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    'नया लोकतंत्र है... शांत रहें', जब आपातकाल में भी नहीं झुका था दैनिक जागरण; इंदिरा गांधी को दी थी चुनौती

    Updated: Thu, 26 Jun 2025 09:31 AM (IST)

    1975 में इंदिरा गांधी द्वारा लगाया गया आपातकाल लोकतंत्र पर "काला धब्बा" था। इस दौरान दैनिक जागरण ने इस फैसले का कड़ा विरोध किया था। आपातकाल के दौरान विपक्षी नेताओं को जेल में डाला गया और मीडिया पर सेंसरशिप लगाई गई, जिससे लोकतंत्र की मूल भावना लगभग समाप्त हो गई थी। इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के बाद यह आपातकाल लगाया गया था।

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    जेएनएन, नई दिल्ली। देश को आजाद हुए 77 साल हो गए हैं, लेकिन 50 साल पहले सत्ता के नशे में कांग्रेस सरकार ने देश पर काला धब्बा लगाने का काम किया था। दरअसल, 25 जून 1975 की मध्यरात्रि को इंदिरा गांधी ने देश में इमरजेंसी लगाकर लोकतंत्र को कुचलने का काम किया था।
    इंदिरा सरकार जब लोकतंत्र को शर्मशार करने का काम कर रही थी, तब दैनिक जागरण बिना डरे, बिना झुके अपने निष्पक्ष पत्रकारिता के धर्म को निभा रहा था। तब भी अखबार ने सरकार के गलत कार्यों का खुलकर विरोध किया था।

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    संपादकीय को छोड़ दिया था खाली

    दैनिक जागरण ने आपातकाल लगाने के फैसले का विरोध करते हुए अपने संपादकीय पृष्ठ को खाली छोड़ दिया था। अखबार के संपादकीय पेज पर लिखा था, "नया लोकतंत्र? (सेंसर लागू) ... अंत में लिखा था ... शांत रहें!
    दरअसल, अखबार ने तब भी अपने पत्रकारिता के धर्म को निभाते हुए इंदिरा सरकार के लोकतंत्र को बेड़ियों में जकड़ने के फैसले का खुलकर विरोध किया था। अखबार ने इसी के साथ लोगों से भी शांति बरतने का संदेश जारी किया।

     

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    दैनिक जागरण 27 जून 1975 का संपादकीय पृष्ठ। आपातकाल के विरोध में दैनिक जागरण ने संपादकीय खाली छोड़ दिया था।

    आपातकाल के पीछे का सच

    • इंदिरा सरकार द्वारा देश में लगाए गए आपातकाल की रूपरेखा तभी लिख दी गई थी, जब 12 जून 1975 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इंदिरा गांधी का चुनाव रद करने का फैसला सुनाया था। 
    • तब कांग्रेस में ये सोचा जा रहा था कि चुने हुए सांसद अपना नया नेता चुने, लेकिन इससे पहले ही 25 जून की मध्यरात्रि आपातकाल घोषित कर दिया गया। 
    • यहां तक की इसके लिए संविधान में निर्धारित प्रक्रियाओं का भी पालन नहीं किया गया।
    • उस समय राष्ट्रपति ने संविधान और लोकतंत्र के पक्ष में खड़े होकर हस्ताक्षर न किए होते, तो भी देश पर लगा ये काला धब्बा न लगा होता।
    • आपातकाल में लोकतंत्र की मूल भावना ही लगभग खत्म कर दी गई थी। विपक्षी नेताओं समेत सैकड़ों लोगों को जेल में डाल दिया गया था। इस दौरान जयप्रकाश नारायण, अटल बिहारी वाजपेयी, जॉर्ज फर्नांडीज जैसे कई बड़े नेताओं को काले कानूनों के तहत सलाखों के पीछे भेजा गया।

    मीडिया पर सेंसरशिप

    मीडिया पर सेंसरशिप लगाकर गला घोंटने का काम भी इस दौरान इंदिरा सरकार ने किया। सैकड़ों पत्रकारों और विदेशी संवादाताओं पर बैन लगा दिया गया था।
    यहां तक की इस समय लोकतंत्र की बात करने वालों को या तो जेल में डाल दिया जाता था या सीधे गोली मारने तक का आदेश था।