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    इस दीवाली सिर्फ घर को न करें रोशन, अपने बच्चों में भी जलाएं संस्कार के दीप

    By Aarti TiwariEdited By: Harshita Saxena
    Updated: Sun, 19 Oct 2025 12:04 AM (IST)

    दीपावली सिर्फ छुट्टियां नहीं, यह तो सही समय है बच्चों में भारतीय मूल्य और संस्कार के दीप जलाने का।  यूट्यूब इन्फ्लुएंसर व सर्टिफाइड पैरेंटिंग कोच रिद्धि देवराह बता रही हैं कि किस तरह आधुनिक माता-पिता पारंपरिक रीति-रिवाजों को रोपित कर सकते हैं अगली पीढ़ी के मन-मस्तिष्क में, ताकि समय के साथ विकसित हों परंपराएं।

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    दीपावली: बच्चों को सिखाएं त्योहार का असली मतलब (Picture Credit- AI)

    आरती तिवारी , नई दिल्ली। दिल्ली की रीता तनेजा ने इस बार बच्चों से कहा, ‘हम जितनी भी मिठाई बनाएंगे, उसमें अपने हिस्से से कुछ किसी जरूरतमंद को देंगे।’ बच्चे पहले हिचके, पर जब उन्होंने अपने हाथों से बने लड्डू गली के चौकीदार और सब्जीवाले को दिए और बदले में सच्ची मुस्कान पाई- तो वे गर्व से भर गए।

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    दीपावली वह समय है जब घरों में दीये जलते हैं, पर उससे भी पहले दिलों में उजाला फैलता है। जब मां आंगन में पहला दीपक रखती हैं, पापा बच्चों के साथ घर की सफाई में सहयोग करते हैं और दादी धीमी आवाज में दीपावली के किस्से सुनाती हैं- तब महसूस होता है कि दीपावली सिर्फ रोशनी का नहीं, बल्कि रिश्तों में गर्माहट पहुंचाने का पर्व है।

    अब समय बदल गया है। कई परिवारों के लिए दीपावली का अर्थ छुट्टियां, शापिंग या इंटरनेट मीडिया पर तस्वीरें डालना भर रह गया है। बच्चे भी त्योहार को बस पटाखों और मिठाइयों तक सीमित समझते हैं। जबकि पहले समय में दीपावली अपने भीतर झांकने, बुराई का त्याग करने और दूसरों के जीवन में उजाला बांटने का एक अवसर थी।

    बड़ों का सम्मान और परंपरा से जुड़ाव

    हमारे बुजुर्ग ही वो पुल हैं जो हमें परंपराओं से जोड़ते हैं। आप बच्चों से कह सकते हैं कि वे  इस बार दादी–नानी से पूछें कि उनके बचपन की दीपावली कैसी होती थी। यह दो पीढ़ियों के बीच जुड़ाव बनाने का सबसे मजेदार तरीका हो सकता है। अपने बड़ों के बचपन की बातें बच्चों को बड़ी मजेदार लगती हैं, तो वहीं अपने बचपन की यादें बड़ों को भी दोबारा बच्चा बना देती हैं।

    ये बातें बच्चों के मन में गहराई से उतर जाती हैं। अगर दादा-दादी पास नहीं हैं, तो उनकी बातें, फोटो या अगर कभी वीडियो रिकार्डिंग की थी, तो उसे साथ बैठकर देखें। बच्चे जब यह जानेंगे कि ‘पहले दीपावली ऐसे मनाई जाती थी’, तो उन्हें अपनी परंपरा पर गर्व होगा। संस्कारों को सुनने और महसूस करने का यह तरीका किसी उपदेश से कहीं अधिक असरदार होता है।

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    परंपरा और व्यस्तता के बीच संतुलन

