Jharkhand के 17 ब्लड बैंक को कर दिया गया बंद, जानिए क्या है नियम और लोग कैसे झेल रहे परेशानी
झारखंड में 17 सरकारी ब्लड बैंकों के बंद होने से रक्त की उपलब्धता का संकट गहरा गया है। मरीजों को रक्त के लिए दूर-दराज की यात्रा करनी पड़ रही है, क्योंकि राज्य में केवल रिम्स में ही एक नेट मशीन उपलब्ध है। चाईबासा कांड के बाद हुई जांच और नए नियमों ने स्थिति को और गंभीर बना दिया है, जिससे थैलेसीमिया मरीजों को भारी परेशानी हो रही है। रक्तदान को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।

जरूरतमंद लोगों को जीवनरक्षक रक्त प्राप्त करने के लिए दूर-दराज जिलों की यात्रा करनी पड़ रही है
जागरण संवाददाता, रांची। झारखंड में रक्त उपलब्धता को लेकर गहराता संकट सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था की गंभीर विफलता को उजागर कर रहा है। राज्य के 17 सरकारी ब्लड बैंक सुरक्षा मानकों पर खरे न उतरने के कारण बंद कर दिए गए हैं। इनमें न तो नेट (न्यूक्लिक एसिड टेस्टिंग) मशीनें उपलब्ध थीं और न ही एलाइजा टेस्टिंग की न्यूनतम सुविधा।
नतीजतन, मरीजों को जीवनरक्षक रक्त प्राप्त करने के लिए दूर-दराज जिलों की यात्रा करनी पड़ रही है। हर जिला अस्पताल में नेट मशीन अनिवार्य, जांच प्रक्रिया आनलाइन ट्रैकिंग और ब्लड बैंक प्रबंधन का पूर्ण नियमों को मानना जरूरी है।
विभिन्न रक्त संगठनों का कहना है कि सरकार इस संकट को गंभीरता से लेगी और जल्द ऐसी व्यवस्था सुनिश्चित करेगी कि किसी मरीज की जान रक्त की कमी या गलत जांच के कारण न जाए। वर्तमान में पूरा राज्य सिर्फ एक नेट मशीन जो रिम्स में लगी है पर ही निर्भर है।
यही मशीन एचआइवी, एचबीवी और एचसीवी जैसे संक्रमणों की शुरुआती जांच में सक्षम है, लेकिन इसकी नियमित मेंटेनेंस न होने से जांच की विश्वसनीयता भी सवालों के घेरे में है। खुद रिम्स प्रबंधन मानता है कि यह मशीन एनएचएम के माध्यम से यहां पर संचालित है लेकिन इसका नियमित रूप से मेंटेनेंस नहीं हो रही है, जिसके बाद अब रिम्स खुद अपना एक मशीन की खरीदारी करेगा, जिसकी सहमति भी हाल में रिम्स के शासी परिषद की बैठक में लिया जा चुका है।
नेट मशीन से कम समय में पकड़ा जा सकता है संक्रमण
रांची के सिविल सर्जन डा. प्रभात कुमार बताते हैं कि रक्त संक्रमण की रोकथाम के लिए नेट मशीन अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह शुरुआती अवस्था में ऐसे संक्रमणों को पकड़ सकती है जो एलाइजा टेस्ट में छूट जाते हैं।
हालांकि इस मशीन का भी विंडो पिरियड होता है लेकिन एलाइजा की तुलना में इसका विंडो पिरियड काफी कम होता है, एलाइजा में जहां 30 दिन का विंडो पिरियड होता है वहीं, नेट मशीन में विंडो पिरियड सप्ताह भर का होता है।
ऐसे में अगर रक्त में संक्रमण है तो इसका पता इस बीच चल सकता है। जिला अस्पताल में भी इस मशीन की खरीदारी को लेकर तैयारी चल रही है, उम्मीद है कि जल्द ही सदर अस्पताल में भी अपना नेट मशीन आ रही है।
चाईबासा कांड ने बढ़ाई चिंता
