Neeraj Murder Case: हत्यारा कौन? धनबाद में 8 साल पहले हुए मर्डर केस में आए फैसले ने खड़े किए नए सवाल
धनबाद के पूर्व डिप्टी मेयर नीरज सिंह की हत्या के मामले में अदालत के फैसले ने पुलिस की जांच पर सवाल खड़े कर दिए हैं। आठ साल बाद भी असली हत्यारा अज्ञात है जिससे जनता में आक्रोश है। नीरज सिंह की हत्या 2017 में हुई थी जिसमें उनके साथ तीन और लोग मारे गए थे।
जागरण संवाददाता, धनबाद। धनबाद के बहुचर्चित पूर्व डिप्टी मेयर नीरज सिंह हत्याकांड में अदालत के फैसले ने पुलिस की जांच पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
21 मार्च 2017 को दिनदहाड़े हुई इस सनसनीखेज वारदात में नीरज सिंह समेत चार लोगों की अंधाधुंध गोलियों से हत्या कर दी गई थी। आठ साल बाद भी जब अदालत ने कई आरोपितों को बरी कर दिए, तो सबसे बड़ा सवाल यही उठ रहा है कि आखिर नीरज सिंह की हत्या किसने की। पुलिस की जांच पर भी अब सवाल उठने लगे हैं।
इस तरह हुई थी हत्या
शाम के वक्त नीरज सिंह अपनी फार्च्यूनर जेएच10एआर-4500 से रघुकुल स्थित आवास लौट रहे थे। सरायढेला के स्टील गेट के पास बने 15 स्पीड ब्रेकर के कारण गाड़ी धीमी हुई और तभी घात लगाए बाइक सवार हमलावरों ने गाड़ी को चारों ओर से घेर लिया।
एके 47, कारबाइन और 9 एमएम पिस्टल से हुई अंधाधुंध फायरिंग में 50 से अधिक गोलियां चली। पोस्टमार्टम में नीरज सिंह के शरीर से 17 गोलियां बरामद हुईं। उनके साथ मौजूद ड्राइवर ललटू महतो, साथी अशोक यादव और बाडीगार्ड मुन्ना तिवारी की मौके पर मौत हो गई।
राजनीतिक और पारिवारिक रसूख
नीरज सिंह, यूपी के बलिया के पूर्व विधायक विक्रमा सिंह के भतीजे थे। उनके चचेरा भाई संजीव सिंह उस समय झरिया से बीजेपी विधायक थे। राजनीतिक व कारोबारी रसूख के कारण इस हत्याकांड के पीछे बड़े पैमाने पर साजिश की आशंका जताई गई थी।
ऐसा मचा था बवाल
हत्या की खबर फैलते ही धनबाद में तनाव फैल गया। समर्थक सड़क पर उतर आए, बाजारों में अफरा-तफरी मच गई। झरिया और सरायढेला समेत कई जगहों पर दुकानों के शटर गिरा दिए गए। सड़क जाम और पथराव की घटनाओं के बीच पुलिस को भारी संख्या में बल तैनात करना पड़ा और धारा 144 लागू करनी पड़ी।
आम जनता की कसक
धनबाद की गलियों में उस दिन गूंजे गोलियों के धमाके आज भी लोगों के जेहन में ताज़ा हैं। लेकिन फैसले के बाद उठ रहे सवाल इस काले अध्याय को और भी गहरा कर देते हैं। यह मामला अब सिर्फ एक हत्या नहीं, बल्कि पुलिस अनुसंधान उठे सवालों का प्रतीक बन गया है।
जांच पर अब उठ रहे सवाल
हमले की पेशेवर तरीके से की गई प्लानिंग ने शुरू से ही पुलिस की जांच को चुनौती दी। अपराधियों ने घटना के बाद बाइक से संकरी गलियों में भागकर पुलिस को चकमा दिया। 50 से ज्यादा खोखे और अत्याधुनिक हथियारों के इस्तेमाल ने इसे एक संगठित अपराध साबित किया।
लेकिन आठ साल बाद जब अदालत ने फैसले में कई आरोपितों को बरी कर दिया, तो सवाल यही उठ रहे हैं। क्या पुलिस ने जानबूझकर कमजोर अनुसंधान किया, या फिर राजनीतिक दबाव में सबूतों से समझौता हुआ? आखिर इतनी चर्चित हत्या में हत्यारा कौन?
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