महाराष्ट्र निकाय चुनाव में नजर आएगा 'मिनी विधानसभा चुनाव' जैसा नजारा, EC को रखनी होगी कड़ी नजर
महाराष्ट्र में स्थानीय निकाय चुनावों पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला! दशकों बाद होने वाले ये चुनाव मिनी विधानसभा जैसे होंगे। ओबीसी आरक्षण विवाद के बाद अटके चुनावों से नई पीढ़ी के नेता वंचित थे। अब देखना है कि राजनीतिक दल और चुनाव आयोग कैसे तैयारी करते हैं। क्या ये चुनाव महाराष्ट्र की राजनीति में नया बदलाव लाएंगे?

ओमप्रकाश तिवारी, मुंबई। यदि राज्य चुनाव आयोग ने सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का पालन करते हुए महाराष्ट्र के सभी स्थानीय निकायों के चुनाव एक साथ कराने का निर्णय किया तो ये चुनाव ‘मिनी विधानसभा चुनाव’ जैसा दृश्य उत्पन्न करेंगे। महाराष्ट्र में स्थानीय निकायों के चुनाव संपन्न कराने को लेकर आया सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय महाराष्ट्र के राजनीतिक दलों की नई पीढ़ी के लिए ताजी बयार बनकर आया है।
करीब एक दशक बाद होने वाले स्थानीय निकाय चुनाव सभी दलों को नई पीढ़ी के नेताओं की एक बड़ी फौज उपलब्ध कराएगी। महाराष्ट्र में स्थानीय निकायों के चुनाव अंतिम बार 2017 में हुए थे। बड़ी संख्या में ऐसे भी नगर निगम हैं, जहां 2015 में अंतिम बार चुनाव हुए थे।
मामला सर्वोच्च न्यायालय में गया
उसके बाद से स्थानीय निकायों में ओबीसी आरक्षण को लेकर उठे विवाद के कारण मामला सर्वोच्च न्यायालय में गया और चुनाव नहीं करवाए जा सके। इसलिए राजनीतिक दलों में चुनाव लड़कर किसी छोटे से छोटे सदन में भी पहुंचने वाले नेताओं की एक पूरी पीढ़ी बिना चुनाव लड़े ही निकल गई है।
आईएएस अधिकारियों के भरोसे
इसका असर स्थानीय विकास कार्यों पर भी पड़ता रहा है, क्योंकि किसी भी क्षेत्र में कोई चुना हुआ जनप्रतिनिधि है ही नहीं। ए-श्रेणी की मुंबई महानगरपालिका सहित सभी स्थानीय निकायों में प्रशासन आईएएस अधिकारियों के भरोसे चल रहा है, जिन तक आम आदमी की पहुंच ही नहीं होती।
निकायों में चुनाव कराने का निर्णय
महाराष्ट्र में महानगरपालिकाओं की संख्या 28, नगरपालिकाओं की 185 से 190 के बीच, जिला परिषद 34 एवं 385 पंचायत समिति हैं। यदि राज्य चुनाव आयोग सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर इन सभी निकायों में चुनाव कराने का निर्णय करता है, तो लंबी अवधि के बाद होनेवाले ये चुनाव मिनी विधानसभा चुनाव का दृश्य उत्पन्न करेंगे।
निर्दलीय प्रत्याशियों की संख्या अधिक
संभवतः ये चुनाव में राज्य चुनाव आयोग को दो या दो से अधिक चरणों में कराने पड़ें। क्योंकि अब राज्य में सक्रिय प्रमुख राजनीतिक दलों की संख्या ही 10 के करीब पहुंच चुकी है, और स्थानीय निकायों में तो निर्दलीय प्रत्याशियों की संख्या भी अधिक होती है। पिछले वर्ष हुए लोकसभा एवं विधानसभा चुनावों को देखते हुए कई राजनीतिक दलों में तो राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता तनाव की हद पहुंच सकती है। चुनाव आयोग को इसका भी ख्याल रखना पड़ेगा।
महायुति गठबंधन मिलकर ही चुनाव मैदान में उतरेगा
मंगलवार को सर्वोच्च न्यायालय का आदेश आते ही महाराष्ट्र के राजनीतिक दलों में सक्रियता बढ़ गई है। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने स्पष्ट कर दिया है कि सत्तारूढ़ महायुति गठबंधन मिलकर ही चुनाव मैदान में उतरेगा। फडणवीस ने सर्वोच्च न्यायालय के फैसले पर खुशी जताते हुए कहा कि मैं चार महीने के अंदर स्थानीय निकाय चुनाव संपन्न कराने के फैसले से प्रसन्न हूं। मैंने राज्य चुनाव आयोग को इसकी तैयारियां करने को कह दिया है।
नागरिकों और प्रशासन के बीच संवाद टूट गया
कांग्रेस की मुंबई अध्यक्ष एवं सांसद वर्षा गायकवाड़ ने सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को राज्य में लोकतांत्रिक पुनरुत्थान की शुरुआत बताते हुए कहा कि लोकतंत्र में जनता की आवाज़ सबसे महत्वपूर्ण होती है । स्थानीय निकायों के चुनावों के ज़रिए उस आवाज़ को मज़बूती मिलती है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों से महाराष्ट्र में नगर निगमों और परिषदों को चुने हुए प्रतिनिधियों के बजाय नियुक्त प्रशासकों द्वारा चलाया जा रहा है। इससे शासन में जनता की सीधी भागीदारी कम हो गई है एवं नागरिकों और प्रशासन के बीच संवाद टूट गया है।
दैनिक जीवन में इसका खामियाजा आम आदमी को भुगतना पड़ रहा है। हालांकि राजनीतिक दल सितंबर में चुनाव कराने के आदेश से संतुष्ट नहीं हैं। क्योंकि जून से सितंबर तक मुंबई सहित महाराष्ट्र के ज्यादातर हिस्सों में बरसात अधिक होती है। लेकिन उन्हें यह उम्मीद है कि चुनाव आयोग इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय से चुनाव कराने की अवधि बढ़वा सकता है।
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