गुटखा-पान मसाला महंगा, टीवी-फ्रिज और दवा होंगी सस्ती; GST में बदलाव से आपको कैसे फायदा मिलेगा?
सरकार GST में राहत देने जा रही है जिसका उद्देश्य विनिर्माण और निर्यात को बढ़ावा देना है। प्रस्तावित बदलावों में GST की दरें 5% 12% और 18% तक होंगी। गरीब और मध्यम वर्ग को राहत मिलेगी क्योंकि रोजमर्रा की 90% चीजें सस्ती होंगी। कृषि उपकरण शिक्षा उत्पाद स्वास्थ्य जांच उपकरण पर भी GST कम होगा। हालांकि तंबाकू उत्पादों पर कोई राहत नहीं मिलेगी।

राजीव कुमार, जागरण, नई दिल्ली। आयकर में राहत देने के बाद सरकार अब जीएसटी में भी राहत देने जा रही है। इसका मकसद है मैन्युफैक्चरिंग और निर्यात को आसान बनाना। अमेरिकी टैरिफ के मुकाबले में यह असरदार साबित हो सकता है।
सरकार के प्रस्ताव के मुताबिक जीएसटी की अब सिर्फ दो पांच और 18 प्रतिशत की दरें होंगी। अभी जीएसटी की चार पांच, 12,18 और 28 प्रतिशत की दरें हैं। सोने पर तीन प्रतिशत जीएसटी लगता है।
गरीबों को मिलेगी राहत
केंद्र सरकार के प्रस्ताव के मुताबिक 12 प्रतिशत के दायरे में आने वाली अधिकतर वस्तुएं पांच प्रतिशत में तो 28 प्रतिशत में शामिल में 90 प्रतिशत वस्तुएं 18 प्रतिशत के स्लैब में शामिल हो जाएंगी। इससे रोजमर्रा की 90 प्रतिशत चीजें सस्ती हो जाएंगी, जिससे गरीब को राहत मिलेगी।
28 प्रतिशत के दायरे में शामिल टीवी, फ्रिज, एसी जैसे इलेक्ट्रानिक्स आइटम के साथ कार की कीमत में 10 प्रतिशत की कमी आएगी, जिससे मध्य वर्ग को फायदा होगा। इससे इन वस्तुओं की बिक्री बढ़ेगी, जिससे मैन्यूफैक्चरिंग और खपत दोनों को प्रोत्साहन मिलेगा।
खेती में इस्तेमाल होने वाली मशीन से लेकर विभिन्न उपकरण पर भी पांच प्रतिशत जीएसटी लगेगा, जिससे किसानों को लाभ मिलेगा। शिक्षा से जुड़े उत्पाद, हेल्थ और लाइफ इंश्योरेंस, दवा एवं विभिन्न प्रकार के स्वास्थ्य जांच उपकरण पर लगने वाले जीएसटी में भी राहत दी जाएगी।
तंबाकू पर कोई राहत नहीं
इन सबके अलावा अधिकतर कच्चे माल के सस्ते होने से भारतीय वस्तुओं की मैन्युफैक्चरिंग लागत कम हो जाएगी, जिससे वैश्विक बाजार में उनकी प्रतिस्पर्धा क्षमता बढ़ेगी। एक विशेष दर भी तय की जाएगी, जिसमें ज्वेलरी या फिर ऐसे आइटम को शामिल किया जा सकता है जिसका निर्यात होता हो और उससे बड़ी संख्या में रोजगार निकलता हो। यह दर 0.5-01 प्रतिशत तक हो सकती है।
हालांकि, पान मसाला, गुटखा जैसे नुकसानदेह आइटम पर टैक्स में कोई राहत नहीं दी जाएगी। इस प्रकार के सात उत्पादों पर 40 प्रतिशत जीएसटी लगेगा। आनलाइन गेमिंग को भी नुकसानदेह की श्रेणी में रखा जा सकता है और इस पर टैक्स की उच्च दर लग सकती है।
दरों के साथ जीएसटी के प्रारूप और प्रक्रिया को भी बदला जाएगा, जिससे कारोबारियों को बड़ी राहत मिलेगी। केंद्र सरकार ने यह प्रस्ताव सभी राज्यों के पास भेज दिया है। अब राज्यों को इस प्रस्ताव पर जीएसटी काउंसिल की बैठक में अपनी सहमति देनी है।
जीएसटी संबंधी किसी भी प्रस्ताव पर अंतिम फैसला जीएसटी काउंसिल लेती है। काउंसिल का चेयरमैन वित्त मंत्री होता है, लेकिन फैसले पर मुहर के लिए सभी राज्यों की सहमति जरूरी है। केंद्र के मुताबिक प्रस्ताव को जीएसटी काउंसिल में ले जाने से पहले मंत्रियों के समूह (जीओएम) की बैठक में इस पर विचार किया जाएगा। सितंबर में जीएसटी काउंसिल की बैठक में राज्यों के साथ प्रस्ताव पर अंतिम फैसला होगा।
कारोबारियों को भी मिलेगी राहत
