IGI एयरपोर्ट से डिपोर्ट की गईं लंदन यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर, क्या हैं आरोप?
लंदन विश्वविद्यालय की प्रोफेसर फ्रांसेस्का ऑर्सिनी को वीजा नियमों के उल्लंघन के आरोप में दिल्ली हवाई अड्डे से वापस भेज दिया गया। वह हिंदी भाषा की विद्वान हैं और 'द हिंदी पब्लिक स्फेयर 1920-1940' नामक पुस्तक से उन्होंने पहचान बनाई। इतिहासकारों ने इस घटना पर निराशा व्यक्त की है, रामचंद्र गुहा ने इसे असुरक्षित कदम बताया है। मुकुल केशवन ने सरकार की आलोचना की है।

लंदन विश्वविद्यालय की प्रोफेसर फ्रांसेस्का ऑर्सिनी। (फाइल फोटो)
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। लंदन विश्विविद्यालय के स्कूल ऑफ ओरिएंटव एंड अफ्रीकन स्टडीज से संबंध रखने वाली एक प्रोफेसर फ्रांसेस्का ऑर्सिनी को वीजा नियमों में उल्लंघन के आरोप में दिल्ली के इंदिरा गांधी इंटरनेशनल हवाई अड्डा से वापस भेजने की खबर सामने आई है।
दरअसल, सूत्रों ने दावा किया है कि यह एक्शन उस समय लिया गया, जब प्रोफेसर सोमवार को हॉन्ग कॉन्ग से भारत पहुंची थीं। समाचार एजेंसी ने गृह मंत्रालय के एक अधिकारी के हवाले से बताया कि यह एक सामान्य अंतरराष्ट्रीय प्रथा है कि वीजा शर्तों के उल्लंघन पर व्यक्ति को ब्लैकलिस्ट कर दिया जाता है।
हिंदी में विशेष पहचान रखती हैं फ्रांसेस्का ऑर्सिनी
बता दें कि फ्रांसेस्का ऑर्सिनी हिंदी भाषा की जानकार हैं। उन्होंने अपनी किताब द हिंदी पब्लिक स्फेयर 1920-1940 लैंग्वेज एंड लिटरेचर इन द एज ऑफ नेशनलिज्म से नई पहचान पाई। फ्रांसेस्का ऑर्सिनी को डिपोर्ट किए जाने पर इतिहासकार और लेखक रामचंद्र गुहा की प्रतिक्रिया सामने आई है।
फ्रांसेस्का ऑर्सिनी के डिपोर्ट पर इतिहासकारों ने क्या कहा?
उन्होंने कहा कि फ्रांसेस्का ऑर्सिनी भारतीय साहित्य की महान ज्ञाता हैं। उनका कामों ने हमारी सांस्कृतिक विरासत को बेहतर ढंग से समझने में मदद की है। बिना किसी वजह के उनको देश से डिपोर्ट करना एक असुरक्षित कदम हो सकता है।
वहीं, इस पूरे मामले पर इतिहासकार मुकुल केशवन ने भी सरकार की आलोचना की है। उन्होंने कहा कि यह एक विडंबना है कि जो सरकार हिंदी को बढ़ावा देने का दावा करती है, उसने एक हिंदी के विद्वान को प्रतिबंधित किया है।
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