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    सिर्फ बच्चे के लिए नहीं, एक्सपर्ट ने कहा- अपनी 'हॉर्मोनल हेल्थ' जानने के लिए भी कराएं Fertility Test

    Updated: Tue, 04 Nov 2025 12:28 PM (IST)

    आजकल फिटनेस, डाइट और रेगुलर हेल्थ चेकअप पर तो कई लोग ध्यान दे रहे हैं। हम अपनी बाहरी सेहत को तो खूब संवारते हैं, पर एक जरूरी पहलू अब भी हमारी चेकलिस्ट से गायब रहता है- वो है Reproductive Health, जिसे आम भाषा में हम फर्टिलिटी कहते हैं। एक्सपर्ट्स का कहना है कि जिस तरह हम ब्लड शुगर या कोलेस्ट्रॉल की जांच कराते हैं, ठीक वैसे ही फर्टिलिटी टेस्ट को भी अब अपनी प्रिवेंटिव हेल्थकेयर का हिस्सा बनाना चाहिए।

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    क्यों रिप्रोडक्टिव हेल्थ चेकअप है आज की सबसे बड़ी जरूरत? (Image Source: AI-Generated)

    लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। आजकल लोग फिटनेस, डाइट और हेल्थ चेकअप पर काफी ध्यान देने लगे हैं, लेकिन एक पहलू अब भी हमारी हेल्थ लिस्ट से गायब रहता है। जी हां, हम बात कर रहे हैं फर्टिलिटी की, यानी रिप्रोडक्टिव हेल्थ।

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    ज्यादातर युवा आज अपनी बाहरी सेहत को तो संवार रहे हैं, पर अंदरूनी स्वास्थ्य, खासकर हॉर्मोन और मेटाबॉलिक बैलेंस के बारे में कम ही जानते हैं। यही कारण है कि एक्सपर्ट अब फर्टिलिटी टेस्ट को प्रिवेंटिव हेल्थकेयर का जरूरी हिस्सा मानने लगे हैं।

    fertility testing in India

    (Image Source: AI-Generated)

    फर्टिलिटी सिर्फ बच्चे पैदा करने की क्षमता नहीं

    फर्टिलिटी यानी सिर्फ मां या पिता बनने की योग्यता नहीं, बल्कि यह आपके शरीर की अंदरूनी सेहत का आईना भी है।

    प्रजनन विशेषज्ञ डॉ. अनन्या मेहता कहती हैं,

    जब हम फर्टिलिटी की जांच करते हैं, तो हमें कई हॉर्मोनल और मेटाबॉलिक संकेत मिलते हैं। जैसे कम ओवेरियन रिजर्व, थायरॉयड गड़बड़ी या पीसीओएस जैसी समस्याएं जल्दी पकड़ में आ जाती हैं। इससे व्यक्ति समय रहते लाइफस्टाइल में सुधार और इलाज से जुड़े कदम उठा सकता है।

    दूसरे शब्दों में, यह टेस्ट सिर्फ प्रजनन नहीं बल्कि पूरे शरीर की लॉन्ग-टर्म हेल्थ के बारे में भी चेतावनी देता है।

    हॉर्मोनल हेल्थ की शुरुआती झलक

    फर्टिलिटी टेस्ट को एक ‘विंडो टू हॉर्मोनल हेल्थ’ कहा जा सकता है। एएमएच (Anti-Müllerian Hormone), एफएसएच (Follicle-Stimulating Hormone) और सीमन एनालिसिस जैसे टेस्ट यह दिखाते हैं कि आपके शरीर की हॉर्मोनल स्थिति कैसी है, ओवेरियन रिजर्व कितना है और पुरुषों में शुक्राणुओं की गुणवत्ता कैसी है।

    इन जांचों से कई बार ऐसी स्थितियां सामने आती हैं जो तुरंत कोई लक्षण नहीं दिखातीं, जैसे-

    ये सभी स्थितियां भविष्य में दिल की सेहत और मेटाबॉलिक फंक्शन को भी प्रभावित कर सकती हैं।

    डॉ. मेहता बताती हैं कि कई युवा लोग फर्टिलिटी टेस्ट के जरिए अपने छिपे हुए स्वास्थ्य मुद्दों को पहचान रहे हैं- भले ही वे तुरंत बच्चे की योजना न बना रहे हों। इससे उन्हें पहले से तैयारी करने का मौका मिलता है।

    बदलती जीवनशैली और नई प्राथमिकताएं

    आज की तेज-रफ्तार जिंदगी ने हमारी प्राथमिकताएं बदल दी हैं। करियर पर ध्यान, देर से शादी, तनाव, प्रदूषण और इनएक्टिव लाइफस्टाइल- ये सब मिलकर फर्टिलिटी पर सीधा असर डालते हैं। पहले जहां फर्टिलिटी टेस्ट सिर्फ उन कपल तक सीमित था जिन्हें गर्भधारण में दिक्कत हो रही थी, वहीं अब इसे स्मार्ट हेल्थ चॉइस माना जा रहा है।

    विशेषज्ञ सुझाव देते हैं कि- महिलाओं को 25 साल की उम्र के बाद, और पुरुषों को 30 साल के बाद, हर एक या दो साल में एक बार फर्टिलिटी टेस्ट करवाना चाहिए। यह वैसा ही सामान्य चेकअप होना चाहिए जैसे ब्लड शुगर, कोलेस्ट्रॉल या लिवर टेस्ट।

    जागरूकता से ही बदलेगी सोच

    आज भी समाज में फर्टिलिटी टेस्ट को लेकर झिझक है। कई लोग सोचते हैं कि “हम तो जवान हैं, हमें चिंता क्यों करनी चाहिए।” जबकि हकीकत यह है कि युवा होना, स्वस्थ होना नहीं होता।

    डॉ. मेहता कहती हैं-

    हमें फर्टिलिटी टेस्ट को उतना ही सामान्य बनाना होगा जितना ब्लड प्रेशर या शुगर चेकअप है। यह जल्दबाजी में पेरेंट बनने का मामला नहीं, बल्कि अपने शरीर को समझने और सही निर्णय लेने की बात है।

    भारत में जब प्रिवेंटिव हेल्थ की जागरूकता बढ़ रही है, तो अब वक्त है कि फर्टिलिटी टेस्ट भी रेगुलर हेल्थ पैकेज का हिस्सा बने। जैसे-जैसे डॉक्टर और डायग्नोस्टिक सेंटर इसे जरूरी मानने लगेंगे, वैसे-वैसे लोग अपने भविष्य के बारे में ज्यादा जागरूक और आत्मनिर्भर बन पाएंगे।

    फर्टिलिटी की सही समझ न सिर्फ पेरेंटहुड की राह आसान बनाती है, बल्कि यह लाइफस्टाइल, हॉर्मोन और ओवरऑल हेल्थ के संतुलन को बनाए रखने का सबसे प्रभावी तरीका भी है।

    - डॉ. नीलम सूरी (वरिष्ठ सलाहकार, प्रसूति एवं स्त्री रोग विशेषज्ञ, लेप्रोस्कोपिक और रोबोटिक सर्जन, इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल, नई दिल्ली) से बातचीत पर आधारित

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