बुरी नजर से बचने के लिए 'Touch Wood' क्यों कहते हैं लोग? यहां समझें इसका मनोविज्ञान
'टच वुड' एक बहुत ही आम मुहावरा है जिसे हम अक्सर अपनी रोजमर्रा की बातचीत में इस्तेमाल करते हैं। जब भी हम अपनी किसी अच्छी चीज, सक्सेस या खुशकिस्मती के बारे में बात करते हैं, तो तुरंत 'टच वुड' बोलकर किसी लकड़ी की चीज को छू लेते हैं। ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि किसी की बुरी नजर न लगे और हमारी किस्मत बनी रहे। आइए, इस आर्टिकल में आपको समझाते हैं इसका दिलचस्प मनोविज्ञान।

क्या सच में लकड़ी छूने से टल जाती है बुरी नजर? (Image Source: Freepik)
लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। जब कोई कहता है– “आज तक मेरा मोबाइल कभी नहीं खोया” और फिर “टच वुड” कहकर तुरंत लकड़ी की मेज को हल्का-सा छू देता है, तो यह एक आम आदत लगती है, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि लोग ऐसा क्यों करते हैं (Why Do We Say Touch Wood)? दरअसल, टच वुड कहना सिर्फ अंधविश्वास नहीं, बल्कि यह एक ऐसी आदत है जो सदियों पुरानी परंपराओं, लोककथाओं और हमारे मनोविज्ञान से जुड़ी हुई है।

प्राचीन परंपराओं से जुड़ा है “टच वुड” का इतिहास
इतिहासकार मानते हैं कि “टच वुड” की शुरुआत प्राचीन 'पगान' सभ्यताओं से हुई थी। खासकर सेल्टिक लोगों का विश्वास था कि पेड़ों में आत्माएं और देवी-देवता वास करते हैं। वे जब किसी पेड़ को छूते थे, तो मानते थे कि वे दैवीय शक्ति से जुड़ रहे हैं या बुरी आत्माओं से अपनी खुशकिस्मती को बचा रहे हैं। लकड़ी को छूना उनके लिए एक तरह की प्रार्थना थी– सुरक्षा की मांग या आभार प्रकट करने का तरीका।
एक और मान्यता ईसाई धर्म से जुड़ी है। कहा जाता है कि ईसा मसीह के क्रूस से जुड़ी “पवित्र लकड़ी” को छूना शुभ माना जाता था। चर्च या क्रॉस की लकड़ी को छूकर लोग ईश्वर का आशीर्वाद मांगते थे। धीरे-धीरे यह धार्मिक परंपरा यूरोप में फैलती गई और “टच वुड” एक आम कहावत बन गई।
लकड़ी ही क्यों, कुछ और क्यों नहीं?
लकड़ी इंसान के जीवन से हमेशा गहराई से जुड़ी रही है- हमारे घर, फर्नीचर, औजार, सब कुछ इससे बनता है। पुराने समय में पेड़ को जीवन, ऊर्जा और निरंतरता का प्रतीक माना जाता था। माना जाता था कि लकड़ी को छूने से उसके भीतर की शुभ शक्तियां जाग जाती हैं और हमें नकारात्मकता से बचाती हैं। यह आदत इंसान और प्रकृति के बीच सम्मान और सामंजस्य का प्रतीक भी थी- मानो हम उस वृक्ष से कह रहे हों, “मेरी रक्षा करो।”

क्या कहता है मनोविज्ञान?
2013 में यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो द्वारा की गई एक दिलचस्प रिसर्च में पाया गया कि जब लोग किसी बात से “किस्मत को ललकारने” वाले वाक्य बोलते हैं– जैसे “मेरे साथ कभी दुर्घटना नहीं हुई” – तो लकड़ी को छूने जैसी शारीरिक क्रिया करने से वे खुद को ज्यादा सुरक्षित महसूस करते हैं।
शोधकर्ताओं का निष्कर्ष था कि यह छोटा-सा इशारा प्रतीकात्मक रूप से “बुरी किस्मत को दूर धकेलने” जैसा काम करता है। यह दिमाग को नियंत्रण का एहसास देता है और चिंता को कम करता है। यानी टच वुड सिर्फ अंधविश्वास नहीं, बल्कि दिमाग को शांति देने वाला मनोवैज्ञानिक सहारा भी है।
दुनिया भर में अलग-अलग रूप
ब्रिटेन और भारत में लोग कहते हैं “टच वुड”, जबकि अमेरिका और कनाडा में यही बात “नॉक ऑन वुड” के रूप में कही जाती है। तुर्की में लोग लकड़ी पर दो बार ठक-ठक करते हैं और फिर ईयरलोब पकड़ते हैं ताकि बुरा भाग्य दूर रहे। ब्राजील में इसे bater na madeira कहा जाता है। यानी संस्कृति बदलती है, पर भावना एक ही रहती है- “हमारी किस्मत बनी रहे।”

आधुनिक दौर में इसका अर्थ
आज जब विज्ञान और तकनीक का युग है, तब भी “टच वुड” कहने की परंपरा जीवित है। ब्रिटेन में किए गए सर्वे बताते हैं कि आधे से ज्यादा लोग किसी अच्छी बात के जिक्र पर आज भी “टच वुड” कहते हैं। अब यह केवल भाग्य में विश्वास का प्रतीक नहीं रहा, बल्कि विनम्रता और सावधानी का प्रतीक बन गया है– जैसे कहना कि “अभी सब ठीक है, पर कुछ भी हो सकता है।”
आखिर क्यों नहीं मिटती यह आदत?
शायद इसलिए कि यह हमें मनोवैज्ञानिक सुकून देती है। जब कोई कहता है “टच वुड”, तो वह खुद को यह भरोसा दिलाता है कि सब कुछ ठीक रहेगा। सामाजिक रूप से भी यह एक आदत बन गई है- किसी की अच्छी खबर सुनकर “टच वुड” कहना एक तरह से शुभकामना देना है। यह हमारी उस मानवीय जरूरत को पूरा करता है जिसमें हम अनिश्चितता के बीच थोड़ा-सा नियंत्रण महसूस करना चाहते हैं।
“टच वुड” की ताकत उसके जादू में नहीं, बल्कि उसके अर्थ में है। यह आदत हमें याद दिलाती है कि जीवन अनिश्चित है, पर थोड़ा-सा नम्र रहना और सावधानी रखना हमेशा अच्छा होता है। ऐसे में, अगली बार जब आप किसी खुशकिस्मती की बात करें और अनजाने में लकड़ी को छू लें- समझिए, आप सिर्फ एक पुरानी परंपरा नहीं निभा रहे, बल्कि अपने मन को थोड़ी शांति भी दे रहे हैं।

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