दुख की घड़ी में किसी से भूलकर भी न कहें 6 बातें, मरहम की बजाय; जख्मों पर नमक जैसा होता है असर
जीवन में सुख और दुख आते जाते रहते हैं। दुख की घड़ी में किसी को संभालने की कोशिश करते समय, हम अनजाने में कुछ ऐसी बातें कह जाते हैं जो उन्हें और भी ज्या ...और पढ़ें

गम में डूबे इंसान से भूलकर भी न कहें ये बातें (Image Source: AI-Generated)
लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। जीवन में सुख और दुख का आना-जाना लगा रहता है। जब हमारा कोई अपना, दोस्त या रिश्तेदार किसी गहरे दुख या सदमे से गुजर रहा होता है, तो हमारी पहली कोशिश होती है उन्हें संभालने की। हम चाहते हैं कि उनका दर्द कम हो जाए, लेकिन अक्सर अच्छी नीयत होने के बावजूद, हम अनजाने में कुछ ऐसा कह जाते हैं जो उन्हें दिलासा देने के बजाय अंदर तक चोट पहुंचा देता है।
शब्दों में बहुत ताकत होती है- ये किसी को जोड़ भी सकते हैं और तोड़ भी सकते हैं। मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि शोक के समय दी गई कुछ नसीहतें 'जख्मों पर नमक' का काम करती हैं। आइए जानते हैं वो 6 बातें जो आपको दुख की घड़ी में किसी से भी कहने से बचना चाहिए।

(Image Source: AI-Generated)
"जो होता है अच्छे के लिए होता है"
यह सबसे खराब बात है जो आप किसी दुखी इंसान से कह सकते हैं। अगर किसी ने अपनी नौकरी गंवाई है या रिश्ते में धोखे से जूझ रहा है, तो उसके लिए इसमें कुछ भी 'अच्छा' नहीं है। उस वक्त यह सुनना उन्हें यह महसूस कराता है कि आप उनके दर्द को कम करके आंक रहे हैं। इसकी जगह बस इतना कहें, "मुझे बहुत अफसोस है कि तुम इस मुश्किल दौर से गुजर रहे हो।"
"सब ठीक हो जाएगा, समय दो"
हां, यह सच है कि समय बड़े-बड़े घाव भर देता है, लेकिन जिस वक्त इंसान दर्द में तड़प रहा है, उसे भविष्य की चिंता नहीं होती। उसे अपना 'आज' काटना मुश्किल लग रहा है। जब आप कहते हैं कि सब ठीक हो जाएगा, तो उन्हें लगता है कि आप उनकी मौजूदा तकलीफ को जल्दबाजी में खत्म करना चाहते हैं। ध्यान रहे, भविष्य की बात करने के बजाय वर्तमान में उनके साथ रहें। कहें, "मैं तुम्हारे साथ हूं, चाहे कितना भी वक्त लगे।"
"मैं समझ सकता हूं कि तुम पर क्या बीत रही है"
सच तो यह है कि आप नहीं समझ सकते। हर इंसान का दुख और उसका अनुभव बिल्कुल अलग होता है। भले ही आपके साथ भी वैसी ही घटना घटी हो, फिर भी आपका और उनका रिश्ता या परिस्थितियां अलग हो सकती हैं। यह वाक्य सामने वाले को झुंझलाहट महसूस करा सकता है। इसकी बजाय ईमानदारी से कहें, "मेरे लिए यह सोचना भी मुश्किल है कि तुम पर क्या बीत रही है।"
"रोने से कुछ नहीं होगा"
हमारे समाज में अक्सर रोने को कमजोरी की निशानी माना जाता है, जबकि रोना तनाव को बाहर निकालने का एक कुदरती तरीका है। दुखी व्यक्ति को रोने से रोकना उसकी भावनाओं का गला घोंटने जैसा है। आंसू रुकने से दर्द खत्म नहीं होता, बल्कि वो अंदर ही अंदर इंसान को बीमार कर देता है। ऐसा कहने की जगह उन्हें रोने दें। आप उन्हें कंधा दें या टिशू पेपर बढ़ाएं। कभी-कभी साथ बैठकर रोना सबसे बड़ी मदद होती है।
"कम से कम..." वाले वाक्य
"कम से कम वो नाती-पोतों का चेहरा देखकर तो गुजरे हैं" या "कम से कम तुम्हारे पास दूसरा बच्चा तो है।" जब आप 'कम से कम' शब्द का इस्तेमाल करते हैं, तो आप अनजाने में उनके नुकसान की तुलना कर रहे होते हैं। दुख में कोई 'छोटा' या 'बड़ा' नहीं होता। किसी भी तरह की तुलना उनके दर्द को अपमानित करने जैसी लगती है। इसलिए, तुलना करने से बचें। सिर्फ उनकी बात सुनें और चुप्पी में उनका साथ दें।
"अब तुम्हें दूसरों के लिए मजबूत बनना होगा"
अक्सर यह बात घर के बड़ों या किसी जिम्मेदार व्यक्ति से कही जाती है, लेकिन शोक के समय इंसान अंदर से टूट चुका होता है। उसे यह कहना कि "मजबूत बनो" उस पर एक और बोझ डाल देता है। उसे लगता है कि उसे अपने दुख को जाहिर करने का भी हक नहीं है। हर इंसान को कमजोर पड़ने और टूटने का हक है। ऐसे में, उन्हें भरोसा दिलाएं कि अभी उनका कमजोर पड़ना सामान्य है। कहें, "तुम्हें अभी मजबूत बनने की जरूरत नहीं है, हम सब तुम्हारे साथ हैं।"
दुख की घड़ी में 'सही शब्द' ढूंढना मुश्किल होता है और सच तो यह है कि कोई जादुई शब्द होते भी नहीं हैं। अक्सर चुप्पी, शब्दों से ज्यादा असरदार होती है। किसी का हाथ थामना, उसे गले लगाना या बस खामोशी से उसके पास बैठे रहना- ये इशारे बताते हैं कि आप सच में परवाह करते हैं। अगली बार जब किसी को दर्द में देखें, तो 'ज्ञान' देने के बजाय बस उनका 'साथ' दें।

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