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    चाईबासा में खनन उद्योग संकट में, मार्च 2026 तक बंद हो जाएंगी सात गिट्टी खदानें, जिले में सिर्फ दो खदानें बचेंगी

    Updated: Mon, 08 Dec 2025 10:46 PM (IST)

    पश्चिमी सिंहभूम जिले में लौह अयस्क खदानों के बाद गिट्टी-पत्थर उद्योग भी संकट में है। नोवामुंडी प्रखंड की अधिकांश पत्थर खदानों के पट्टे की अवधि समाप्त ...और पढ़ें

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    फाइल फोटो।

    जागरण संवाददाता, चाईबासा। पश्चिमी सिंहभूम जिले में लौह अयस्क खदानों के बाद अब गिट्टी-पत्थर उद्योग भी गंभीर संकट की ओर बढ़ रहा है। नोवामुंडी प्रखंड की अधिकांश पत्थर खदानों के खनन पट्टा (लीज) की अवधि समाप्त हो रही है, जिसके कारण जनवरी से मार्च 2026 के बीच नौ में से सात खदानों पर ताले लटक जाएंगे। 
     
    इससे न केवल खनन गतिविधियां रुकेंगी, बल्कि हजारों मजदूरों, ट्रांसपोर्टरों और स्थानीय निर्माण कार्यों पर भी व्यापक असर पड़ेगा। जिला खनन कार्यालय के अनुसार, कई खदानों के पट्टे क्रमिक रूप से खत्म हो रहे हैं।


    इजहार करीम (पादापहाड़) का पट्टा 13 अगस्त 2025 को ही समाप्त हो चुका है। ट्रस्टलाइन माइनिंग एंड मिनरल पार्ट्स का पट्टा (कादाजामदा) 17 जनवरी 2026 तक है।

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    पट़टा समाप्‍त होने के बाद बढ़ेगी परेशानी

    ट्रस्टलाइन डीलर्स प्राइवेट लिमिटेड और सीटीएस इंडस्ट्रीज के कई पट्टे जनवरी से मार्च 2026 में समाप्त होंगे। वहीं नीलेश कुमार सिंह का पट्टा 07 जनवरी 2026 को समाप्त होगा।

    मार्च 2026 तक जिले में वृद्धि कंस्ट्रक्शन (दिसंबर 2027 तक), एसएसपी इंटरप्राइजेज (नवंबर 2026 तक) केवल दो खदानें ही चालू रह जाएंगी।

    रोजगार, परिवहन और निर्माण क्षेत्र प्रभावित 

    खदानों के बंद होने से स्थानीय मजदूरों का रोजगार बंद होगा, गिट्टी सप्लाई ठप होने से निर्माण परियोजनाओं की गति प्रभावित, परिवहन व्यवसाय में भारी गिरावट आएगी। इसके अलावा सड़क निर्माण और सरकारी परियोजनाओं की लागत बढ़ने की आशंका है।

    खनन उद्योग से जुड़े सूत्रों के अनुसार, यदि पट्टों का समय पर नवीनीकरण न हुआ, तो 2026 में जिले में गिट्टी-पत्थर की भारी कमी हो जाएगी, जिससे निजी और सरकारी दोनों तरह के निर्माण कार्य ठप पड़ सकते हैं।

    नो-माइनिंग जोन ने बढ़ाई मुश्किलें 

    विशेषज्ञों का कहना है कि जिले के बड़े हिस्से को नो-माइनिंग जोन घोषित किए जाने के बाद नए खनन पट्टे मिलने की संभावना बेहद कम है। ऐसे में पट्टा नवीनीकरण ही एकमात्र समाधान है, जिसके लिए सरकार और विभाग पर दबाव बढ़ रहा है।