जमशेदपुर में एक ही छत के नीचे से 90 लाख की फाइल गायब, DC कार्यालय में मचा हड़कंप, गर्भवती महिलाओं का हक अटका
जमशेदपुर में प्रशासनिक लापरवाही का मामला सामने आया है जहां यूरेनियम कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (यूसिल) द्वारा कुपोषित बच्चों और गर्भवती महिलाओं के लिए दिए गए 90 लाख रुपये 18 महीने से अटके हुए हैं। आरटीआई से पता चला कि उपायुक्त कार्यालय और समाज कल्याण विभाग एक-दूसरे पर जिम्मेदारी डाल रहे हैं जिससे जरूरतमंदों तक मदद नहीं पहुँच पा रही है।

जागरण संवाददाता, जमशेदपुर। समाहरणालय में प्रशासनिक लापरवाही और व्यवस्था की सुस्ती का एक हैरान करने वाला मामला सामने आया है।
एक ही बिल्डिंग में स्थित उपायुक्त (डीसी) कार्यालय से जिला समाज कल्याण विभाग तक 90 लाख रुपये की महत्वपूर्ण फाइल 18 महीनों के लंबे इंतजार के बाद भी अपनी मंजिल तक नहीं पहुंच सकी है।
यह राशि यूरेनियम कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (यूसिल) ने कॉरपोरेट सोशल रिस्पान्सिबिलिटी (सीएसआर) के तहत कुपोषित बच्चों और गर्भवती महिलाओं के स्वास्थ्य पर खर्च करने के लिए दी थी।
अब सूचना के अधिकार (आरटीआइ) के तहत मांगी गई जानकारी में दोनों विभाग एक-दूसरे के विपरीत दावे कर रहे हैं, जिससे पूरी प्रक्रिया पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं।
क्या है पूरा मामला?
मामले की शुरुआत तब हुई जब यूसिल ने वित्तीय वर्ष 2022-23 में जिला प्रशासन को विभिन्न सामाजिक कार्यों के लिए सीएसआर के तहत 6 करोड़ 43 लाख रुपये की राशि मुहैया कराई।
इसी राशि में से उपायुक्त कार्यालय की विकास शाखा ने अपने पत्रांक 124, दिनांक 11 मार्च 2024 के माध्यम से 90 लाख रुपये की राशि समाज कल्याण विभाग को आवंटित की।
इस फंड का स्पष्ट उद्देश्य जिले में कुपोषण को दूर करना और गर्भवती महिलाओं की स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाना था। लेकिन हैरानी की बात यह है कि आवंटन का आदेश जारी होने के 18 महीने बाद भी यह राशि जरूरतमंदों तक पहुंचना तो दूर, संबंधित विभाग तक ही नहीं पहुंची है।
आरटीआइ ने खोली पोल
इस प्रशासनिक उलझन का खुलासा तब हुआ जब सामाजिक कार्यकर्ता सदन ठाकुर ने सूचना के अधिकार के तहत समाज कल्याण विभाग से जानकारी मांगी।
उन्होंने पूछा कि उपायुक्त कार्यालय से 11 मार्च 2024 को आवंटित 90 लाख रुपये की राशि कहां और कैसे खर्च की गई? इस पर जिला समाज कल्याण पदाधिकारी संध्या रानी ने 21 अगस्त को लिखित जवाब देकर सबको चौंका दिया।
उन्होंने अपने जवाब में स्पष्ट रूप से कहा कि उपायुक्त कार्यालय के आदेश के तहत उन्हें योजना के क्रियान्वयन के लिए अधिकृत तो किया गया है, लेकिन उक्त 90 लाख रुपये की राशि विभाग को आज तक उपलब्ध नहीं कराई गई है।
यूसिल ने दिए थे 6.43 करोड़
मामले की तह तक जाने के लिए सदन ठाकुर ने यूसिल से भी आरटीआई के जरिए जानकारी मांगी थी। यूसिल ने 13 मार्च 2025 को दिए अपने जवाब में पुष्टि की कि कंपनी ने वित्तीय वर्ष 2022-23 में जिला प्रशासन को कुल 6 करोड़ 43 लाख 7 हजार रुपये दिए थे।
इसमें डेवलपमेंट फंड के लिए दो करोड़, हेल्थ केयर के लिए 73.92 लाख और खनन क्षेत्र में स्वास्थ्य व कुपोषण को दूर करने के लिए 3 करोड़ 69 लाख 15 हजार रुपये शामिल थे। यूसिल के इस जवाब से यह साफ हो गया कि प्रशासन के पास फंड की कोई कमी नहीं थी।
आमने-सामने विभाग, बेबस लाभार्थी
अब स्थिति यह है कि एक ही छत के नीचे काम करने वाले दो सरकारी विभाग आमने-सामने हैं। उपायुक्त कार्यालय का दावा है कि राशि आवंटित कर दी गई है, जबकि समाज कल्याण विभाग राशि मिलने से साफ इनकार कर रहा है।
इस खींचतान के बीच वे कुपोषित बच्चे और गर्भवती महिलाएं पिस रही हैं, जिनके स्वास्थ्य के लिए यह राशि जीवनदायिनी साबित हो सकती थी। जिला समाज कल्याण पदाधिकारी संध्या रानी अपने पक्ष पर कायम हैं और साफ तौर पर कह रही हैं कि उन्हें कोई राशि नहीं मिली है।
इस खुलासे के बाद संबंधित अधिकारी कुछ भी स्पष्ट कहने से बच रहे हैं और मामले में जवाबदेही तय होना अभी बाकी है।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।