Chhath Puja 2025: क्या आप जानते हैं क्यों छठ पूजा में बांस के सूप और दउरा का करते हैं इस्तेमाल?
छठ पूजा महापर्व है, जो बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश में बड़ी ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है। इस साल यह पर्व (Chhath Puja 2025) 25 अक्टूबर को नहाय-खाय से शुरू होगा और 28 अक्टूबर को सुबह अर्घ्य के साथ समाप्त होगा। छठ पूजा में बांस के सूप और दउरा का इस्तेमाल किया जाता है। लेकिन क्या आप इसके पीछे की वजह जानते हैं? आइए जानें।
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छठ पूजा में क्यों किया जाता है बांस के सूप और दउरा का इस्तेमाल? (Picture Courtesy: Freepik)
लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। छठ पूजा (Chhath Puja 2025), जिसे सूर्यषष्ठी के नाम से भी जाना जाता है, भारत के सबसे महत्वपूर्ण और श्रद्धापूर्ण लोक पर्वों में से एक है। यह व्रत मुख्य रूप से बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश में बड़े ही धूमधाम और आस्था के साथ मनाया जाता है। उगते सूरज की पूजा तो हर कोई करता है, लेकिन छठ महापर्व में डूबते सूर्य को भी अर्घ्य दिया जाता है, जो इसे बाकी त्योहारों से अलग बनाता है।
इस पर्व की एक और आकर्षक विशेषता है बांस से बने सूप और दउरा (टोकरी) का इस्तेमाल। अर्घ्य देने के लिए व्रती बांस के सूप का इस्तेमाल करती हैं। साथ ही, घाट पर जो पूजा का सामान ले जाया जाता है वह भी बांस के दउरा में सजाकर ले जाते हैं। बांस के सूप और दउरा केवल पारंपरिक बर्तन नहीं हैं, बल्कि इनके इस्तेमाल के पीछे एक गहरा आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और वैज्ञानिक महत्व छिपा है। आइए जानें इस बारे में।

आध्यात्मिक और धार्मिक महत्व
- प्रकृति और शुद्धता का प्रतीक- बांस एक प्राकृतिक उत्पाद है और इसे बेहद पवित्र माना जाता है। छठ पूजा का संबंध प्रकृति की पूजा, खासतौर से सूर्य देव और छठी मैया से है। बांस से बने सूप और दउरा का इस्तेमाल इसी प्रकृति प्रेम को दर्शाता है। इनमें रखे गए प्रसाद को किसी भी प्रकार के कृत्रिम या धातु के संपर्क में नहीं लाया जाता, जिससे प्रसाद की शुद्धता और प्राकृतिकता बनी रहती है।
- सूर्य देव से सीधा संबंध- मान्यता है कि बांस की बनी वस्तुएं सीधे सूर्य देव तक पहुंच रखती हैं। जब व्रती सूप में प्रसाद लेकर डूबते और उगते सूर्य को अर्घ्य देते हैं, तो यह सीधे तौर पर सूर्य देव को समर्पित माना जाता है।
- छठी मैया का आशीर्वाद- छठ पूजा संतान प्राप्ति और उनकी रक्षा के लिए किया जाता है। बांस इसी का प्रतीक माना जाता है। माना जाता है कि जैसे बांस जल्दी-जल्दी बढ़ता है। वैसे ही इसके इस्तेमाल से संतान के जीवन में भी तेजी से विकास और समृद्धि आती है।
सांस्कृतिक और ऐतिहासिक पहलू
बांस की इस्तेमाल भारतीय ग्रामीण संस्कृति का एक अटूट हिस्सा रही है। सदियों से बांस का इस्तेमाल घरेलू सामान, कृषि और पूजा-पाठ के सामान बनाने में होता आया है। छठ पूजा में इसका इस्तेमाल इसी सांस्कृतिक विरासत को आगे बढ़ाता है। यह परंपरा गांवों की सादगी, स्वच्छता और प्रकृति के साथ ताल-मेल की जीवनशैली को दिखाती है। यह एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को दी जाने वाली सांस्कृतिक धरोहर है।
व्यावहारिक दृष्टिकोण
- स्वच्छता- बांस के सूप में छोटे-छोटे छेद होते हैं, जो इसे हल्का और हवादार बनाते हैं। इससे सूप में रखे फल और प्रसाद लंबे समय तक ताजे बने रहते हैं और उनमें नमी जमा नहीं हो पाती, जिससे सड़न रोकने में मदद मिलती है। यह स्वच्छता और स्वास्थ्य के लिहाज से अच्छा विकल्प है।
- पर्यावरण के अनुकूल- बांस एक तेजी से बढ़ने वाला और टिकाऊ संसाधन है। प्लास्टिक या धातु के बर्तनों के विपरीत, बांस के सूप और दउरा पूरी तरह से प्राकृतिक और बायोडिग्रेडेबल हैं, जो पर्यावरण के अनुकूल हैं और प्रदूषण नहीं फैलाते।

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