अफगानिस्तान,पाकिस्तान व बांग्लादेश के अल्पसंख्यकों को जेल क्यों? कलकत्ता हाईकोर्ट में पहुंचा मामला
कलकत्ता हाई कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई है, जिसमें अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश से आए अल्पसंख्यक हिंदुओं को भारतीय जेलों में रखने का विरोध किया गया है। याचिका में केंद्र सरकार की 2025 की अधिसूचना का हवाला देते हुए उनकी तत्काल रिहाई की मांग की गई है, जिसके अनुसार इन समुदायों के लोगों को जेल में नहीं रखा जा सकता, भले ही उनके पास उचित दस्तावेज न हों। मामले की अगली सुनवाई शुक्रवार को होगी।

कलकत्ता हाई कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई है (प्रतीकात्मक तस्वीर)
राज्य ब्यूरो, जागरण, कोलकाता। अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश के अल्पसंख्यकों, यानी हिंदुओं को भारतीय जेलों में बंद रखा गया है। उन्हें तुरंत रिहा किया जाना चाहिए। इसकी मांग करते हुए कलकत्ता हाई कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई है।
केंद्र सरकार की अधिसूचना के अनुसार इन तीन पड़ोसी देशों से आने वाले हिंदुओं, जैनियों, ईसाइयों और मुसलमानों के अलावा अन्य धर्मों के लोगों को भारत में जेल में नहीं रखा जा सकता। फिर भी विभिन्न राज्यों, खासकर बंगाल में बांग्लादेशी हिंदुओं को जेलों में रखा गया है।
केंद्र ने जारी की थी अधिसूचना
केंद्र सरकार द्वारा एक सितंबर, 2025 को एक अधिसूचना जारी की गई थी। इसमें कहा गया था कि अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश से आने वाले अल्पसंख्यकों के खिलाफ कोई आपराधिक कार्रवाई नहीं की जा सकती। सोमवार को उस अधिसूचना का हवाला देते हुए, हाई कोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश की पीठ के समक्ष एक याचिका दायर की गई ताकि जेल में बंद बांग्लादेशियों या पाकिस्तानियों को तुरंत रिहा किया जाए।
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश सुजॉय पाल ने मुकदमा दायर करने की अनुमति दे दी। इसके बाद मुकदमा दायर किया गया। मामले की सुनवाई अगले शुक्रवार को होनी है। वकील तरुणज्योति तिवारी ने कहा कि केंद्र के आदेश के अनुसार, पड़ोसी देशों से आने वाले हिंदू, ईसाई, पारसी, जैन समुदायों के लोगों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जा सकती है, चाहे उनके पास कोई दस्तावेज हो या नहीं, चाहे उनके पास वीजा या पासपोर्ट की अवधि समाप्त हो गई हो।
अजीब आधार पर जेल में रखने का दावा
केंद्र द्वारा यह अधिसूचना विशेष रूप से सताए गए हिंदुओं को बचाने के लिए जारी की गई थी। यह कहा गया है कि 'विदेशी अधिनियम' या 'पासपोर्ट अधिनियम' के तहत कोई मामला दर्ज नहीं किया जा सकता है। वकील का दावा है कि इस अधिसूचना के बावजूद, उन्हें अजीब आधार पर जेल में रखा जा रहा है।
इस संबंध में बंगाल डीजी सुधार गृह, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, राज्य के कानून विभाग और केंद्रीय कानून मंत्रालय को भी पत्र भेजे गए थे। तरुणज्योति तिवारी का दावा है कि कोई कार्रवाई नहीं की गई है। इसीलिए यह मामला दर्ज किया गया है।

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