राजनेताओं के खिलाफ मामलों पर 15 अप्रैल के बाद होगी सुनवाई, जानें सुप्रीम कोर्ट में क्या लगाई गई है गुहार
सांसदों-विधायकों के खिलाफ दर्ज आपराधिक मामलों पर जल्द से जल्द सुनवाई के लिए जनहित याचिका पर 15 अप्रैल के बाद सुनवाई होगी। इससे पहले पीठ ने नौ फरवरी को जनहित याचिका को जल्द सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने पर विचार करने पर सहमति व्यक्त की थी।

नई दिल्ली, प्रेट्र। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को उस जनहित याचिका पर 15 अप्रैल के बाद सुनवाई करने पर सहमति व्यक्त की, जिसमें सांसदों-विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामलों की जल्द सुनवाई और सीबीआइ व अन्य एजेंसियों द्वारा तेजी से जांच की मांग की गई है। वरिष्ठ अधिवक्ता और न्यायमित्र विजय हंसारिया ने प्रधान न्यायाधीश (CJI) एनवी रमना की अध्यक्षता वाली पीठ से अनुरोध किया कि याचिका को तत्काल सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने की जरूरत है, क्योंकि राजनेताओं के खिलाफ मामलों की त्वरित सुनवाई पर सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न निर्देशों के बावजूद पिछले पांच साल से करीब 2 हजार मुकदमे लंबित हैं।
पीठ ने कहा
इससे पहले न्यायमित्र विजय हंसारिया ने यह कहते हुए तत्काल अंतरिम आदेश दिए जाने की मांग की कि सांसदों-विधायकों के खिलाफ लंबित मुकदमों पर विस्तृत 16वीं रिपोर्ट दाखिल कर दी गई है और इसके मुताबिक निचली अदालतों में काफी आपराधिक मुकदमे लंबित (पेंडिंग) हैं। इस पर पीठ ने कहा, 'बाहर वे वर्षो इंतजार कर सकते हैं, कोई समस्या नहीं होती। जब यह सुप्रीम कोर्ट आता है और आप सुप्रीम कोर्ट में प्रवेश करते हैं, यह (मामला) तत्काल सुनवाई वाला बन जाता है।'
आपको बता दें कि इससे पहले पीठ ने नौ फरवरी को जनहित याचिका को जल्द सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने पर विचार करने पर सहमति व्यक्त की थी। हंसारिया ने कहा था कि वर्तमान एवं पूर्व सांसदों, विधायकों और विधान परिषद सदस्यों के खिलाफ लंबित मामलों का ब्यौरा देने वाली रिपोर्ट अदालत में दाखिल कर दी गई है और लंबित आपराधिक मामलों के शीघ्र निपटारे के लिए तत्काल व कड़े कदम उठाने की जरूरत है।
कुल 4,984 मामले पेंडिंग
हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, सांसदों, विधायकों और विधान परिषद सदस्यों के खिलाफ कुल 4,984 मामले लंबित हैं और इनमें से 1,899 मामले पांच साल से ज्यादा पुराने हैं। दिसंबर, 2018 तक लंबित मामलों की संख्या 4,110 थी और अक्टूबर, 2020 तक यह 4,859 थी। चार दिसंबर, 2018 के बाद 2,775 मामलों के निपटारे के बावजूद सांसदों-विधायकों के खिलाफ मामले 4,122 से बढ़कर 4,984 हो गए हैं। इससे स्पष्ट है कि आपराधिक पृष्ठभूमि के अधिक से अधिक लोग संसद और विधानसभाओं में पहुंच रहे हैं।
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