Baba Baidyanath: बाबा बैद्यनाथ को सावन में लग रहा पूरी और आलू की भुजिया का भोग, भक्तों की उमड़ रही भीड़
देवघर स्थित बाबा बैद्यनाथ मंदिर बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यहाँ की परंपराएँ अनूठी हैं बांग्ला पंचांग से पूजा विधि तय होती है। सावन में बाबा को पूरी और भुजिया का भोग लगता है जो शुद्ध घी में बनता है। अन्य महीनों में लड्डू पेड़ा और पंच मेवा अर्पित किए जाते हैं। साल में कुछ विशेष अवसरों पर विशेष भोग भी लगता है।

आरसी सिन्हा, देवघर। द्वादश ज्योतिर्लिंग में एक बाबा बैद्यनाथ झारखंड के देवघर में विराजते हैं। इस दरबार से अनंत कथाएं जुड़ी हैं। परंपराओं की लड़ी ऐसी कि कथा कहने और सुनने में पूरी रात बीत जाएगी। प्रातःकालीन पूजा और संध्या के समय आरती होती है।
बारह मास में भोलेनाथ को अलग-अलग भोग लगते हैं। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि यहां की परंपरा दूसरे दरबार से बिल्कुल अलग है। बाबा बैद्यनाथ को हर दिन पूजा के बाद भोग लगता है। बाबा मंदिर बांग्ला पंचांग से चलता है।
पूजा की रीत-नीति सब बांग्ला पंचांग से तय होता है। पंचांग के मुताबिक 17 जुलाई से सावन शुरू हुआ है। और बांग्ला सावन शुरू होते ही पहले दिन शाम में बेल पत्र की प्रदर्शनी लगी। इसी सावन के हिसाब से 16 अगस्त तक बाबा बैद्यनाथ को प्रतिदिन पूरी और भुजिया का भोग लगना शुरू हो गया।
शुद्ध घी में होता तैयार
सावन में शुद्ध घी में तैयार पूरी और बिना नमक के आलू की भुजिया का भोग प्रतिदिन प्रातःकालीन पूजा के बाद शिवलिंग के समीप अर्पित होता है। भादो, आश्विन और कार्तिक में प्रातःकालीन पूजा के समय लड्डू, पेड़ा और पंच मेवा का भोग लगता है। बहुत ही अलौकिक दरबार है।
मंदिर में लगता है विशेष भोग
दुनिया भर में बाबा के करोड़ों भक्त हैं। बहुत कम ही लोग हैं जो यह जानते होंगे कि उनकी आस्था के भगवान को प्रतिदिन कौन सा भोग लगता है। मंदिर के स्टेट पुरोहित श्रीनाथ महाराज का कहना है कि साल में दो चार ऐसे अवसर आते हैं जब भोलेनाथ को विशेष भोग लगता है।
सावन में संक्रांति तक पूरी भुजिया का विशेष भोग लगता है। यह भोग गर्भगृह में ही लगता है। बाकी के महीनों में अलग-अलग भोग बनता है, जो श्रीयंत्र मंदिर के अंदर बाबा के नाम पर पुजारी अर्पित कर देते हैं। यहीं से उनका ध्यान कर उपसर्ग कर दिया जाता है।
महीने और ऋतु के हिसाब से बदलता है भोग
आपके मन में यह विचार आ रहे होंगे कि हर महीने कैसे भोग बदलता जाता है। आपको बता दें कि सावन, भादो, आश्विन और कार्तिक मास को छोड़ कर शेष माह में श्रीयंत्र मंदिर में बाबा बैद्यनाथ के नाम भोग लगता है। यह मंदिर परिसर में है।
यहां दुर्गा पूजा और विशेष अवसर पर हवन होता है। यह बहुत ही पावन स्थल है। मंदिर की पूजा विधि को जानने वाले परिसर में आने के बाद यहां अवश्य शीश नवाते हैं। इसी हवन कुंड में अगहन माह में दही-चूड़ा, बैशाख में चना-जौ का सत्तू, गुड़ और दही और आषाढ़ में आद्रा नक्षत्र में खीर का भोग लगाया जाता है।
माघ महीना में खिचड़ी का भोग मंदिर परिसर स्थित दुर्गा मंडप के समीप तैयार होता है और यहीं से वह भोग बाबा के नाम लगता है।
शरद ऋतु के समय भोलेनाथ को शाम के श्रृंगार पूजा के बाद पुष्प से बने मोर मुकुट को चढ़ाया जाता है। उसके ऊपर से मेखला ओढ़ाया जाता है। यह सुंदर साटन के कपड़ा का बना होता है। यह यहां की प्राचीन परंपरा है। ऐसी कई परंपराएं हैं, जिसका निर्वहन तब से अब तक हो रहा है।
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