क्यों इतना खास है Sheikh Hasina का 'जामदानी स्टाइल'... कैसे एक साड़ी ने दिलाई बुनकरों को नई पहचान
बंगाल की समृद्ध बुनकर परंपरा का सबसे कलात्मक रूप है 'जामदानी साड़ी', जो सदियों से अपनी सुंदरता के लिए जानी जाती रही है... मगर क्या आप जानते हैं कि इसे अंतरराष्ट्रीय फैशन की पहली पंक्ति तक पहुंचाने में सबसे बड़ा योगदान किसी डिजाइनर या फैशन हाउस का नहीं, बल्कि बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना का माना जाता है?

'जामदानी डिप्लोमैसी' के जरिए शेख हसीना ने कारीगरों को दी अंतरराष्ट्रीय पहचान (Image Source: X & AI-Generated)
लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। दुनिया की राजनीति में नेता अक्सर अपने परिधान के जरिए संदेश देते हैं। इस दौरान कोई किसी खास रंग का चुनाव करता है, कोई किसी प्रतीक का, लेकिन शेख हसीना ने इस सोच को एक नए स्तर पर ले जाकर फैशन को कूटनीति का प्रभावी हथियार बना दिया और उनके पहनावे का यह अंदाज आज जामदानी डिप्लोमैसी (Jamdani Saree Diplomacy) के नाम से जाना जाता है।
जी हां, उनकी हर जामदानी साड़ी न सिर्फ खूबसूरत, बल्कि एक सांस्कृतिक बयान की ओर भी इशारा करती रही है, जो यह बताता था कि बांग्लादेश की पहचान उसकी बुनकरी, उसके शिल्पकार और उसकी परंपराएं ही हैं। आइए इस आर्टिकल में जानें कि एक साधारण साड़ी ने कैसे एक राष्ट्र की पहचान को दुनिया के सामने रखने का काम किया।

फैशन का बनाया कूटनीति का हथियार
दुनिया भर के नेता जब फॉर्मल वियर में दिखाई देते हैं, ऐसे में शेख हसीना हर बार एक संदेश देती रहीं कि सांस्कृतिक पहचान ही सबसे बड़ा परिचय है (Sheikh Hasina Jamdani Saree)। इंटरनेशनल मीटिंग्स से लेकर ग्लोबल समिट्स तक, उन्होंने जामदानी को अपना 'सिग्नेचर स्टाइल' बना लिया। उनकी हर उपस्थिति एक फैशन स्टेटमेंट बन जाती थी, जिसका संदेश भी साफ था कि जामदानी अब सिर्फ साड़ी नहीं रही, बल्कि बांग्लादेश की विरासत और शिल्प कौशल का ग्लोबल प्रतीक बन गई।

खास मौके जिन्होंने बदल दी जामदानी की किस्मत
- साल 2014 में, जब भारतीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ढाका पहुंचीं थी, तो उन्होंने हसीना को रेशमी साड़ी भेंट की। इसके जवाब में हसीना ने जामदानी साड़ी भेंट की- यह छोटा-सा क्षण फैशन-डिप्लोमैसी का बड़ा उदाहरण बन गया।
- साल 2015 में अपनी दिल्ली यात्रा के राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से मुलाकात के दौरान शेख हसीना ने सफेद-ग्रे जामदानी साड़ी पहनी, जो भारतीय मीडिया में चर्चा का विषय रही।
- 2019 में बाकू का एनएएम शिखर सम्मेलन वह पहला मौका था, जब जामदानी ने इतने महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय मंच पर जगह बनाई। हसीना का ट्रेडिशनल लुक विदेशी प्रतिनिधियों के लिए आकर्षण का केंद्र रहा।
- ग्लासगो में हुए COP26 क्लाइमेट समिट (2021) में हसीना की नीली-ग्रे जामदानी साड़ी की तस्वीरों ने दुनिया भर के मीडिया में चर्चा बटोरी। फैशन समीक्षकों ने इसे 'सस्टेनेबल हैंडलूम की ताकत' कहा।
- साल 2022 में, चार दिन के अपने भारत दौरे में उनके हर लुक ने बिजनेस लीडर्स और डिजाइनर्स का ध्यान खींचा। यह दौर जामदानी के वैश्विक उदय का टर्निंग पॉइंट माना जाता है।
- G20 समिट (2023) में, लैवेंडर कलर की ढाकाई जामदानी ने इंटरनेशनल फैशन जर्नलिस्ट्स का फोकस अपनी ओर खींचा। यह वह पल था जब जामदानी एक साड़ी नहीं, बल्कि 'कूटनीतिक स्टाइल स्टेटमेंट' बन गई।

धागों में बुनी संस्कृति
जामदानी की जड़ें लगभग दो हजार साल पुरानी ढाका की बुनाई परंपरा में मिलती हैं (Jamdani Weave Technique)। इसकी खासियत “ट्रांसपेरेंट वीविंग” तकनीक है, जिसमें महीन मलमल पर हर फूल, पत्ती और पैटर्न हाथ से बुना जाता है। यही वजह है कि एक साड़ी तैयार करने में महीनों की कहानी छुपी रहती है। भारत और बांग्लादेश दोनों ही अपनी-अपनी शैली में इसे आगे बढ़ा रहे हैं- ढाकाई जामदानी, बंगाल की जामदानी, आंध्र और यूपी की विविधताएं, सभी की अपनी खास पहचान है।

कला की सुरक्षा और कारीगरों का सम्मान
शेख हसीना की पहल के कारण जामदानी की मांग बढ़ी, निर्यात बढ़ा और कारीगरों को नई पहचान मिली। सरकार ने GI टैग और क्वालिटी नियंत्रण कार्यक्रमों के जरिए इसकी असलियत को सुरक्षित रखने के कदम उठाए। आज कई युवा डिजाइनर भी जामदानी को मॉडर्न-सिल्हूट्स में बदलकर अंतरराष्ट्रीय फैशन बाजार में उतार रहे हैं।

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