'हिंदू होने का मतलब है भारत के लिए जिम्मेदार होना', भागवत बोले- RSS का उद्देश्य सत्ता पाना नहीं
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने शनिवार को कहा कि हिंदू होने का मतलब है भारत माता के वंशज और भारत माता के लिए जिम्मेदार होना। भारत में कोई गैर-हिंदू नहीं है। मुसलमान हो चाहें ईसाई, सभी एक ही पूर्वजों के वंशज हैं और देश की मूल संस्कृति हिंदू है।

'हिंदू होने का मतलब है भारत के लिए जिम्मेदार होना'- मोहन भागवत (फोटो- एक्स)
पीटीआई,बेंगलुरु। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने शनिवार को कहा कि हिंदू होने का मतलब है भारत माता के वंशज और भारत माता के लिए जिम्मेदार होना। भारत में कोई गैर-हिंदू नहीं है। मुसलमान हो चाहें ईसाई, सभी एक ही पूर्वजों के वंशज हैं और देश की मूल संस्कृति हिंदू है।
साथ ही उन्होंने कहा कि आरएसएस का उद्देश्य हिंदू समाज को संगठित करना है, जिसमें सभी 142 करोड़ हिंदू शामिल हैं। हम किसी के खिलाफ नहीं हैं। संघ का लक्ष्य सत्ता पाना नहीं है। संघ का सोच है कि देश में रहने वाला हर इंसान भारत माता के लिए सोचे।
भागवत ने 'संघ यात्रा के 100 वर्ष : नया क्षितिज' पर व्याख्यान देते हुए यह टिप्पणी की। इस अवसर पर संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले समेत अनेक गणमान्य लोग उपस्थित थे।
उन्होंने कहा- ''जब सवाल उठते हैं कि संघ हिंदू समाज पर ध्यान क्यों केंद्रित करता है तो इसका उत्तर है कि हिंदू भारत के लिए जिम्मेदार हैं। ऐसा नहीं है कि ब्रिटिशों ने हमें राष्ट्रत्व दिया। हम एक प्राचीन राष्ट्र हैं। दुनिया में हर जगह लोग सहमत हैं कि हर राष्ट्र की एक मूल संस्कृति होती है। भारत की मूल संस्कृति क्या है? जो भी वर्णन हम करते हैं, वह हमें हिंदू शब्द की ओर ले जाता है।''
उन्होंने कहा कि वास्तव में भारत में कोई ''गैर-हिंदू'' नहीं है। सभी मुसलमान और ईसाई एक ही पूर्वजों के वंशज हैं। वे शायद इसे नहीं जानते है या फिर उन्हें इसे भूलने के लिए मजबूर किया गया है।
उन्होंने कहा- ''जानबूझकर या भले ही अनजाने में, हर कोई भारतीय संस्कृति का पालन करता है, इसलिए कोई भी अहिंदू नहीं है और हर हिंदू को यह समझना चाहिए कि वह हिंदू है क्योंकि हिंदू होना भारत के लिए जिम्मेदार होना है।''
भागवत ने कहा कि हिंदू समाज का संगठित होना आवश्यक है, क्योंकि हिंदू समाज अपनी शक्ति और महिमा में हमेशा दुनिया को एकजुट करने का प्रयास करता है। उन्होंने कहा- ''सनातन धर्म हिंदू राष्ट्र है और सनातन धर्म की प्रगति भारत की प्रगति है।''
भागवत ने यह भी उल्लेख किया कि आरएसएस के लिए मार्ग आसान नहीं रहा है। संगठन ने लगभग 60-70 वर्षों तक कड़े विरोध का सामना किया है और इसमें दो बार प्रतिबंध और स्वयंसेवकों की हत्याएं तक शामिल हैं। हर तरह से यह प्रयास किया गया कि हम फल-फूल न सकें। लेकिन स्वयंसेवक संघ के लिए अपनी पूरी मेहनत करते हैं और बदले में कुछ नहीं चाहते। उन्होंने कहा- ''हमने सभी हालातों को पार किया है और समाज में विश्वसनीयता हासिल की है।''

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