अंतरजातीय विवाह के बाद भी बेटी का पिता की संपत्ति में समान हक, गुजरात हाई कोर्ट ने महिला के पक्ष में सुनाया फैसला
गुजरात उच्च न्यायालय ने हिंदू उत्तराधिकार कानून के तहत फैसला सुनाया कि अंतरजातीय विवाह के बाद भी महिला को पैतृक संपत्ति से बेदखल नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने 12 साल बाद दावा करने पर भी महिला को संपत्ति में हिस्सेदार माना। न्यायालय ने कहा कि 2005 के संशोधन के अनुसार, पुत्री के संपत्ति अस्वीकार न करने तक उसका अधिकार बना रहता है, क्योंकि जन्म से ही पुत्री पुत्रों के समान पिता की संपत्ति में हकदार है।

गुजरात हाई कोर्ट। (फाइल)
राज्य ब्यूरो, अहमदाबाद: हिंदू उत्तराधिकार कानून के तहत गुजरात हाई कोर्ट ने एक अहम निर्णय देते हुए कहा है कि अंतरजातीय विवाह के बावजूद किसी महिला को पैतृक अथवा पिता की कमाई हुई संपत्ति से बेदखल नहीं किया जा सकता। कानून के अनुसार 12 वर्ष बीते जाने के बाद दावा करने के बावजूद हाई कोर्ट ने महिला को संपत्ति में हिस्सेदार माना है।
सामान्य वर्ग की एक युवती ने अन्य पिछड़ा वर्ग के लड़के से विवाह कर लिया था। वर्ष 1986 में उसके पिता का निधन हो गया। उसके सात भाई बहनों ने इस युवती को छोड़कर पिता की संपत्ति का नामांतरण अपने नाम करा लिया था। वर्ष 2018 में उक्त युवती ने पिता की संपत्ति में हक पाने के लिए एक वाद दायर किया।
स्थानीय अदालत ने पिता के निधन के 12 वर्ष बाद दावा करने के चलते उसकी याचिका खारिज कर दी थी। महिला ने इस मामले में हाई कोर्ट में अपील की इसके बाद न्यायालय ने हिंदू उत्तराधिकार कानून की धारा 6 का हवाला देते हुए बताया कि उत्तराधिकार कानून में वर्ष 2005 के संशोधन में यह प्रविधान किया गया है कि जब तक पुत्री स्वयं अपने पिता की अथवा पैतृक संपत्ति को स्वयं अस्वीकार नहीं कर देती है तब तक उसका अधिकार बना रहता है।
लैंगिक भेदभाव को खत्म करने के लिए सितंबर 2005 में ही यह प्रविधान अमल में लाया गया था। इसके अनुसार जन्म के साथ ही पुत्री अन्य पुत्रों की तरह पिता की संपत्ति में समान हकदार होगी।

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