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    झारखंड का सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल रिम्स में सुविधाओं का बुरा हाल, मरीजों की जिंदगी से हो रहा खिलवाड़

    झारखंड की लाइफलाइन कही जाने वाली रांची इंस्टीट्यूट आफ मेडिकल साइंसेज (रिम्स) में मरीजों के सर्जरी से लेकर इलाज तक के लिए मिलने वाली सुविधाओं का अभाव है। विभिन्न विभागों द्वारा कंज्यूमेबल आइटम या अन्य उपकरण या बेड मानिटर की मांग की लेकिन वह लंबित पड़ा है। जिस वजह से मरीजों के इलाज की गुणवक्ता पर सवाल उठता है।

    By Kanchan Singh Edited By: Kanchan Singh Updated: Thu, 28 Aug 2025 04:50 PM (IST)
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    रिम्स में मरीजों के सर्जरी से लेकर इलाज तक के लिए मिलने वाली सुविधाओं का अभाव है।

    जागरण संवाददाता, रांची। झारखंड की लाइफलाइन कही जाने वाली रांची इंस्टीट्यूट आफ मेडिकल साइंसेज (रिम्स) में मरीजों के सर्जरी से लेकर इलाज तक के लिए मिलने वाली सुविधाओं का अभाव है।

    विभिन्न विभागों द्वारा कंज्यूमेबल आइटम या अन्य उपकरण या बेड, मानिटर की मांग की लेकिन वह लंबित पड़ा है। जिस वजह से मरीजों के इलाज की गुणवक्ता पर सवाल उठता है।

    अधिकतर बार मरीज खुद से कई कंज्यूमेबल आइटम की खरीदारी करते हैं। यहां हर दिन हजारों मरीज इलाज के लिए आते हैं। विभिन्न विभागों में महीनों से कंज्यूमेबल आइटम की आपूर्ति बंद है।

    सिरिंज, कैनुला, स्लाइन सेट, ग्लव्स और ड्रेसिंग सामग्री जैसी बुनियादी वस्तुएं तक उपलब्ध नहीं हैं। जबकि सबसे अधिक भीड़ न्यूरोसर्जरी विभाग में होती है, जहां इन चीजों का घोर अभाव है।

    कुछ विभागीय स्तर पर फंसे है तो कुछ प्रबंधन स्तर पर 

    स्थिति यह है कि कई आर्डर जो डेढ़ करोड़ से अधिक हैं वे विभागीय स्तर पर फंसे हुए हैं। इसमें न्यूरोसर्जरी विभाग के तीन बड़ी मशीनें इसी वजह से नहीं आ पा रही है।

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    जबकि कुछ रिम्स प्रबंधन की लचर व्यवस्था में अटके हुए हैं। नतीजा यह है कि इलाज करने वाले डाक्टर और नर्स तो परेशान हैं ही, इलाज कराने वाले मरीज और उनके स्वजन कठिनाई झेल रहे हैं।

    न्यूरो सर्जरी विभाग : सालों से अधूरी मांग

    न्यूरो सर्जरी विभाग में मशीनों की कमी किसी भी बड़े हादसे का कारण बन सकती है। विभाग ने वर्षों पहले सर्जिकल माइक्रोस्कोप, सी-आर्म मशीन और ड्रिल मशीन की मांग की थी।

    ये सभी मशीनें ब्रेन सर्जरी के लिए अनिवार्य मानी जाती हैं। इनके अभाव में सर्जरी करना हमेशा एक चुनौती बनी रहती है। न्यूरो सर्जन मानते हैं कि यदि ये मशीनें उपलब्ध होती तो सर्जरी की बारीकियों को बेहतर तरीके से किया जा सकता है साथ ही जो छात्र हैं उन्हें भी एक बेहतर माहौल में सिखने का मौका मिलता।

    इन मशीनों की खरीदारी को लेकर सालभर पहले फाइल बढ़ायी गई, जिसे प्रबंधन के स्तर से विभाग को भेजा गया। तीन माह पहले ही इन खरीदारी को लेकर कुछ सवाल किए गए थे, जिसका जवाब दे दिया गया लेकिन अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया।

    कार्डियोलाजी विभाग : कंडम 68 बेड और मानिटर

    रिम्स के कार्डियोलाजी विभाग की स्थिति और भी खराब है। यहां के सभी बेड और मानिटर कंडम घोषित हो चुके हैं, सभी 14 वर्ष पुराने हो चुके हैं, कई टूट चुके हैं, कई काम ही नहीं कर रहे हैं।

    विभाग ने सभी 68 बेड की मांग वर्षाें पहले की थी, लेकिन आज तक प्रक्रिया ही चल रही है। रिम्स के निदेशक बदल गए लेकिन खरीदारी की प्रक्रिया चल ही रही है।

    यह विभाग गंभीर हृदय रोगियों के लिए है, जहां हर सेकंड कीमती होता है। डाक्टरों का कहना है कि दो वर्ष पहले नए बेड और मानिटर की मांग रखी गई थी, लेकिन अब तक उसकी आपूर्ति नहीं हो सकी है।

    मरीजों के लिए यह स्थिति भयावह है। इलाज के दौरान हर पल मरीज की हार्ट बीट और ब्लड प्रेशर की निगरानी जरूरी होती है। मानिटर के ठीक से काम नहीं करने की वजह से डाक्टरों को पुराने और खराब उपकरणों पर निर्भर रहना पड़ता है।

