Unilateral Extra Judicial Talaq को शून्य करने की मांग को लेकर AIMWPLB ने सुप्रीम कोर्ट में दायर की याचिका
आल इंडिया मुस्लिम वुमन पर्सनल ला बोर्ड और न्यायबोध फाउंडेशन ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। AIMWPLB और न्यायबोध फाउंडेशन ने शीर्ष अदालत में याचिका दायर कर मांग की है कि मुस्लिम महिलाओं को उचित प्रक्रिया का पालन किए बगैर दिए गए तलाक को शून्य घोषित कर दिया जाए।

नई दिल्ली, एएनआइ। आल इंडिया मुस्लिम वुमन पर्सनल ला बोर्ड (AIMWPLB) और न्यायबोध फाउंडेशन (Nyayabodh Foundation) ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। AIMWPLB और न्यायबोध फाउंडेशन ने शीर्ष अदालत में याचिका दायर कर मांग की है कि मुस्लिम महिलाओं को उचित प्रक्रिया का पालन किए बगैर दिए गए तलाक को शून्य घोषित कर दिया जाए।
तलाक-ए-हसन को रद्द करने की मांग
इस याचिका को आल इंडिया मुस्लिम वुमन पर्सनल ला बोर्ड के अध्यक्ष शाइस्ता अंबर और न्यायबोध फाउंडेशन की अध्यक्ष एडवोकेट रितु दुबे ने न्यायिक तलाक की शिकार विभिन्न महिलाओं की शिकायतों के आधार पर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर इस मुद्दे को उठाया है। याचिका में तलाक-ए-हसन (Talaq-E-Hasan) और एकतरफा अतिरिक्त-न्यायिक तलाक के अन्य रूपों को शून्य करने की मांग की गई है।
आर्थिक और सामाजिक सुरक्षा के संबंध में दिशा निर्देश देने की मांग
इस याचिका में यह निर्देश जारी करने की मांग की गई है कि मुस्लिम महिलाओं को मध्यस्थता और सुलह की उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना एक गवाह के आधार पर दिए गए तलाक को पूर्वव्यापी रूप से शून्य घोषित किया जाए। सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई याचिका में तलाकशुदा महिलाओं और उनके बच्चों के लिए आर्थिक और सामाजिक सुरक्षा के संबंध में भी दिशा-निर्देश जारी करने की मांग की गई है। दायर याचिका के मुताबिक इस प्रकार के मनमाने तलाक के कारण तलाकशुदा महिलाओं के बच्चे भोजन, स्वास्थ्य, शिक्षा, धर, गरिमा के साथ जीवन जीने जैसे मूल मौलिक अधिकारों से वंचित हैं।
नियम बनाने की मांग
आल इंडिया मुस्लिम वुमन पर्सनल ला बोर्ड और न्यायबोध फाउंडेशन ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर सभी सांसदों को तलाक-ए-हसन या फिर तलाक के अन्य रूपों के द्वारा तलाक लेने की हालिया विसंगतियों को दूर करने के लिए उचित कदम उठाने के लिए निर्देश जारी करने तथा इस संबंध में एक नियम बनाने की मांग की गई है।

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