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    सिर्फ 2% वयस्क लगवाते हैं फ्लू वैक्सीन! डॉक्टर ने बताया Adult Vaccination क्यों है सबसे जरूरी

    Updated: Mon, 10 Nov 2025 03:18 PM (IST)

    भारत में बच्चों के टीकाकरण अभियानों की सफलता एक मिसाल है, लेकिन जब बात वयस्कों के टीकाकरण की आती है, तो स्थिति उतनी अच्छी नहीं है। जैसे-जैसे हमारी उम्र बढ़ती है, शरीर की रोगों से लड़ने की शक्ति यानी इम्युनिटी धीरे-धीरे कम होने लगती है। इसका सीधा मतलब है कि बुजुर्गों और लंबे समय से किसी बीमारी से जूझ रहे लोगों में इन्फेक्शन का खतरा काफी बढ़ जाता है। 

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    बढ़ती उम्र में इन्फेक्शन से बचाव का कवच है टीकाकरण (Image Source: Freepik)

    लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। भारत में बच्चों के टीकाकरण को लेकर कई सरकारी अभियान चलाए गए हैं, जो सफल भी हुए हैं, लेकिन जब बात वयस्कों की आती है, तो तस्वीर अलग नजर आती है। दरअसल, उम्र बढ़ने के साथ शरीर इम्युनिटी धीरे-धीरे कम होती जाती है, जिससे बुजुर्गों और लंबे समय से बीमार लोगों में इन्फेक्शन का खतरा बढ़ जाता है। इसके बावजूद, भारत में वयस्क टीकाकरण को लेकर जागरूकता बेहद कम है। डॉ. संजीव गुलाटी (प्रिंसिपल डायरेक्टर - नेफ्रोलॉजी एवं किडनी ट्रांसप्लांट, फोर्टिस ग्रुप ऑफ हॉस्पिटल्स, एनसीआर) का कहना है कि अब समय आ गया है जब हमें इस दिशा में गंभीरता से सोचना होगा।

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    World Immunization Day 2025

    तेजी से बढ़ती उम्रदराज आबादी और नई चुनौतियां

    विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की एक रिपोर्ट बताती है कि 2050 तक दुनिया की बुजुर्ग आबादी (60 वर्ष से ऊपर) दोगुनी हो जाएगी, और इनमें से लगभग 80% लोग भारत जैसे निम्न और मध्यम आय वाले देशों में रहेंगे। इस बदलते जनसंख्या ढांचे के साथ हार्ट डिजीज, डायबिटीज और किडनी रोग जैसी गैर-संचारी बीमारियां (Non-Communicable Diseases – NCDs) भी बढ़ रही हैं।

    इन बीमारियों से जूझ रहे लोगों में संक्रमण का खतरा कई गुना अधिक होता है। जैसे – डायबिटीज वाले मरीजों को फ्लू या शिंगल्स जैसी बीमारियां ज्यादा आसानी से हो सकती हैं। वहीं, ऐसे इन्फेक्शन अक्सर पुरानी बीमारियों को और गंभीर बना देते हैं।

    भारत में वयस्क टीकाकरण की स्थिति चिंताजनक क्यों है?

    भारत का टीकाकरण कार्यक्रम दुनिया के सबसे बड़े कार्यक्रमों में से एक है, लेकिन वयस्क टीकाकरण अब भी स्वास्थ्य नीति में प्राथमिकता नहीं बन पाया है। बहुत से लोग आज भी मानते हैं कि “टीके सिर्फ बच्चों के लिए होते हैं।” यही सोच सबसे बड़ी बाधा है।

    जागरूकता की कमी, सरकारी नीति की अनुपस्थिति और सीमित स्वास्थ्य ढांचे के कारण, वयस्क टीकाकरण का दायरा बहुत छोटा है। आंकड़े बताते हैं कि 45 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों में फ्लू वैक्सीन लगवाने वालों की संख्या 2% से भी कम है।

