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    Jharkhand News: किन मानदंडों के आधार पर किया गया है नगर निगमों में आरक्षण का निर्धारण, हाई कोर्ट ने सरकार और चुनाव आयोग से मांगा जवाब

    By Manoj Singh Edited By: Kanchan Singh
    Updated: Thu, 20 Nov 2025 09:33 AM (IST)

    झारखंड उच्च न्यायालय ने नगर निगमों के वर्गीकरण पर राज्य सरकार और चुनाव आयोग से जवाब तलब किया है। यह वर्गीकरण आरक्षण का आधार है, और अदालत यह सुनिश्चित करना चाहती है कि आरक्षण का निर्धारण उचित मानदंडों पर आधारित हो। अदालत ने सरकार से वर्गीकरण के पीछे के तर्क को स्पष्ट करने के लिए कहा है, ताकि नागरिकों के अधिकारों का संरक्षण हो सके।

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    हाई कोर्ट ने सरकार से पूछा है कि निगम का वर्गीकरण संवैधानिक है या नहीं।

    राज्य ब्यूरो, रांची। हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस तरलोक सिंह चौहान और जस्टिस राजेश शंकर की अदालत में राज्य के नगर निगम को दो वर्ग करने के खिलाफ दाखिल याचिका पर सुनवाई हुई।

    सुनवाई के बाद अदालत ने सरकार और चुनाव आयोग से जवाब मांगा है। अदालत ने दोनों से पूछा है कि नगर निगमों का वर्गीकरण संवैधानिक है या नहीं। मामले में अगली सुनवाई दिसंबर माह में होगी।

    इस संबंध में शांतनु कुमार चंद्रा ने याचिका दायर की है। प्रार्थी की ओर से अदालत को बताया कि संविधान के प्रविधानों के खिलाफ जाकर राज्य सरकार ने नगर निगम का वर्गीकरण किया है।

    जबकि संविधान में नगर निगम के वर्गीकरण का कोई प्रविधान नहीं है। सरकार कार्यपालक आदेश जारी कर इस तरह के प्रविधान नहीं कर सकती है। सरकार का यह निर्णय असंवैधानिक है और इसे निरस्त कर दिया जाना चाहिए।

    अदालत को बताया गया कि राज्य सरकार ने नगर निकाय चुनाव के मद्देनजर राज्य के कुल नौ नगर निगम को दो भागों वर्ग क एवं ख में बांट दिया है। वर्ग क में रांची एवं धनबाद को रखा गया है, शेष अन्य नगर निगम को वर्ग ख में रखा गया है।

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    2011 की जनगणना के आधार पर कराया जा रहा नगर निकाय चुनाव 

    प्रार्थी ने जनसंख्या के आधार पर धनबाद में मेयर का पद अनारक्षित किए जाने एवं गिरिडीह में मेयर का पद अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित किए जाने का भी विरोध किया है। अदालत को बताया गया कि नगर निकाय चुनाव वर्ष 2011 की जनगणना के आधार पर कराया जा रहा है।

    प्रार्थी का कहना है कि धनबाद में अनुसूचित जाति की आबादी वर्ष 2011 की जनसंख्या के अनुसार करीब दो लाख है। वहां मेयर का पद अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित होना चाहिए था, लेकिन धनबाद में मेयर का पद अनारक्षित कर दिया गया।

    वही गिरिडीह में अनुसूचित जाति की जनसंख्या मात्र 30 हजार है, लेकिन वहां मेयर का पद अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित कर दिया गया।