NH-33 बना मौत का हाईवे, चार साल में 991 लोगों की गई जान
रांची-टाटा एनएच-33 अब मौत का हाईवे बनता जा रहा है। बीते चार वर्षों में 352 सड़क हादसों में 991 लोगों की जान गई है। तेज रफ्तार खतरनाक घुमाव और रोड इंजीनियरिंग की कमियां हादसों का कारण हैं। फोर लेन का काम अधूरा है सड़कें उखड़ चुकी हैं और पुल बंद होने से स्थिति और गंभीर हो गई है।

जागरण संवाददाता, जमशेदपुर। रांची-टाटा एनएच-33 अब ‘मौत का हाईवे’ बन चुका है। रोजाना हो रही सड़क दुर्घटनाएं दर्जनों परिवारों को उजाड़ रही हैं, लेकिन प्रशासन और सरकार की लापरवाही से हालात लगातार बिगड़ते जा रहे हैं।
आंकड़े बताते हैं कि बीते चार-साढ़े चार वर्षों में 352 सड़क हादसों में 991 लोगों की जान जा चुकी है, जबकि 635 लोग घायल हुए हैं। सिर्फ बुंडू, चांडिल, सरायकेला और खरसावां थाना क्षेत्रों में इन वर्षों में 200 लोगों की मौत हुई है।
हादसों के पीछे के कारणों की बात करें तो तेज रफ्तार, खतरनाक घुमाव, रोड इंजीनियरिंग की खामियां, हाईवे पर चेतावनी बोर्ड और संकेतक की कमी, फोर लेन का हाईवे और डिवाइडर का अभाव, रफ्तार पर लगाम के लिए इंटरसेप्टर वाहनों की कमी, फोर लेन का काम अब तक पूरा नहीं होना आदि है।
सड़क चौड़ीकरण की डीपीआर तो तैयार हो चुकी है, लेकिन काम की गति बेहद धीमी है। दस वर्षों से फोर लेन निर्माण अधूरा पड़ा है। कई स्थानों पर सड़क उखड़ चुकी है, जिससे दुर्घटनाओं का खतरा और बढ़ गया है। चिलगु-शहरबेड़ा पुल पिछले नौ महीनों से बंद है, जिसे मिट्टी डालकर अवरुद्ध कर दिया गया है।
मजबूरी में एनएच को वन-वे कर दिया गया है, जिससे दुर्घटनाएं और बढ़ गई हैं। सड़क पर सुरक्षा के कोई पुख्ता इंतजाम नहीं हैं। भारी वाहन सड़क किनारे अव्यवस्थित रूप से खड़े रहते हैं, न तो कहीं साइनबोर्ड लगे हैं, न ही कट प्वाइंट पर कोई मार्गदर्शन है। शाम के समय हादसों की संख्या और बढ़ जाती है। एनएच-33 अब लोगों के लिए जीवनदायिनी नहीं, बल्कि ‘मौत की फिसलपट्टी’ बनता जा रहा है।
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