जहरीले कफ सीरप प्रसंग के बाद एक्शन में MP सरकार, औषधि जांच के लिए 211 करोड़ का प्रस्ताव; लैब पर कब देंगे ध्यान?
प्रदेश में जहरीली कफ सिरप से बच्चों की मौत के बाद सरकार हरकत में आई है। स्वास्थ्य विभाग ने दवाओं की जांच और निगरानी के लिए 211 करोड़ का प्रस्ताव भेजा है। खाद्य पदार्थों की जांच की पर्याप्त व्यवस्था न होने से विषाक्तता का खतरा है। भोपाल की फूड लैब में माइक्रोबायोलॉजी जांचें भी नहीं हो पा रही हैं। खाद्य सुरक्षा अधिकारियों की कमी है, जिससे निगरानी ठीक से नहीं हो पा रही है।

आनन-फानन 211 करोड़ रुपये का प्रस्ताव तैयार कर शासन को भेजा (प्रतीकात्मक तस्वीर)
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। विषाक्त कफ सीरप से प्रदेश के तीन जिलों में 24 बच्चों की मौत के बाद देशभर में आलोचना हुई तो अब तंत्र को मजबूत किया जा रहा है। दवाओं की जांच, निगरानी और अन्य संसाधनों के लिए स्वास्थ्य विभाग ने आनन-फानन 211 करोड़ रुपये का प्रस्ताव तैयार कर शासन को भेज दिया है, वहीं, खाद्य पदार्थों के जांच की पर्याप्त सुविधाएं और निगरानी नहीं होने से खाने-पीने की चीजों में भी विषाक्तता की आशंका है।
यह लोगों के स्वास्थ्य के लिए खतरा बन सकती हैं। हाल यह है कि भोपाल की एक मात्र फूड लैब में माइक्रोबायोलाजी जांचें तक नहीं हो पा रही हैं। नेशनल एक्रीडिटेशन बोर्ड फॉर लैबोरेट्री (एनएबीएल) प्रमाण पत्र नहीं होने के कारण चार माह से सैंपलों की जांच नहीं हो पा रही थी, जो दीपावली के चार दिन पहले शुरू हुई हैं। सरकार महत्वपूर्ण संसाधनों के लिए भी राशि के संबंध खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) पर निर्भर है।
हर विकासखंड में एक खाद्य सुरक्षा अधिकारी जरूरी
वर्ष 2011 में भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण का गठन होने के बाद माना जा रहा था कि खाने-पीने की चीजों की जांच की व्यवस्थाएं बहुत मजबूत हो जाएंगी, पर जैसा दावा था वैसा हुआ नहीं। हर विकासखंड में एक खाद्य सुरक्षा अधिकारी (एफएसओ) होना चाहिए। कुल 313 विकासखंड हैं। एफएसओ और वरिष्ठ एफएसओ मिलाकर 367 पद स्वीकृत हो गए, पर कार्यरत मात्र 152 ही हैं। यानी जरूरत से आधे भी नहीं हैं।
खाद्य सुरक्षा अधिकारियों के पद पीएससी से भरे जा रहे हैं। खाद्य लैबों की जांच की क्षमता भी बढ़ाई जाएगी। सभी जिलों में खाद्य एवं औषधि प्रशासन का कार्यालय बनाने का भी प्रस्ताव है।
- दिनेश श्रीवास्तव, नियंत्रक खाद्य एवं औषधि प्रशासन
रिक्त पदों पर मप्र लोक सेवा आयोग से भर्ती की प्रक्रिया चल रही है। यह अगले वर्ष ही मिल पाएंगे। प्रदेश में कुल चार लाख होटल हैं, जिनमें खाने-पीने की चीजों की गुणवत्ता की निगरानी इन 152 खाद्य सुरक्षा अधिकारियों पर है। यानी, 2631 दुकानों पर एक एफएसओ है।
ठीक से नहीं हो पाती निगरानी
- एक एफएसओ को माह में 10 वैधानिक और 20 निगरानी (सर्विलांस) सैंपल लेने होते हैं। 152 एफएसओ के हिसाब से सिर्फ वैधानिक सैंपल ही साल 18 हजार 240 हो जाते हैं, जबकि अभी भोपाल स्थित एक मात्र लैब की जांच क्षमता ही वर्ष में छह हजार है। अतिरिक्त समय में भी जांच की जा रही है, फिर भी लगभग 13 हजार सैंपलों की जांच हो पाती है। पांच हजार से अधिक अगले वर्ष जांचे जाते हैं।
- खाने-पीने की चीजों में बैक्टीरिया, फंगस व अन्य जीवाणुओं की उपस्थिति पता करने के लिए माइक्रोबायोलाजी जांच की सुविधा नहीं है। अनुबंधित निजी लैब में कुछ चुनींदा सैंपलों की ही जांच कराई जाती है।
- खाद्य सुरक्षा अधिकारियों का किसी भी जिले में अलग से कार्यालय नहीं है। न ही वाहन की सुविधा है।
- इंदौर, ग्वालियर और जबलपुर में पिछले छह वर्ष से फूड लैब बनाने का काम चल रहा है, पर अभी तक एक भी प्रारंभ नहीं हो पाई है। इंदौर की लैब 27 अक्टूबर से प्रारंभ होने जा रही है, जिसका शुभारंभ मुख्यमंत्री डा. मोहन यादव करेंगे।

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