    कम टीकाकरण का असर

    टीकाकरण की कमी सिर्फ बीमारियों को बढ़ावा नहीं देती, बल्कि आर्थिक बोझ भी बढ़ाती है। जब किसी बुज़ुर्ग को न्यूमोनिया या फ्लू जैसी बीमारी होती है, तो अस्पताल में भर्ती होना पड़ सकता है। भारत में जहां ज्यादातर लोग इलाज का खर्च खुद उठाते हैं, वहां ऐसी बीमारियां परिवार की आर्थिक स्थिरता को हिला सकती हैं।

    इन बीमारियों के कारण कई बार लंबे समय तक दर्द, थकान, वजन में कमी और मानसिक तनाव भी बना रहता है। उदाहरण के लिए, शिंगल्स (Herpes Zoster) ऐसी बीमारी है जो बहुत तेज दर्द देती है – इतना कि कपड़ों का हल्का स्पर्श भी असहनीय हो जाता है।

    बुजुर्गों और बीमारों पर इन्फेक्शन का गहरा असर

    उम्र के साथ शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता घटती है। यही वजह है कि 50 वर्ष से ऊपर के लोगों में शिंगल्स, फ्लू और न्यूमोनिया जैसी बीमारियों का खतरा ज्यादा होता है। शिंगल्स से पीड़ित लोगों में अक्सर “पोस्ट-हर्पेटिक न्यूराल्जिया” जैसी जटिल स्थिति विकसित होती है, जिसमें नसों में लगातार दर्द बना रहता है।

    इसी तरह, फ्लू (इन्फ्लूएंजा) बुजुर्गों के लिए केवल एक “मौसमी सर्दी-जुकाम” नहीं है। यह दिल के मरीजों में हार्ट अटैक का खतरा 3 से 5 गुना और स्ट्रोक का खतरा 2 से 3 गुना तक बढ़ा देता है।

    गैर-संचारी बीमारियां और संक्रमण का दोतरफा रिश्ता

    डायबिटीज, हार्ट डिजीज, और सांस की बीमारियां शरीर की प्रतिरक्षा को कमजोर करती हैं, जिससे व्यक्ति संक्रमण के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाता है। वहीं, जब संक्रमण होता है, तो ये पुरानी बीमारियां और बिगड़ जाती हैं। उदाहरण के तौर पर, डायबिटीज के रोगियों में चिकनपॉक्स के बाद शिंगल्स होने का खतरा 38% अधिक होता है, और शिंगल्स के दौरान उनका ब्लड शुगर नियंत्रण से बाहर हो जाता है।

    ‘रिएक्टिव’ नहीं, ‘प्रिवेंटिव’ हेल्थकेयर की है जरूरत

    भारत को अब “इलाज के बाद” सोचने की बजाय “बीमारी से पहले बचाव” की दिशा में बढ़ना होगा। इसके लिए एक राष्ट्रीय वयस्क टीकाकरण नीति बनाई जानी चाहिए जिसमें इन्फ्लूएंजा, न्यूमोकोकल इन्फेक्शन, शिंगल्स, हेपेटाइटिस बी और टिटनेस जैसे टीकों को शामिल किया जाए।

    अस्पतालों और क्लीनिकों में विशेष “एडल्ट वैक्सीनेशन क्लिनिक” शुरू किए जा सकते हैं, जहां डायबिटीज, हार्ट डिजीज या किडनी की बीमारियों से ग्रसित मरीजों को उनके नियमित चेकअप के साथ टीके भी लगवाए जा सकें।

    साथ ही, डॉक्टरों और जनता दोनों के बीच जागरूकता अभियान चलाने की भी आवश्यकता है, ताकि लोग टीकाकरण को सिर्फ बच्चों के लिए नहीं, बल्कि स्वस्थ उम्रदराजी का एक अहम हिस्सा समझें।

    भारत की बढ़ती बुजुर्ग आबादी के लिए वयस्क टीकाकरण किसी “विकल्प” की तरह नहीं, बल्कि एक जरूरत की तरह देखा जाना चाहिए। यह न केवल संक्रमण से बचाता है, बल्कि पुरानी बीमारियों के बोझ को भी कम करता है और बुजुर्गों को अधिक स्वस्थ, सक्रिय और आत्मनिर्भर बनाए रखता है।

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