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    सुप्रीम कोर्ट की मंजूरी के बाद भी नहीं हुई तदर्थ जजों की नियुक्ति, क्या है वजह?

    Updated: Sun, 12 Oct 2025 10:13 PM (IST)

    देशभर में लंबित आपराधिक मामलों को निपटाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने तदर्थ जजों की नियुक्ति को मंजूरी दी थी। नौ महीने बाद भी किसी हाई कोर्ट ने नामों की सिफारिश नहीं की है। विधि मंत्रालय को भी कोई सिफारिश नहीं मिली है। संविधान का अनुच्छेद-224ए सेवानिवृत्त जजों की नियुक्ति की अनुमति देता है। नियुक्ति प्रक्रिया सामान्य जजों की तरह ही होगी, लेकिन राष्ट्रपति नियुक्ति वारंट पर हस्ताक्षर नहीं करेंगे।

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    हाई कोर्ट ने इस पद के लिए किसी नाम की सिफारिश नहीं की है (प्रतीकात्मक तस्वीर)

    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। देशभर में लंबित लाखों आपराधिक मामलों को निपटाने के लिए तदर्थ (एड-हॉक) जजों की नियुक्ति के विचार को सुप्रीम कोर्ट से मंजूरी मिलने के करीब नौ महीने बाद भी अब तक किसी भी हाई कोर्ट ने इस पद के लिए किसी नाम की सिफारिश नहीं की है।

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    सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्टों के जजों की नियुक्ति प्रक्रिया से अवगत लोगों के अनुसार, 11 अक्टूबर तक 25 हाई कोर्टों में से किसी ने भी तदर्थ जजों की नियुक्ति के लिए किसी नाम की सिफारिश नहीं की। उन्होंने बताया कि केंद्रीय विधि मंत्रालय को इस संबंध में किसी भी हाई कोर्ट कोलेजियम से कोई सिफारिश नहीं मिली है।

    30 जनवरी को मिली थी अनुमति

    देशभर में 18 लाख से अधिक लंबित आपराधिक मामलों से चिंतित शीर्ष कोर्ट ने 30 जनवरी को हाई कोर्टों को तदर्थ जजों की नियुक्ति करने की अनुमति दे दी थी, जो अदालत की कुल स्वीकृत संख्या के 10 प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकती। संविधान का अनुच्छेद-224ए लंबित मामलों के प्रबंधन में मदद के लिए हाई कोर्टों में सेवानिवृत्त जजों को तदर्थ जज के रूप में नियुक्त करने की अनुमति देता है।

    निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार, संबंधित हाई कोर्ट का कोलेजियम विधि मंत्रालय के न्याय विभाग को हाई कोर्ट के जजों के रूप में नियुक्ति के लिए उम्मीदवारों के नाम या सिफारिशें भेजता है। इसके बाद विभाग उम्मीदवारों के बारे में जानकारी और विवरण प्राप्त करता है और फिर उन्हें सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम को भेजता है। फिर शीर्ष कोर्ट का कोलेजियम अंतिम निर्णय करता है और सरकार को चयनित व्यक्तियों को जजों के रूप में नियुक्त करने की सिफारिश करता है।

    राष्ट्रपति नवनियुक्त जज की 'नियुक्ति के वारंट' पर हस्ताक्षर करते हैं। तदर्थ जजों की नियुक्ति की प्रक्रिया वही रहेगी, सिवाय इसके कि राष्ट्रपति नियुक्ति वारंट पर हस्ताक्षर नहीं करेंगे। बल्कि तदर्थ जजों की नियुक्ति के लिए राष्ट्रपति की सहमति ली जाएगी। अधिकारियों ने बताया कि एक मामले को छोड़कर सेवानिवृत्त जजों को हाई कोर्ट के तदर्थ जज के रूप में नियुक्त करने का कोई पूर्व उदाहरण नहीं है।

    (न्यूज एजेंसी पीटीआई के इनपुट के साथ)