़ों की नंबरिंग और कटाई की प्रक्रिया शुरू हुई।

    विभाग ने हाल ही में पेड़ कटाई की अनुमति भी जारी कर दी। योजना के अनुसार परियोजना क्षेत्र के पांच किलोमीटर दायरे में 6250 पौधारोपण की व्यवस्था होनी थी, लेकिन अब तक कोई असर नहीं दिखा है।

    35 हजार पेड़ों पर संकट, ठेका कंपनी ने काटे 1200 पेड़

    प्रबंधन की योजना के अनुसार आने वाले दिनों में लगभग 35 हजार पेड़ काटे जाएंगे। इनमें से 10,200 पेड़ों की कटाई का टेंडर जारी हो चुका है। यह कार्य शशि प्रताप सिंह जेबी कंपनी को मिला है, जिसने अब तक 1200 पेड़ों की कटाई कर दी है।

    कारो परियोजना पदाधिकारी सुधीर सिन्हा का कहना है कि खनन क्षेत्र से बड़े पेड़ों को जड़ सहित उखाड़कर दूसरी जगह लगाया जाना है, जबकि छोटे पेड़ों की कटाई की जा रही है। कंपनी का कहना है कि पौधारोपण के लिए राशि फारेस्ट विभाग को उपलब्ध कराई जा चुकी है। इसकी जिम्मेदारी उनकी है।

    ग्रामीणों में गुटबाजी, हिंसक झड़प तक

    पेड़ कटाई को लेकर ग्रामीण दो गुटों में बंट गए हैं। एक गुट प्रबंधन का समर्थन कर रहा है, जिसमें जितेंद्र महतो, दिगंबर महतो और टीपू महतो जैसे ग्रामीण शामिल हैं। दूसरा गुट जंगल बचाने की लड़ाई लड़ रहा है, जिसका नेतृत्व पूर्व ऊर्जा मंत्री लालचंद महतो के भतीजे वतन महतो, अहमद हुसैन और सूरज महतो कर रहे हैं।

    20 जुलाई को बैदकारो गांव में दोनों गुटों के बीच हिंसक झड़प हुई, जिसके बाद मामला गांधीनगर थाना पहुंचा। दोनों पक्षों ने एक-दूसरे के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराई, जिससे स्पष्ट है कि परियोजना केवल पर्यावरणीय संकट ही नहीं, बल्कि सामाजिक तनाव भी बढ़ा रही है।

    पर्यावरणीय खतरा, बिगड़ सकता है संतुलन

    कारो ओसीपी परियोजना का पूरा इलाका वनभूमि में आता है। विशेषज्ञों का कहना है कि हजारों पेड़ों की कटाई से क्षेत्रीय पर्यावरण पर गहरा असर पड़ेगा। यदि समय पर पौधारोपण नहीं हुआ, तो इलाके का जलवायु और भूगर्भीय संतुलन बिगड़ सकता है।

    स्थानीय लोगों का कहना है कि पेड़ कटाई से उन्हें न केवल जलवायु संकट झेलना पड़ेगा, बल्कि जीव-जंतुओं और खेती-किसानी पर भी असर पड़ेगा। खनन कार्य से रोजगार और क्षेत्रीय विकास की उम्मीद भी जुड़ी हुई है।

    पौधारोपण के लिए फारेस्ट विभाग को सीसीएल राशि उपलब्ध करा चुकी है। माइंस विस्तारीकरण को लेकर पेड़ों की कटाई होनी है।

    - सुधीर सिन्हा, प्रोजेक्ट आफिसर, कारो परियोजना