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    'आपराधिक न्याय प्रशासन सरकारी तंत्र में सबसे उपेक्षित क्षेत्र', जस्टिस ललित ने क्यों कहा ऐसा?

    Updated: Mon, 17 Nov 2025 12:30 AM (IST)

    पूर्व प्रधान न्यायाधीश यूयू ललित ने आपराधिक न्याय प्रशासन को सरकारी तंत्र का सबसे उपेक्षित क्षेत्र बताया। उन्होंने पुलिस जांच शाखा को कानून-व्यवस्था से अलग करने और पुलिस सुधारों की वकालत की ताकि कानूनों का दुरुपयोग रोका जा सके। उन्होंने दोषसिद्धि की निराशाजनक दर पर चिंता जताई और कहा कि आपराधिक मामलों में विचाराधीन कैदियों को अक्सर बरी कर दिया जाता है।

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    आपराधिक न्याय प्रशासन सरकारी तंत्र में सबसे उपेक्षित क्षेत्र (फाइल फोटो)

    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। पूर्व प्रधान न्यायाधीश यूयू ललित ने दोषसिद्धि की निराशाजनक दर पर चिंता जताते हुए रविवार को कहा कि आपराधिक न्याय प्रशासन सरकारी तंत्र में सबसे उपेक्षित क्षेत्र है। साथ ही उन्होंने पुलिस की जांच शाखा को सामान्य कानून-व्यवस्था संबंधी दायित्वों में लगे शेष पुलिस बल से अलग करने की पैरोकारी की।

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    उन्होंने पुलिस में सुधारों की वकालत भी की ताकि आपराधिक कानूनों का दुरुपयोग रुके और किसी भी निर्दोष पर मुकदमा न चलाया जाए। कहा, वह नहीं चाहेंगे कि उनकी बेटियां ऐसे माहौल में रहें, जहां कानूनों के दुरुपयोग की थोड़ी सी भी आशंका हो।

    जस्टिस ललित ने 'एकम न्याय फाउंडेशन' द्वारा आयोजित सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि पिछले 42 वर्षों से एक वकील, न्यायाधीश और कानून के प्रोफेसर के रूप में उन्होंने देखा है कि देश के आपराधिक न्याय शास्त्र और उसके प्रशासन के तरीके में आपराधिक न्याय प्रशासन शायद सरकारी तंत्र में सबसे उपेक्षित क्षेत्र है।

    पलट दिए जाते हैं बयान

    पुलिस अधिकारियों या जांचकर्ताओं के पास उस प्रकार के पेशेवर साधन या शिक्षा नहीं है जिसकी पुलिस को आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि सीआरपीसी में 1973 में बदलाव किया गया था, जिसमें मजिस्ट्रेट द्वारा गवाहों के बयान दर्ज करने और फिर मामले को सुनवाई के लिए सौंपने की पुरानी व्यवस्था को समाप्त कर दिया गया था। हम अब पुलिस द्वारा सीआरपीसी की धारा-161 या बीएनएसएस के तहत दर्ज बयानों से संतुष्ट हैं, लेकिन इन बयानों पर कभी हस्ताक्षर नहीं किए जाते और जब मामला सुनवाई के लिए पहुंचता है तो कई बयानों को पलट दिया जाता है।

    इस स्थिति में देशभर में आपराधिक मामलों में दोषसिद्धि की दर लगभग 20 प्रतिशत बनी हुई है। धारा-498ए (विवाहित महिला द्वारा क्रूरता के आरोपों से संबंधित) या इससे संबंधित मामलों को लें, जिसमें दोषसिद्धि की दर पांच प्रतिशत से भी कम है।

    जस्टिस ललित ने आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि आपराधिक मामलों में जेलों में बंद पांच में से चार विचाराधीन कैदियों को अंतत: बरी कर दिया जाता है। इसका क्या अभिप्राय है? क्या हम किसी ऐसे व्यक्ति को हिरासत में नहीं ले रहे हैं जो अंतत: पूरी तरह से निर्दोष पाया जाएगा या कम से कम यह कहा जाएगा कि उसके विरुद्ध अपराध साबित नहीं हुआ है।

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