    आज अधिकांश परिवार छोटे हैं। माता-पिता दोनों कामकाजी हैं, बच्चे स्कूल और आनलाइन क्लासों में व्यस्त। ऐसे में लंबी रीतियों और पारंपरिक पूजा-पद्धति को निभाना कभी-कभी बोझ लगने लगता है, लेकिन संस्कारों को ‘जीवित’ रखना जरूरी है। यह तभी संभव है जब परंपरा बच्चों के लिए एक अनुभव बने, कर्तव्य नहीं। 

    सिर्फ ‘क्या’ नहीं, ‘क्यों’ भी बताएं 

    जब बच्चे यह समझते हैं कि हम दीया क्यों जलाते हैं- अंधकार पर प्रकाश की जीत के प्रतीक के रूप में- तो वे परंपरा में अर्थ खोजने लगते हैं। अगर आप कहें, ‘ऐसा करना जरूरी है’, तो बच्चा केवल पालन करेगा। पर अगर आप समझाएं, ‘दीया जलाकर हम भीतर की अच्छाई को जगाते हैं’, तो वह उस अनुभव को महसूस करेगा। इसके लिए परंपराओं को आधुनिक रंग में ढालें। बच्चों से मिट्टी के दीये पेंट करने, पूजा की थाली सजाने या घर की सजावट के लिए अपने हाथों से तोरण बनाने को कहें। जब बच्चे त्योहार की तैयारी में सहभागी बनते हैं, तो वह रस्म उबाऊ नहीं लगती -वह अपनापन महसूस कराती है।

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    मेरे तुम्हारे सबके लिए

    • आज बच्चे समझदार हैं, पर अक्सर सुविधा के बीच संवेदना खो जाती है। ऐसे में त्योहार वह मौका होते हैं जब हम उन्हें बिना उपदेश दिए, जीवन के असली मूल्यों से जोड़ सकते हैं।
    • बच्चों से उनकी अपनी ऐसी वस्तुएं निकालने के लिए कहें, जिनसे अब वो नहीं खेलते या सिर्फ इस वजह से इस्तेमाल नहीं करते क्योंकि वे पुरानी हो गईं या उनकी जगह कोई दूसरा विकल्प मिल गया है। इन्हें उनके ही हाथों से जरूरतमंद बच्चों तक पहुंचाएं। यह उन्हें ‘देने की खुशी’ का अनुभव कराएगा।
    • अगर दिन का केवल एक हिस्सा समाज या दूसरों के लिए समर्पित किया जाए, तो त्योहार का अर्थ गहराई से समझ में आता है।
    • परिवार के साथ मिलकर घर और आस-पास की जगह की सफाई करें। उन्हें बताइए कि दीपावली  सिर्फ घर सजाने का नहीं, अपने परिवेश को भी सुंदर बनाने का अवसर है।
    • बच्चों के साथ घर पर मिठाई बनाएं और तय करें कि कुछ डिब्बे पास के मजदूरों, चौकीदारों या बुजुर्ग पड़ोसियों को देंगे। बच्चे जब किसी और को मुस्कुराते देखते हैं, तो उनमें कृतज्ञता और संवेदना दोनों बढ़ती हैं।
    • बाजार से दीये खरीदने की जगह बच्चों के साथ मिट्टी के दीये बनाएं या सादा दीपक लाकर उन्हें रंगें। फिर उन्हें मोहल्ले के बुजुर्गों या स्कूल के गार्ड को भेंट करें। इस सरल कार्य में बच्चों को ‘कर्म और कृतज्ञता’ दोनों का अर्थ मिलेगा।
    • ऐसे छोटे अनुभव बच्चों को सिखाते हैं कि दीपावली  का असली अर्थ ‘खुशियां बांटना’ है, न कि ‘सिर्फ पाना’। दीपावली का असली अर्थ यही है -अंधकार को मिटाकर, अपने और दूसरों के जीवन में उजाला लाना। जब हम अपने बच्चों को यह सिखा पाएंगे कि दीपावली  सिर्फ रोशनी का नहीं, रोशन मन का त्योहार है, तब हम सच में परंपरा को आगे बढ़ा रहे होंगे।

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