कुछ सप्ताह पहले चाईबासा सदर अस्पताल में थैलेसीमिया पीड़ित बच्चों को एचआइवी संक्रमित रक्त चढ़ाने की घटना ने पूरे राज्य को हिला दिया था। जिसके बाद ही विभाग हरकत में आया और न्यायालय के हस्तक्षेप के बाद रक्त बैंकों की जांच शुरू हुई, स्वैच्छिक रक्तदान को बढ़ाने की पहल की गई और ब्लड रिप्लेसमेंट को बंद किया गया। जिस वजह से कई रक्त बैंक अब खून देने की स्थिति में नहीं है, हालांकि वे स्वैच्छिक रक्तदान करवा सकते हैं जिसे रिम्स या सरकारी ब्लड बैंक में जमा किया जा सकता है।
लाइफ सेवर्स के फाउंडर सदस्य अतुल गेरा बताते हैं कि जिन ब्लड बैंकों को बंद किया गया है उस पर पूरी तरह से कठोर कार्रवाई नहीं की गई है। झारखंड में ब्लड बैंक संचालन की यह स्थिति देश के किसी भी राज्य की तुलना में सबसे अधिक चिंताजनक है।
राज्य सरकार द्वारा ब्लड बैंक को लेकर नया नियम लागू किया गया है। इसके तहत अब किसी जरूरतमंद मरीज से खून के बदले खून देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है। यानी अगर किसी को रक्त की जरूरत है, तो उसे खून के बदले खून देना अनिवार्य नहीं रहेगा।
इस नए नियम के बाद सरकारी ब्लड बैंक में ही खून की कमी हो गई है। रक्तदान के लिए जागरूक जरूर किया जा रहा है लेकिन इस मुहिम को और बड़ा बनाना होगा, जब ही इस समस्या से निजात पाया जा सकता है।
थैलेसीमिया जैसे मरीजों को नहीं मिल रहा ब्लड
इधर थैलेसीमिया मरीजों को बिना डोनर के ब्लड लेने में लंबा समय लग रहा है। सदर अस्पताल से लेकर रिम्स तक में ऐसे पीड़ितों को भाराी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। ये लोग लगातार ब्लड बैंक के चक्कर लगा रहे हैं लेकिन उन्हें खून नहीं मिल रहा है।
वहीं, निजी ब्लड बैंक में भी रक्त की भारी कमी हो गई है। राजधानी रांची स्थित रेड क्रास ब्लड बैंक को पहले ही बंद कर दिया गया है, जिसके बाद ऐसे पीड़ितों की संख्या सरकारी अस्पतालों में अचानक बढ़ गई है। स्थिति यह है कि एक यूनिट रक्त के लिए 80–150 किलोमीटर की यात्रा तय करनी पड़ रही है। हालांकि विभिन्न रक्त संगठन ऐसे पीड़ितों की मदद के लिए समाने आ भी रहे हैं।
क्या कहते हैं राज्य के रक्तदान संगठन
लहु बोलेगा संगठन के फाउंडर मेंमर नदीम खान बताते हैं कि सुरक्षा सुनिश्चित किए बिना दान की संस्कृति मजबूत नहीं की जा सकती। जल्द होगी मशीनों की खरीद, सुधार प्रस्ताव तैयार करना जरूरी है। सिर्फ नियमों के आधार पर ब्लड बैंक को बंद कर देने से काम नहीं चलेगा, बंद करने से पहले वैकल्पिक व्यवस्था करना जरूरी है। मालूम हो कि स्वास्थ्य विभाग के उच्च स्तर पर नेट मशीन प्रोजेक्ट प्रस्तावित है। जिसमें 24 जिलों में नेट मशीनें लगाने की योजना है। बंद ब्लड बैंकों का चरणबद्ध सुधार करने की दिशा में काम किया जाना है।
- स्थिति : सरकारी ब्लड बैंकों में से :
- केवल रिम्स में एक नेट मशीन (एनएचएम द्वारा उपलब्ध)
- अधिकतर जिलों में न नेट मशीन, न एलाइजा टेस्ट
- कई जगह तकनीकी कर्मियों की कमी
- अधिकतर ब्लड बैंकों का लाइसेंस वर्षों से रिन्युअल नहीं

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