    क्रिटिकल केयर सेंटर : आपातकालीन स्थिति में संकट

    रिम्स का ट्रामा सेंटर में स्थित क्रिटिकल केयर यूनिट में हर दिन दुर्घटना और गंभीर मामलों के मरीजों से भरा रहता है। लेकिन यहां भी कंज्यूमेबल आइटम की भारी किल्लत है।

    यूनिट से कई बार कार्डियो आउटपुट मानिटर, रिजनल आक्सीमेट्री मानिटर के कंज्यूमेबल की मांग की गई लेकिन नहीं मिल पाया। जिस वजह से मरीजों के इलाज में इसका उपयोग नहीं हो पा रहा है।

    साथ ही आइसीयू मानिटर की भी मांग की जा चुकी है। इससे जुड़े सामान महीनों से नहीं मिले हैं। गंभीर मरीज के भर्ती होने के साथ ही उनके स्वजनों को कई महत्वपूर्ण दवा तक बाहर से खरीदकर लानी पड़ती है।

    यूरोलाजी विभाग : 24 आइटम वर्षों से लंबित

    यूरोलाजी विभाग में आधुनिक सर्जरी के लिए जरूरी 24 आइटम वर्षों से लंबित हैं। इनमें कई ऐसे उपकरण हैं जिनके बिना लेजर और एंडोस्कोपी जैसी आधुनिक तकनीक से असपरेशन संभव नहीं है।

    डाक्टरों का कहना है कि इन उपकरणों की कमी से विभाग आधुनिक सुविधाओं से वंचित है और मरीजों को अधूरी सुविधा में इलाज करना पड़ रहा है। माड्यूलर आपरेशन थिएटर की कई बार मांग की गई लेकिन वह नहीं बन पाया।

    स्टैंडर्ड नेफ्रोस्कोप सेट, फ्लेक्सिबल यूआरएस सेट जैसे कई उपकरणों, सी-आर्म, एडवांस्ड लैप्रोस्कोपिक एंडोस्कोपिक सेट, यूआरएस सेट, यू-डायनेमिक सेट आदि जैसे जरूरी समान अभी तक नहीं मिल पाए हैं। जबकि हमेशा प्रबंधन द्वारा डिमांड लिस्ट की मांग जरूर की जाती है।

    डाक्टरों ने कहा कंज्यूमेबल आइटम की कमी में काम करना असंभव 

    डाक्टर और स्टाफ का कहना है कि बिना कंज्यूमेबल आइटम के रोजमर्रा का काम करना असंभव है। ओपीडी से लेकर इमरजेंसी और वार्ड तक, हर जगह सिरिंज, ग्लव्स और ड्रेसिंग सामग्री की जरूरत होती है।

    एक विभागाध्यक्ष ने कहा हम डाक्टर इलाज करना चाहते हैं, लेकिन बुनियादी चीजें ही उपलब्ध नहीं हैं। मरीजों को बाहर से खरीदने को कहना मजबूरी होती है।

    पांच मुख्य उपकरण जिसकी है जरूरत

    1. सर्जिकल माइक्रोस्कोप :

    उपयोग : ब्रेन और स्पाइन की बेहद बारीक सर्जरी के लिए।

    महत्व : इसमें दिमाग की नसों और ऊतकों को बड़े स्तर पर देखने की सुविधा मिलती है। बिना माइक्रोस्कोप के ब्रेन ट्यूमर निकालना या नाजुक नसों पर आपरेशन करना बहुत मुश्किल हो जाता है।

    2. सी-आर्म मशीन :

    उपयोग : सर्जरी के दौरान एक्स-रे जैसी रियल टाइम इमेजिंग देता है।

    महत्व : हड्डियों की सर्जरी, स्पाइन सर्जरी और न्यूरो सर्जरी में डाक्टर तुरंत देख सकते हैं कि हड्डी या स्क्रू सही जगह लगा है या नहीं। अभी सबसे पुरानी विधि से ब्रेन काटकर की जाती है सर्जरी।

    3. ड्रिल मशीन :

    उपयोग : ब्रेन सर्जरी और आर्थोपेडिक सर्जरी में हड्डी काटने या छेद करने के लिए।

    महत्व : आपरेशन को तेज, सुरक्षित और सटीक बनाती है।

    4. मानिटर :

    उपयोग : मरीज की हार्टबीट, ब्लड प्रेशर, आक्सीजन लेवल और अन्य पैरामीटर लगातार दिखाता है।

    महत्व : दिल के मरीजों की हर सेकंड निगरानी होती है।

    5. आइसीयू बेड :

    उपयोग : गंभीर मरीजों को सपोर्ट देने के लिए डिजाइन किए गए खास बेड, जो जरूरत पड़ने पर रिमोट के माध्यम से बेड के हर भाग को अलग से ऊपर-नीचे किया जा सकता है।

    किसी विभाग को कंज्यूमेबल आइटम की कमी है तो हर एचओडी के खाते में पांच-पांच लाख रुपये दिए गए हैं, जिसे वे खर्च क्यों नहीं करते। सिर्फ दो विभाग ही अभी तक खर्च कर अपनी जरूरतें पूरी कर रहे हैं। कंज्यूमेबल सर्जिकल आइटम आ चुके हैं, कुछ आर्डर में है। टेंडर प्रोसेस में समय लगता है, जिस वजह से विलंब हुआ है। वर्षाें से जो चीजें नहीं हुई है उसे ठीक किया जा रहा है। अभी करीब 94 करोड़ का टेंडर प्रोसेस हो चुका है, जल्द सुविधा उपलब्ध होगी।

    - डा. राजकुमार, निदेशक, रिम्स