Jamshedpur News : पिता चलाते हैं रिक्शा, मां मांजती है बर्तन, पुरस्कार लेने हवाई जहाज से बेटी पहुंची दिल्ली
टाटा वर्कर्स यूनियन प्लस टू उच्च विद्यालय की छात्रा पानमई तियू ने कभी सोचा भी नहीं होगा कि उसे हवाई जहाज में चढ़ने का मौका मिलेगा। उसके पिता रिक्शा चलाते हैं और मां बर्तन मांजती है। छात्रा स्कूल का राष्ट्रीय स्वच्छ विद्यालय पुरस्कार नई दिल्ली में ग्रहण करेगी।

वेंकटेश्वर राव, जमशेदपुर : आपके सपने तभी पूरे हो जाते हैं जब आपके बच्चों की आंखों में उन सपनों को आप पूरा होते हुए देखते हैं जो उन्होंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था। थैंक्यू यूनिसेफ तथा शिक्षा विभाग जिन्होंने हमारे बच्चों के उन सपनों को भी पूरा करने की कोशिश की जिन्होंने अपने सपनों में भी कभी यह सपना नहीं देखा होगा कि एक बंद, छोटे से कमरे में जहां सूरज की रोशनी तक नहीं पहुंचती वहां से निकल कर आसमान की ऊंचाइयों को छू सके।
ये शब्द हमारे नहीं बल्कि राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार प्राप्त शिक्षिका शिप्रा मिश्रा की है। इन शब्दों के भाव को टाटा वर्कर्स यूनियन प्लस टू स्कूल कदमा की इस शिक्षिका ने इंटरनेट माध्यम में स्कूल की ही छात्रा पानमई तियू के लिए व्यक्त किया है। अब सवाल यह उठता है कि इस छात्रा के लिए इस शिक्षिका ने ये भाव क्यों प्रकट किए। दरअसल यह छात्रा अपने प्रधानाध्यापिका सेतेंग केरकेट्टा के साथ नई दिल्ली में राष्ट्रीय स्वच्छ विद्यालय पुरस्कार ग्रहण करने गई है। वह भी हवाई जहाज में चढ़कर। रांची एयरपोर्ट पर इस शिक्षिका ने छात्रा को हवाई जहाज पर बिठाया तथा माथे को चूमा। इस छात्रा का चेहरे पर भी मुस्कान थी।
इस छात्रा ने कभी नहीं सोचा था कि वह हवाई जहाज पर चढ़ पाएगी। पानमई के पिता रिक्शा चलाते हैं और मां दूसरे के घरों में बर्तन धोती है। वे लोग कदमा के बागे बस्ती में एक छोटे से घर में रहते हैं। सूरज की रौशनी भी इनके घर में नहीं घुस पाती। शुक्रवार को इनकी बेटी आसमान की ऊंचाईयों को छूकर नई दिल्ली में राष्ट्रीय स्वच्छ विद्यालय पुरस्कार ग्रहण करने पहुंच गई।
इसलिए स्कूल को मिल रहा राष्ट्रीय स्वच्छ विद्यालय पुरस्कार
टाटा वर्कर्स यूनियन प्लस टू स्कूल को राष्ट्रीय स्वच्छ विद्यालय पुरस्कार कई इनोवेशन व स्कूल की व्यवस्था में परिवर्तन के लिए मिल रहा है। इसमें विज्ञान शिक्षिका शिप्रा मिश्रा का अहम योगदान है। स्कूल ने प्लास्टिक की बेकार पड़ी बोतलों से पार्क बनाया। एमएचएम लैब स्थापित कर छात्राओं को माहवारी पर बोलने की झिझक को तोड़ना। स्कूल के छात्रों ने अपने व्यवहार में परिवर्तन किया। शौचालय में आटोमेटिक उपकरण लगाया ताकि दुर्गंध आते ही पानी का बहाव शौच के स्थान पर हो जाए।
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