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    देर से क्यों चलता है किडनी फेलियर का पता? डॉक्टर ने बताया समय पर पहचानना क्यों है जरूरी

    किडनी हमारे शरीर का एक महत्वपूर्ण अंग है जो शरीर को साफ रखने और अन्य कई कार्यों में मदद करता है। क्रोनिक किडनी डिजीज (सीकेडी) एक गंभीर समस्या है जिसके लक्षण अक्सर देर से दिखाई देते हैं। डायबिटीज हाई ब्लड प्रेशर और मोटापा जैसे कारक किडनी को बीमार बनाते हैं। शुरुआती जांच से गंभीर स्थिति से बचा जा सकता है।

    By Harshita Saxena Edited By: Harshita Saxena Updated: Fri, 22 Aug 2025 02:22 PM (IST)
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    किडनी फेलियर कारण, लक्षण और शुरुआती पहचान (Picture Credit- Freepik)

    लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। किडनी हमारे शरीर के अहम अंगों में से एक है, जो कई जरूरी कामों में मदद करता है। यह शरीर की सफाई करने में मदद करती है और अन्य कई जरूरी काम करती है। इसलिए सेहतमंद रहने के लिए किडनी का ध्यान रखना बेहद जरूरी है। हालांकि, कुछ वजहों से अक्सर हमारी किडनी बीमार होने लगती है और कई बार देर होने पर व्यक्ति किडनी फेलियर का शिकार बन जाता है।

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    चिंता की बात यह है कि किडनी फेलियर की पहचान अक्सर देर से होती है। यही वजह है कि क्रोनिक किडनी डिजीज (CKD) को अक्सर साइलेंट किलर कहा जाता है। ऐसा इसलिए कहा जाता है, क्योंकि यब बीमारी अक्सर एडवांस स्टेज तक कोई लक्षण या संकेत नहीं देती है, जिससे यह कई बार जानलेवा साबित होती है। आइए मैक्स स्मार्ट सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल, साकेत में नेफ्रोलॉजी और रीनल ट्रांसप्लांट मेडिसिन के प्रिंसिपल डायरेक्टर डॉ. अलका भसीन से जानते हैं क्यों अक्सर देर होने पर नजर आते हैं किडनी फेलियर के लक्षण-

    किडनी को बीमार बनाते हैं ये फैक्टर्स

    डॉक्टर ने बताया कि सीकेडी भारत के लिए चिंता का एक गंभीर विषय है, क्योंकि यह शहरी क्षेत्रों में 11% से 16% वयस्कों को प्रभावित करता है और ग्रामीण भारत में शायद इससे भी ज्यादा। इसके रिस्क फैक्टर्स में डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर, मोटापा, धूम्रपान, किडनी स्टोन, हार्ट डिजीज, कुछ जेनेटिक और इम्यून से जुड़े विकार शामिल है। साथ ही डाइक्लोफेनाक और आइबुप्रोफेन जैसी नॉन-स्टेरॉयडल एंटी-इंफ्लेमेटरी दर्द निवारक दवाओं का ज्यादा इस्तेमाल भी इसका खतरा बढ़ाती है।

    कब फेल हो जाती है किडनी?

    हमारी किडनी तब "फेल" मानी जाती हैं, जब वे खून में मौजूद वेस्ट प्रोडक्ट्स को बाहर निकालने में असमर्थ हो जाती है। जैस-जैसे किडनी की बीमारी चुपचाप बढ़ती है, वेस्ट प्रोडक्ट जैसे यूरिया, क्रिएटिनिन और अन्य खून में जमा होते जाते हैं। नाजुक किडनी के फिल्टर (नेफ्रॉन), जो अभी तक संरक्षित हैं, बीमार फिल्टरों का काम संभाल लेते हैं। यह नेफ्रॉन की एक अनोखी क्षमता है, जो ज्यादातर वेस्ट को बाहर निकालने के लिए ज्यादा काम करके किडनी के अधूरे काम को पूरा करती है।

    हालांकि, कई साल तक लगातार काम करने के बाद आखिरकार बीमारी बचे हुए नेफ्रॉन को भी प्रभावित करती है और अब यह 100% काम, घटकर 15% या उससे भी कम रह जाता है। लगभग इसी समय, थकान, भूख न लगना, वजन कम होना, चेहरे और पैरों में सूजन, मतली, उल्टी, स्वाद खराब होना, खुजली, मांसपेशियों में ऐंठन, हड्डियों में दर्द और सांस लेने में तकलीफ जैसे लक्षण दिखाई देते हैं।

    कैसे पता करें किडनी की बीमारी?

    इस एडवांस स्टेज (जिसे स्टेज 5 सीकेडी भी कहा जाता है) में जांच से खून में यूरिया/क्रिएटिनिन/पोटेशियम/यूरिक एसिड/एसिड के हाई लेवल के साथ-साथ गंभीर एनीमिया, विटामिन डी की कमी, पैराथाइरॉइड हार्मोन का हाई लेवल, यूरिन प्रोटीन लीकेज और अक्सर सिकुड़े हुई किडनी अल्ट्रासाउंड में दिखाई देती हैं।

    इसलिए, यह बेहद जरूरी है कि हम किडनी की बीमारी का शुरुआती स्टेज में ही पता लगा लें, ताकि समय रहते किसी गंभीर कंडीशन से बचा जा सके। किडनी डिजीज का पता लगाने के लिए यूरिन एल्बुमिन/क्रिएटिनिन रेशियो, यूरिन की नियमित जांच, माइक्रोस्कोपी, पेट का अल्ट्रासाउंड, किडनी फंक्शन टेस्ट और कंप्लीट ब्लड काउंट जैसे टेस्ट करना सकते हैं।

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