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    MP में चीता परियोजना का निगरानी तंत्र कठघरे में, तीन दिन में दो शावकों की मृत्यु से उठे गंभीर सवाल

    By Saurabh SoniEdited By: Ravindra Soni
    Updated: Mon, 08 Dec 2025 06:33 PM (IST)

    मध्य प्रदेश में चीता प्रोजेक्ट पर सवाल उठ रहे हैं। कूनो नेशनल पार्क में तीन शावकों में से दो की मौत हो गई, जिससे निगरानी तंत्र पर सवाल खड़े हो गए हैं। ...और पढ़ें

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    मप्र में चीता प्रोजेक्ट (फाइल फोटो)

    डिजिटल डेस्क, भोपाल। मध्य प्रदेश में चीता प्रोजेक्ट को भले ही केंद्र व राज्य सरकार प्रोत्साहित कर रही हो, लेकिन चीतों की मौत ने वन विभाग के निगरानी तंत्र को कटघरे में खड़ा कर दिया है। कूनो नेशनल पार्क के खुले जंगल में छोड़े गए गामिनी चीता के तीन शावकों में से एक की गत पांच दिसंबर को किसी हिंसक जानवर के हमले से मृत्यु के दो दिन बाद ही एक और शावक की रविवार सुबह सड़क हादसे में मृत्यु हो गई। वह ग्वालियर के घाटीगांव सिमरिया टांका पर सड़क पार कर रहा था। उसे कार ने टक्कर मार दी।

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    तीसरा शावक अभी लापता है। वन विभाग की टीम उसकी सर्चिंग कर रही है। जिस शावक की मौत हुई है, उसका नाम केजी-3 है। सवाल यह है कि वन विभाग दावा करता है कि प्रत्येक चीता पर पांच वन कर्मी निगरानी में रहते हैं, लेकिन चीतों की इस तरह मृत्यु ने निगरानी तंत्र पर सवाल उठाए हैं।

    खुले में घूम रहे चीतों की सुरक्षा पर खतरा मंडरा रहा है। चीता प्रोजेक्ट पर अब तक 115 करोड़ रुपये से अधिक खर्च हो चुके हैं। बावजूद इसके चीतों की सुरक्षा के कोई खास इंतजाम नहीं हैं। बता दें कि चीता प्रोजेक्ट की शुरुआत से लेकर अब तक 19 चीतों की मौत हो चुकी है। इधर अब चीता पुनर्वास परियोजना का पूरा जोर चीतों की वंशवृद्धि पर है।

    यह भी पढ़ें- ग्वालियर में तेज रफ्तार वाहन की टक्कर से चीता की मौत, कूनो से निकलकर बाहर आ गए थे दो चीते, दूसरे की तलाश जारी

    इसी के चलते कूनो पार्क से मंदसौर स्थित गांधीसागर अभयारण्य भेजे गए नर चीता प्रभाष व पावक के पास बुधवार को मादा धीरा को भेजा गया। लेकिन सुरक्षा के उपाय न होने से यहां भी चीतों पर खतरा मंडरा है। जिस तरह से बार-बार चीते कूनो के खुले जंगल से पलायन कर आबादी क्षेत्रों में पहुंच रहे हैं और मवेशियों का शिकार कर रहे हैं। इससे मानव-चीता द्वंद्व को लेकर भी वन विभाग के अधिकारी चिंतित हैं।

    नहीं दिया पर्याप्त ध्यान

    चीतों को खुले जंगल में छोड़ने से पहले कई सुरक्षा उपायों, जैसे घास के मैदानों का विकास और ग्रामीणों के विस्थापन पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया, जिससे चीतों के पलायन और स्थानीय आबादी के साथ टकराव की संभावनाएं बढ़ीं हैं। तत्कालीन मुख्य वन्य प्राणी अभिरक्षक वीएन अम्बाडे ने भी चीतों को खुले जंगल में छोड़ने से पहले उनकी सुरक्षा के उपाय करने की बात कही थी, लेकिन इस पर अमल ही नहीं हुआ।

    चीतों के लिए तेंदुए भी खतरा

    कूनो में तेंदुओं की संख्या 110 से अधिक है। इसके अलावा ग्वालियर चंबल अंचल के हर 100 किलोमीटर की परिधि में 10 तेंदुए होने का अनुमान है। जो रहवासी क्षेत्रों से खदेड़े जाने के बाद वापस कूनो की ओर रुख कर रहे हैं। इस क्षेत्र में तेंदुए हर उस जगह पर हैं, जहां चीतल, जंगली सूअर, हिरण जैसे शिकार मौजूद हैं। इन्हीं जगहों पर शिकार के लिए चीतों का भी मूवमेंट रहता है।

    वन्यप्राणी विशेषज्ञों का कहना है कि चीते में तेंदुए जैसी आक्रामकता व ताकत नहीं होती है, इसलिए इनके बीच तब तक दूरी रखना ही उपाय है जब तक कि चीतों की संख्या इतनी न हो जाए कि ये झुंड बनाकर अपने से बड़े जानवर पर भारी पड़ सकें।

    सड़क दुर्घटना में चीता शावक की मृत्यु की पहली घटना है। इससे पहले ऐसा नहीं हुआ। हमारा प्रयास होगा कि आगे इस तरह की घटना न हो। चीतों की सुरक्षा को लेकर और बेहतर इंतजार करेंगे।
    - सुभरंजन सेन, मुख्य वन्यप्राणी अभिरक्षक, मप्र वन।