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    Jharkhand Agriculture: उन्नत तकनीक अपनाकर बढ़ाएं धान की पैदावार

    Updated: Tue, 08 Jul 2025 05:57 PM (IST)

    वैज्ञानिक तरीके अपनाकर ही किसान बेहतर उत्पादन हासिल कर सकते हैं। चियांकी स्थित क्षेत्रीय अनुसंधान केंद्र के शस्य वैज्ञानिक डा. अखिलेश साह के मुताबिक धान पलामू ही नहीं पूरे झारखंड के लिए एक प्रमुख खाद्यान्न फसल है लेकिन बदलते मौसम में इसकी खेती अब आसान नहीं रही। यदि किसान वैज्ञानिक सलाहों का पालन करें तो वे न केवल इस चुनौती से पार पा सकते हैं।

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    उन्नत तकनीक अपनाकर 80 क्विंटल तक बढ़ाई जा सकती है उपज

    जागरण संवाददाता, मेदिनीनगर (पलामू)। जलवायु परिवर्तन का असर अब खेती पर साफ दिखाई देने लगा है। बारिश का अनिश्चित समय, सूखा और गर्मी की तीव्रता ने धान की पारंपरिक खेती को प्रभावित किया है।

    ऐसे में वैज्ञानिक तरीके अपनाकर ही किसान बेहतर उत्पादन हासिल कर सकते हैं। यह कहना है चियांकी स्थित क्षेत्रीय अनुसंधान केंद्र के शस्य वैज्ञानिक डा. अखिलेश साह का।

    उन्होंने बताया कि धान पलामू ही नहीं, पूरे झारखंड के लिए एक प्रमुख खाद्यान्न फसल है, लेकिन बदलते मौसम में इसकी खेती अब आसान नहीं रही। यदि किसान वैज्ञानिक सलाहों का पालन करें तो वे न केवल इस चुनौती से पार पा सकते हैं, बल्कि उत्पादन को भी कई गुना बढ़ा सकते हैं।

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    भूमि के अनुसार करें किस्मों का चयन

    डा. साह के अनुसार किसानों को अपनी भूमि के प्रकार के अनुसार धान की किस्मों का चयन करना चाहिए। ऊंची और टांड़ भूमि के लिए बिरसा धान-109 और 110 उपयुक्त हैं, जो 90 से 95 दिनों में पककर तैयार हो जाते हैं।

    मध्यम भूमि (दोन-2 व 3) के लिए सहभागी, बिरसा सुगंधा-01, IR-64, बीवी धान-203 व एराइज तेज जैसी किस्में अच्छी हैं, जिनकी अवधि 115 से 125 दिन होती है।

    वहीं नीची भूमि (दोन-1) में एराइज-6444, स्वर्णा और सम्भा महसूरी बेहतर मानी जाती हैं, जो 140 से 145 दिन में तैयार होती हैं।

    तीन विधियों से किसान कर सकते हैं धान की खेती

    डा. साह के अनुसार, किसान तीन विधि से धान की खेती कर सकते हैं। इसमें सीधी बुआई, रोपा (कदवा कर) और रोपा (बिना कदवा कर) शामिल है। सीधी बुआई में खेत तैयार कर सीधे बीज डाले जाते हैं। इसमें उपज थोड़ी कम होती है, लेकिन खर्च भी कम आता है।

    कदवा कर रोपनी विधि में बिचड़े मजबूत होते हैं और टूटने की संभावना नहीं रहती। वहीं बिना कदवा विधि में बीज डालने के दो दिन बाद पानी छोड़ दिया जाता है और तीसरे दिन पानी निकाल दिया जाता है।

    उर्वरक प्रबंधन से बढ़ेगी पैदावार

    डा. साह के अनुसार, उर्वरक का सही मात्रा में उपयोग बेहद जरूरी है। टांड़ भूमि में प्रति हेक्टेयर 40 किलो नेत्रजन, 20 किलो फास्फोरस और 20 किलो पोटाश देना चाहिए। मध्यम भूमि में यह मात्रा क्रमश: 80, 40 और 20 किलो है। जबकि नीची भूमि में 150 किलो नेत्रजन, 60 किलो फास्फोरस और 40 किलो पोटाश देना चाहिए।

    हाइब्रिड किस्मों के लिए 150 किलो नेत्रजन, 60 किलो फास्फोरस और 90 किलो पोटाश प्रति हेक्टेयर देना चाहिए। उर्वरक को तीन चरणों में पहला कदवा के समय, दूसरा रोपनी के 2-3 सप्ताह बाद और तीसरा 6 सप्ताह बाद देना चाहिए।

    कीट नियंत्रण पर भी ध्यान देना जरूरी

    डा. साह के अनुसार, खर पतवार की रोकथाम के लिए धान की रोपनी या बुआई के तुरंत बाद ब्यूटाक्योर 1.5-2 मि.ली. प्रति लीटर पानी के घोल में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए।

    25 दिन बाद नोमिनी गोल्ड या ग्रीन लेवल 100 मि.ली. प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें। तना छेदक कीट को नियंत्रित करने के लिए फिप्रोनिल 0.3G का 25 किलो प्रति हेक्टेयर उपयोग किया जाए।

    अन्य कीटों के लिए क्यूराक्रोन का 2 से 2.5 मि.ली. प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। उन्नत किस्मों से किसान 40-50 क्विंटल और हाइब्रिड किस्मों से 60-80 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक धान की उपज प्राप्त कर सकते हैं।