Jamshedpur: पारडीह-बालीगुमा के एलिवेटेड कॉरिडोर में फंसा वनभूमि का पेंच, अंतिम मंजूरी पाने के लिए भटक रही फाइल
जमशेदपुर में राष्ट्रीय राजमार्ग 33 पर एलिवेटेड कॉरिडोर परियोजना में वन भूमि का मामला फिर से अटक गया है। सरायकेला-खरसावां जिले में भूमि हस्तांतरण का मामला विभागों के बीच घूम रहा है। एनएचएआई ने स्पष्टीकरण दिया है लेकिन अंतिम मंजूरी अभी भी प्रतीक्षित है। वन विभाग ने फाइल को आगे भेज दिया है और अब राज्य सरकार की मंजूरी का इंतजार है।

जागरण संवाददाता, जमशेदपुर। राष्ट्रीय राजमार्ग (एनएच) 33 पर पारडीह काली मंदिर से बालीगुमा तक बनने वाली महत्वाकांक्षी 4/6 लेन एलिवेटेड कॉरिडोर परियोजना की राह में एक बार फिर वन भूमि का पेंच फंस गया है।
कॉरिडोर निर्माण के लिए सरायकेला-खरसावां जिले में 1.8569 हेक्टेयर संरक्षित वन भूमि के हस्तांतरण का मामला आवश्यक स्वीकृतियों के लिए विभिन्न विभागों के बीच घूम रहा है। इस भूमि पर हाईटेंशन टावर को शिफ्ट किया जाना है, जो कॉरिडोर निर्माण का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
विभागीय सवालों में उलझा मामला
यह पूरा मामला भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआइ) द्वारा भेजे गए एक प्रस्ताव से जुड़ा है, जिस पर राज्य सरकार और वन विभाग ने कुछ बिंदुओं पर स्पष्टीकरण मांगा था।
मुख्य रूप से यह पूछा गया था कि क्या प्रस्तावित एलिवेटेड रोड की पूरी लंबाई के लिए एक ही बार में वन संरक्षण अधिनियम के तहत प्रस्ताव दिया जाना चाहिए और टुकड़ों में प्रस्ताव क्यों दिए जा रहे हैं। एनएचएआइ ने इन सभी बिंदुओं का जवाब तो दाखिल कर दिया है, लेकिन अंतिम मंजूरी का इंतजार अब भी जारी है।
कॉरिडोर के लिए कई प्रस्ताव
एनएचएआई ने 25 जुलाई को सौंपे अपने विस्तृत जवाब में स्पष्ट किया कि एनएच-33 के मुख्य फोर लेन चौड़ीकरण के लिए 2018 में ही वन स्वीकृति मिल चुकी थी। बाद में जब एलिवेटेड कॉरिडोर की जरूरत पड़ी, तो इसके लिए अलग-अलग प्रस्ताव दिए गए।
इनमें खुद एलिवेटेड कॉरिडोर के लिए 2.1812 हेक्टेयर, यूटिलिटी शिफ्टिंग के लिए 4.644 हेक्टेयर और अब हाईटेंशन टावर शिफ्टिंग के लिए 1.8569 हेक्टेयर भूमि का प्रस्ताव शामिल है। एनएचएआइ का तर्क है कि परियोजना कई वन प्रमंडलों से गुजरती है, इसलिए सक्षम अधिकारियों के निर्देश पर ही अलग-अलग प्रस्ताव दिए गए हैं, जो मंजूरी के विभिन्न स्तरों पर लंबित हैं।
अग्रिम कार्रवाई के लिए भेजी गई फाइल
इस बीच, सरायकेला की वन प्रमंडल पदाधिकारी (डीएफओ) शबा आलम अंसारी ने 8 अगस्त प्रधान मुख्य वन संरक्षक को पत्र भेजकर मामले की जानकारी दी है। पत्र में कहा गया है कि एनएचएआइ से प्राप्त निराकरण प्रतिवेदन को भारत सरकार के 'परिवेश' पोर्टल पर अपलोड कर दिया गया है।
डीएफओ ने आवश्यक अग्रिम कार्रवाई के लिए फाइल को वरिष्ठ अधिकारी के पास भेज दिया है। अब गेंद वन विभाग के आला अधिकारियों और राज्य सरकार के पाले में है, जिनकी अंतिम मंजूरी के बाद ही परियोजना का यह महत्वपूर्ण हिस्सा आगे बढ़ सकेगा।
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