जीएसटी की सिर्फ दरें ही कम नहीं की जा रही हैं, जीएसटी के प्रारूप और प्रक्रिया दोनों में भी बदलाव का प्रस्ताव है। इससे कारोबारियों को बड़ी राहत मिलेगी और जीएसटी चोरी भी कम होगी। जीएसटी के नाम पर जालसाजी में भी कमी आएगी।
अभी टेक्सटाइल, खाद जैसे आइटम में कच्चे माल और तैयार माल की जीएसटी दरें अलग-अलग होती हैं। इससे कारोबारियों को इनपुट क्रेडिट टैक्स लेने में दिक्कत होती है। वैसे ही, एक ही प्रकृति की कई वस्तुओं पर अलग-अलग जीएसटी दर है। उसे भी समान किया जाएगा। जैसे अलग-अलग नमकीन पर अलग-अलग जीएसटी है।
कई खाद्य आइटम में लूज पर अलग टैक्स है तो पैक्ड में अलग। आइसक्रीम पर अलग है तो मिठाई पर अलग। इस प्रकार की विसंगतियों को समाप्त किया जाएगा। जीएसटी के पंजीयन को भी आसान बनाया जाएगा। कारोबारियों को मिलने वाले विभिन्न प्रकार के नोटिस को समाप्त किया जाएगा। रिफंड के लिए ऐसी व्यवस्था होगी कि निर्यातकों को तत्काल तौर रिफंड मिल जाएगा।
शुरुआत में कर संग्रह में आ सकती है कमी
केंद्र का मानना है कि जीएसटी में होने वाले बड़े बदलाव के बाद जीएसटी संग्रह में कमी आ सकती है। क्योंकि अभी जीएसटी का जो संग्रह होता है, उनमें 18 प्रतिशत वाले स्लैब से 65 प्रतिशत, 28 प्रतिशत वाले स्लैब से 11 प्रतिशत, 12 प्रतिशत वाले स्लैब से पांच प्रतिशत तो पांच प्रतिशत वाले स्लैब से सात प्रतिशत राजस्व प्राप्त होता है।
क्षतिपूर्ति सेस को भी समाप्त किया जा रहा है। हालांकि, केंद्र का यह भी मानना है कि वस्तुएं जब सस्ती होंगी तो उसकी बिक्री बढ़ेगी और इससे आने वाले समय में जीएसटी संग्रह बढ़ेगा, लेकिन शुरुआत में संग्रह प्रभावित होगा।
इसका असर राज्य और केंद्र दोनों पर होगा। पिछले आठ सालों में जीएसटी संग्रह में ढाई गुना बढ़ोतरी हुई है और राज्यों को मिलने वाले राजस्व भी पिछले चार सालों में औसतन 18 प्रतिशत की दर से बढ़ा है जबकि जीएसटी पूर्व काल में उनके अप्रत्यक्ष कर के संग्रह की वृद्धि दर सालाना आठ प्रतिशत थी।
क्षतिपूर्ति सेस होगा समाप्त
क्षतिपूर्ति सेस की मियाद अगले साल मार्च में समाप्त हो जाएगी। आठ साल पहले एक जुलाई 2017 को जीएसटी प्रणाली लागू करने के दौरान क्षतिपूर्ति सेस लाया गया था ताकि राज्यों को अप्रत्यक्ष कर की पुरानी से नई प्रणाली में आने पर होने वाले घाटे की पूर्ति इस सेस से की जा सके।
पांच साल के लिए क्षतिपूर्ति सेस वसूलने का प्रविधान किया गया था, लेकिन वर्ष 2022 में कोरोना काल की वजह से क्षतिपूर्ति सेस को समाप्त नहीं किया जा सका। उस समय केंद्र ने राज्यों के नाम पर बैंकों से कर्ज लेकर उन्हें वितरित किया था। उस कर्ज को वसूलने के लिए मार्च 2026 तक क्षतिपूर्ति सेस वसूलने का प्रविधान किया गया था।
राज्यों ने इनकार किया तो गलत संदेश जाएगा
यह भी संभावना है कि अगर जीएसटी काउंसिल की बैठक में राज्यों ने अपनी सहमति नहीं दी तो क्या होगा। हालांकि, ऐसी उम्मीद कम है, क्योंकि अभी अधिकतर राज्यों में भाजपा की सरकार है और उन राज्यों से इस बारे में बातचीत की गई है।
अगर विपक्षी पार्टी वाली सरकार जीएसटी में बदलाव के प्रस्तावों को नहीं मानती है तो जनता में यह संदेश जाएगा कि ये राज्य आम आदमी, किसान और गरीब को राहत नहीं देना चाहते हैं। हालांकि, किसी भी राज्य के लिए प्रस्ताव का समर्थन करना इतना आसान नहीं होगा, क्योंकि इससे उनके राजस्व में फर्क आएगा। ये राज्य इंश्योरेंस पर लगने वाले 18 प्रतिशत जीएसटी को 12 प्रतिशत करने पर राजी नहीं हुए थे। काउंसिल की बैठक में राजस्व संग्रह के नाम पर राज्य इस प्रस्ताव का विरोध करते रहे हैं।
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